देश को अब आदिवासी समाज के प्रकृतिवादी दर्शन की आवश्यकता है !
हमारा देश उद्योग धंधे शिक्षा चिकित्सा के क्षेत्र विज्ञानं एवम प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है ! इस तरह आगे बढ़ना देश की उन्नति का बाह्य स्वरुप है जो लुभावना लगता है ! इस पर सभी को गर्व होता है ! वहीँ देश के आंतरिक स्वरुप पर नजर डालते हैं तो लगता है हम लगातार गिरते जा रहे हैं ! बाहरी द्रश्य जितना सुन्दर है आंतरिक व्यवस्था उतना ही कुरूप है ! यह कुरूपता लगातार बढती जा रही है ! एक दिन देश को खोखला करके छोड़ेगी ! इसके जिम्मेदार कौन है ? हम और कितना गिरेंगे ! भ्रस्टाचार बलात्कार व्यभिचार चरम पर है शासकीय धन की लूट मची है हजार लाख नहीं करोड़ों अरबों के घुटाले हमारी नैतिकता इतनी गिर चुकी है की देश की खुपिया जानकारी भी दुश्मन देशों को बेचने में परहेज नहीं कर रहे हैं ! बलात्कार शब्द भी शर्मशार हो रहा है तीन साल चार साल की अबोध बच्चियों को भी हवस का शिकार बनाया जा रहा है ! आखिर ये संस्कार आये कहाँ से जबकि सबसे ज्यादा धर्म तथा धर्म के ठेकेदार इसी देश में हैं जो लगातार समाज को नैतिक शिक्षा ,धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं ! भाईचारा,प्रेम का सन्देश लगातार प्रसारित होते रहते हैं ! फिर समाज गर्त में क्यों जा रहा है तथाकतिथत सभ्य कहा जाने वाला समाज क्या कर रहा है दूसरी ओर जंगल कंदराओं में रहकर अभावों में जीने वाला समाज जो अपनी ही मेहनत की सही मजदूरी तक नहीं ले पाता उसकी धन धरती छीन जाती है ढंग से विरोध तक नहीं कर पाता ! उसे आसानी से छल कपट का शिकार बनाकर उसका सब कुछ छीन लिया जाता है, पर वह उफ़ तक नही करता ! आखिर वह भी तो इसी देश की व्यवस्था में जी रहा है वह बाहरी तरक्की तो नहीं कर पाया लेकिन नैतिक रूप से सम्रद्ध है उसकी सरलता सहजता उसका गहना है औसतन झूठ कपट से कोसों दूर रहने वाला समुदाय केवल आदिवासी ही है ! जो आज भी मानवीय मूल्यों को महत्त्व देता है ! अभावों के बावजूद अपना ईमान नहीं खोता ! अब आप ही सोचें इस देश को कथित सभ्य लोगों के मार्गदर्शन उनकी सोच पर चलना चाहिए या कथित असभ्य कहे जाने वाले संस्कारवान आदिवासियों के तरीके से हमें तय करना होगा उनके जीवन पद्दति उनके संस्कृति संस्कारों उनकी मान्यताओं का गहरा अध्ययन करना होगा आखिर कौन सी संस्कृति है कौन से संस्कार हैं जो इस देश में ऐसे भी लोगो को तैयार करती है जहाँ देश चारों तरफ अन्याय अत्याचार भ्रस्ताचार ,बलात्कार जैसी बीमारी से ग्रस्त है ! ऐसे समय में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल की उस समय कही गई बात प्रासंगिक लगती है ! किसी ने उनसे आदिवासियों को सभ्य और शिछित बनाने के लिए बहुत कुछ सिखाने की आवश्यकता बताई ! तब नेहरु जी ने कहा था आदिवासियों को सभ्यता सिखाने की आवश्यकता नहीं वरन हमें उनसे बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है ! अब समय आ गया है ! देश को गर्त में जाने से बचाने का आदिवासियों की प्रकृतिवादी दर्शन को समझने समझाने की उसे अंगीकार करने की vko’;drk gS A
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