"एक कविता"
हमारे फेसबुक मित्रों ने एक कविता पर बहस में भाग लेते हुए एकता, बिखराव, गददारी, व्यक्तिवाद, पारदर्शिता, संगठन, कोर कमेटी, प्रजातांत्रिकता, आन्दोलन आदि के विषय में पोजिटिव निगेटिव सभी तरह के विचारों को रखकर अपने मन की भावनाओं को उजागर किया ! इन सब बातों का यदि निष्कर्श निकाला जाय तो मेरी दृष्टि में कुछ मित्रों को अपवाद स्वरूप छोड दिया जाय तो, अधिकांश मित्र एक अज्ञात भय जिसे सीधा व्यक्त ना करके परोक्ष रूप में से ग्रसित नजर आये । इसका मतलब हमारा समाज अभी भी उसी राजतंत्र मानसिकता में जी रहा है, जिस मानसिकता में राजा ने आदेश दे दिया उसका आंख बंद कर पालन करना उसमें बुद्धिविवेक की गुजाईस नहीं छोडना । इस तरह की मानसिकता राजतंत्र व्यवस्था में सहीं था पर आज हम प्रजातंत्र के युग में जी रहे हैं प्रजातंत्रिक व्यवस्था में किसी की अभिव्यक्ति को रोका नहीं जा सकता भावनात्मक माध्यम से तो कभी भी नहीं ! यदि हम उस मानसिकता के साथ प्रजातंत्र में जीने का प्रयास करेंगे तो कठिनाई होगी ! आज केवल भावुकता के कारण अन्यों को सत्तासीन कर देते हैं ! सोचते हैं कि समाज तो तैयार दिख रहा था लेकिन परिणाम निराशाजनक क्यों आये । बस इसी कारण से ,आज हम राजतंत्र के समय से चल रही हमारी सामाजिक, धार्मिक तत्व को विकसित करने का काम किये तो, उसके कारण हम इन बिन्दुओं पर सफल होते नजर आ रहे हैं ,पर वर्तमान प्रजातंत्र की राजनीति में यदि वहीं राजतंत्र का नुख्सा अपनायेंगे तो पर्याप्त राजनीतिक सफलता संभव नहीं इसलिये मैंने एक बार नहीं कई बार कहा है । "भाषा, धर्म, संस्कृति को पकडकर रखो जकडकर रखो, लेकिन वर्तमान में जियो"
-gulzar singh markam
हमारे फेसबुक मित्रों ने एक कविता पर बहस में भाग लेते हुए एकता, बिखराव, गददारी, व्यक्तिवाद, पारदर्शिता, संगठन, कोर कमेटी, प्रजातांत्रिकता, आन्दोलन आदि के विषय में पोजिटिव निगेटिव सभी तरह के विचारों को रखकर अपने मन की भावनाओं को उजागर किया ! इन सब बातों का यदि निष्कर्श निकाला जाय तो मेरी दृष्टि में कुछ मित्रों को अपवाद स्वरूप छोड दिया जाय तो, अधिकांश मित्र एक अज्ञात भय जिसे सीधा व्यक्त ना करके परोक्ष रूप में से ग्रसित नजर आये । इसका मतलब हमारा समाज अभी भी उसी राजतंत्र मानसिकता में जी रहा है, जिस मानसिकता में राजा ने आदेश दे दिया उसका आंख बंद कर पालन करना उसमें बुद्धिविवेक की गुजाईस नहीं छोडना । इस तरह की मानसिकता राजतंत्र व्यवस्था में सहीं था पर आज हम प्रजातंत्र के युग में जी रहे हैं प्रजातंत्रिक व्यवस्था में किसी की अभिव्यक्ति को रोका नहीं जा सकता भावनात्मक माध्यम से तो कभी भी नहीं ! यदि हम उस मानसिकता के साथ प्रजातंत्र में जीने का प्रयास करेंगे तो कठिनाई होगी ! आज केवल भावुकता के कारण अन्यों को सत्तासीन कर देते हैं ! सोचते हैं कि समाज तो तैयार दिख रहा था लेकिन परिणाम निराशाजनक क्यों आये । बस इसी कारण से ,आज हम राजतंत्र के समय से चल रही हमारी सामाजिक, धार्मिक तत्व को विकसित करने का काम किये तो, उसके कारण हम इन बिन्दुओं पर सफल होते नजर आ रहे हैं ,पर वर्तमान प्रजातंत्र की राजनीति में यदि वहीं राजतंत्र का नुख्सा अपनायेंगे तो पर्याप्त राजनीतिक सफलता संभव नहीं इसलिये मैंने एक बार नहीं कई बार कहा है । "भाषा, धर्म, संस्कृति को पकडकर रखो जकडकर रखो, लेकिन वर्तमान में जियो"
-gulzar singh markam
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