"सूतक बनाम लाक डाउन"
काश ! यदि कथित बुद्धिजीवी आदिवासी ज्ञान के जन्म और मृत्यु के सूतक परंपरा (बाडी डिस्टेंस, खान-पान) को समझ कर उसकी सीख को गंभीरता से लेते तो शायद इस तरह बार बार अपील दर अपील करने की आवश्यकता नहीं होती।लोग परंपरागत तरीके से अपने आप को स्वयं सुरक्षित कर लेते। उदाहरण स्वरुप किसी बच्चे के जन्म के लिए सोनियारी(नर्स दायी) के अतिरिक्त कम से कम तीन दिन तक प्रसूता से कोई संपर्क नहीं करता, उसके खान-पान की अतिरिक्त व्यवस्था की जाती है। तीन दिन बाद प्रसूता का कोरेंटाईन टाईम समाप्त होता है। फिर इसके बाद उस घर को छ: दिन तक के लिए ग्राम वासी खान पान से डिस्टेंस बनाकर रखते हैं। तत्पश्चात नौ (पुत्री) और दस दिन (पुत्र) की स्थिति में ग्राम समुदाय का डिस्टेंशन समाप्त होकर अन्य गांव में मौजूद रिस्तेदारो को आमंत्रित कर सोसल डिस्टेंशन को समाप्त किया जाता है। यह लाकडाउन परंपरा शायद प्रसूता के संक्रमण या सुरक्षा से या जिस भी कारण से जुड़ा हो पर वर्तमान संक्रमण के लिए आईना दिखा सकती है।
कुछ इसी तरह मृत्यु संस्कार के समय भी कम से कम उस घर को कोरेंटाईन कर दिया जाता है। घर में खाना पीना बनाना निशेध होता है ऐसे मौके पर सामाजिक सहयोग के रूप में गांव के नातेदार या पड़ोसी के द्वारा तीन दिन तक पीड़ित परिवार की अपने घर से बना भोजन कराया जाता है। तीन दिन के बाद पीड़ित घर का लाकडाउन समाप्त होता है। तत्पश्चात नौ (महिला) दस दिन (पुरूष) का क्रियाक्रम संस्कार करते हुए उस ग्राम का सोसल डिस्टेंशन तथा लाकडाउन समाप्त होता है। व्यवस्था पुनः सामान्य दिनों की भांति चलने लगती है। है ना कुछ सीखने सिखाने को आदिवासी के पास ! यह लेख संक्रमण (viras),देह दूरी (body distence),सोसल डिस्टेंशन और लाक डाउन की समझ को बढ़ाने और उसमें परंपरागत ज्ञान की भूमिका को प्रदर्शित करने का प्रयास मात्र है। -(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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