a ''गोंडवाना संस्कृति की एक झलक''
गोंडीयन संस्कृति की विशालता को समझने के लिए हमें वर्तमान की विभाजित जाति समूह या जातियों के रहन सहन ,रीति रिवाज ,परम्पराओं का सुक्ष्म अध्यन करना होगा ! आज हम भले ही सविधान की सूचि में अलग अलग वर्ग के रूप में विभाजित हैं ,परन्तु आज भी हम सांस्कृतिक रूप में एक हैं ! एक उदहारण के साथ समझा जा सकता है ! जैसे कुम्हार जाति जो मध्यप्रदेश में कुछ जिलों में अनुसूचित जाति की श्रेणी में हें ,लेकिन बाकी जिलों में पिछड़ा वर्ग की सूचि से जुड़े हैं ,सविधान इन्हें भले ही जातियों के भावात्मक जाल में फसाया हो लेकिन इस जाति ने अपनी पुरानी गोंडीयन संस्कृति को अब तक आत्मसात करके रखा है ! गोंडीयन समाज में ऋतु धर्म /मासिक धर्म का कड़ाई से पालन किया जाता है कुम्हार के घर में यह स्थिति रहने पर मिटटी को नहीं रोंदा जाता ना ही चाक पर कार्य किया जाता । आज भी यह परंपरा विद्धमान है कि ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह के समय काम आने वाले कलस के लिये विवाह कार्यकृम वाले घर से परंपरानुषार उस परिवार की माताएं बहने एवं परिवार के लोग कुम्हार के धर जाकर चाक की पूजा की जाती है । तत्पष्चात कुछ उपहार भेंट कर गाजे बाजे के साथ कलस को लाया जाता है । तब ही आगे के कार्यकृम प्रारंभ होते हैं । इस तरह गोंडियन संस्कृति का हिस्सा रहे इस समाज को वर्गों में विभाजित करके सांस्कृतिक रूप से विभाजित करने का असफल प्रयास किया गया है । यही स्थिति गोंडी अहीर जो ब्राहमण के उंचा बनो अभियान में यादव हो गये गोंडी लुहार जो उंचा बनो अभियान में विष्वकर्मा हो गये तथा अन्य गोंडियन संस्कृति में जी रहे विभिन्न वर्ग एवं समुदाय की भी यही स्थिति है ।a
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