'' 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर छोटी सी भेंट''
[संसद ने एैतिहासिक भूल को स्वीकारते हुए वनाधिकार कानून बना दिया ।]
*यदि हम इस अधिकार को हासिल नहीं कर सके तो हमसे एैतिहासिक भूल होगी ।*
जल जंगल जमीन के संघर्श से जुडे या कानून के जानकार तथा बुद्धिजीवियों को जानकारी है कि अनु0जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासियों के लिये वनधिकार कानून बन गया है । इसके संक्षिप्त इतिहास की ओर जाये ंतो जल जंगल जमीन के संघर्श से जुडे संगठनों लोगों के लगातार दबाव से केंद्र सरकार ने संयुक्त संसदीय दल का गठन कर उसे देष भर की वन भूमि पर काबिज लोगों का सर्वे कराया गया । परिणाम स्वरूप इस कमेटी ने संसद को वनभूमि के काबिजो की स्थिती के बारे में रिपोर्ट दी जिसमें कहा गया कि आजादी के तुरंत बाद मालगुजारों और जमीदारों की भूमि किसानों को वापस की गई थी इसी तरह आजादी के पूर्व से काबिज इन लोगों को जो वन ग्राम में निवास करते हुए वनों के आसपास खाली भूमि पर कास्त कर रहे हैं इनके नाम कर देना चाहिये था लेकिन तत्कालीन सरकारों ने इन्हें कास्त तो करने दिया लेकिन इन्हें उसका मालिक नहीं बनाया । धीरे धीरे वनविभाग इन्हें बेदखल करती जा रही है जो अन्यायपूर्ण है । इस रिपोर्ट के आधार पर संसद ने इनको अधिकार नहीं दे पाने का अफसोस जाहिर करते हुए इसे एैतिहासिक भूल स्वीकार किया । संसद में पास होकर वर्श 2006 में कानून के रूप में सामने आया । जनजातीय कार्य मंत्रालय ने अगली कार्यवाही के साथ राज्य सरकारों को अग्रेशित कर आदिवासियों को काबिज भूमि का अधिकार पत्र एवं सामुदायिक वनाधिकार के तहत ग्राम का निस्तारी क्षेत्र एवं परंपरागत सीमा के भीतर समस्त सम्पदा का मालिक बनाने का निर्देष दिया गया । कानून में उल्लेखित त्रिस्तरीय वनाधिकार समिति के गठन कराने के निर्देष दिये गये । जिन राज्यों में संवेदनषील षासन प्रषासन है वहां तो कुछ हो रहा है । फिर भी वह नाकाफी है । काबिजों को कम से कम भूमि देना पडे इसलिये प्रदेष की सरकारों ने बडी चालाकी से काम किया है । व्यक्तिगत कब्जा की भूमि को बिना भूमापन बिना ग्रामसभा के प्रस्ताव के मनमाने ढंग से वितरित कर दिया गया । जबकि काबिजों को 10 एकड तक की भूमि देना प्रस्तावित है । वहीं महत्वपूर्ण अधिकार जो ग्राम का सामुदयिक वनाधिकार है जिसमें ग्राम की परंपरागत सीमा यानि मेढा या जिसे सीवाना कहा जाता हैं के अंदर तथा उस ग्राम का निस्तार क्षेत्र तथा वहां की समस्त वनसंपदा पर ग्राम समुदाय का अधिकार है । को जानबूझ कर जनता को अवगत नहीं कराया गया । बल्कि एैसे क्षेत्रों से काबिजो को बेदखल कर उदयोगपतियों को देने का काम हो रहा है जिसके संघर्श में हजारों आदिवासियों की जानें जा रहीं है ।
अतः सभी सगा बन्धुओं से अनुरोध है कि प्रदेष के समस्त ग्रागों में गठित वनाधिकार समिति के माध्यम से व्यक्तिगत काबिजो के लिये ग्रामसभा में प्रस्ताव तो पास करें ही लेकिन सामुदायिक वनाधिकार कानून के तहत ग्राम के सामुदायिक अधिकार का प्रस्ताव भी जरूर पारित करें । ताकि ग्राम खुसहाल होे सके । अधिक जानकारी के लिये जनजातियों एवं अन्य परंपरागत वन निवासी वनाधिकार अधिनियम 2006 07 का अवलोकन करे या किसी भी ग्राम में गठित वनाधिकार समिति को दी गई मार्गदर्षिका पढें ।
[संसद ने एैतिहासिक भूल को स्वीकारते हुए वनाधिकार कानून बना दिया ।]
*यदि हम इस अधिकार को हासिल नहीं कर सके तो हमसे एैतिहासिक भूल होगी ।*
जल जंगल जमीन के संघर्श से जुडे या कानून के जानकार तथा बुद्धिजीवियों को जानकारी है कि अनु0जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासियों के लिये वनधिकार कानून बन गया है । इसके संक्षिप्त इतिहास की ओर जाये ंतो जल जंगल जमीन के संघर्श से जुडे संगठनों लोगों के लगातार दबाव से केंद्र सरकार ने संयुक्त संसदीय दल का गठन कर उसे देष भर की वन भूमि पर काबिज लोगों का सर्वे कराया गया । परिणाम स्वरूप इस कमेटी ने संसद को वनभूमि के काबिजो की स्थिती के बारे में रिपोर्ट दी जिसमें कहा गया कि आजादी के तुरंत बाद मालगुजारों और जमीदारों की भूमि किसानों को वापस की गई थी इसी तरह आजादी के पूर्व से काबिज इन लोगों को जो वन ग्राम में निवास करते हुए वनों के आसपास खाली भूमि पर कास्त कर रहे हैं इनके नाम कर देना चाहिये था लेकिन तत्कालीन सरकारों ने इन्हें कास्त तो करने दिया लेकिन इन्हें उसका मालिक नहीं बनाया । धीरे धीरे वनविभाग इन्हें बेदखल करती जा रही है जो अन्यायपूर्ण है । इस रिपोर्ट के आधार पर संसद ने इनको अधिकार नहीं दे पाने का अफसोस जाहिर करते हुए इसे एैतिहासिक भूल स्वीकार किया । संसद में पास होकर वर्श 2006 में कानून के रूप में सामने आया । जनजातीय कार्य मंत्रालय ने अगली कार्यवाही के साथ राज्य सरकारों को अग्रेशित कर आदिवासियों को काबिज भूमि का अधिकार पत्र एवं सामुदायिक वनाधिकार के तहत ग्राम का निस्तारी क्षेत्र एवं परंपरागत सीमा के भीतर समस्त सम्पदा का मालिक बनाने का निर्देष दिया गया । कानून में उल्लेखित त्रिस्तरीय वनाधिकार समिति के गठन कराने के निर्देष दिये गये । जिन राज्यों में संवेदनषील षासन प्रषासन है वहां तो कुछ हो रहा है । फिर भी वह नाकाफी है । काबिजों को कम से कम भूमि देना पडे इसलिये प्रदेष की सरकारों ने बडी चालाकी से काम किया है । व्यक्तिगत कब्जा की भूमि को बिना भूमापन बिना ग्रामसभा के प्रस्ताव के मनमाने ढंग से वितरित कर दिया गया । जबकि काबिजों को 10 एकड तक की भूमि देना प्रस्तावित है । वहीं महत्वपूर्ण अधिकार जो ग्राम का सामुदयिक वनाधिकार है जिसमें ग्राम की परंपरागत सीमा यानि मेढा या जिसे सीवाना कहा जाता हैं के अंदर तथा उस ग्राम का निस्तार क्षेत्र तथा वहां की समस्त वनसंपदा पर ग्राम समुदाय का अधिकार है । को जानबूझ कर जनता को अवगत नहीं कराया गया । बल्कि एैसे क्षेत्रों से काबिजो को बेदखल कर उदयोगपतियों को देने का काम हो रहा है जिसके संघर्श में हजारों आदिवासियों की जानें जा रहीं है ।
अतः सभी सगा बन्धुओं से अनुरोध है कि प्रदेष के समस्त ग्रागों में गठित वनाधिकार समिति के माध्यम से व्यक्तिगत काबिजो के लिये ग्रामसभा में प्रस्ताव तो पास करें ही लेकिन सामुदायिक वनाधिकार कानून के तहत ग्राम के सामुदायिक अधिकार का प्रस्ताव भी जरूर पारित करें । ताकि ग्राम खुसहाल होे सके । अधिक जानकारी के लिये जनजातियों एवं अन्य परंपरागत वन निवासी वनाधिकार अधिनियम 2006 07 का अवलोकन करे या किसी भी ग्राम में गठित वनाधिकार समिति को दी गई मार्गदर्षिका पढें ।
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