“क्यों नहीं मिले सामुदायिक
हक”
(वन एवं राजस्व विभाग
के झगडे में संरक्षित वनों के नाम पर बेदखली का शिकार होता आदिवासी समुदाय)
मध्यप्रदेश
एवं छत्तीसगढ राज्य
में आजादी के
पूर्व प्रचलित व्यवस्थाओं
के इतिहास के
अनुशार महल,
दुमाला, मालगुजार जमींदार ,जागीरदार
के नियंत्रण में
ग्रामीण व्यवस्था को स्वीकार
किया गया रैयतवारी एवं मसाहती
ग्रामों की व्यवस्था
को तत्कालीन राज्स्व
विभाग के नियंत्रण
में सोंपा गया
आजादी के पहले
भी सभी तरह
के राजस्व ग्रामों
के राजसव अभिलेखों
में ग्राम की
कुछ भूमियों को
राजस्व अभिलेखों में दो
तरह से दर्ज
किया जाते रहा
है पहला तो
इस तरह की
भूमियों के बडे
झाड के जंगल
,छोटे झाड के
जंगल, झुडपी,
जंगल ,जंगलात
,जंगल खुर्द जंगल,
जंला ,पहाड ,चटटान
,पठार ,घांस ,चरनोई चारागाह,
गोचर ,बीड ,सरना
,करात ,कदीम के
नाम से दर्ज
किया जाता रहा
है इन्हें मद
या नोईयत कहा
जाता था ।
दूसरा इन्हीं जमीनों को समांतर रूप से राजस्व
अभिलेखों में गोठान, खलियान ,कब्रस्तान, श्मशान ,बाजार, पाठशाला और खेलकूद के मैदान
,मुर्दा मवेशी चीरने फाडने के स्थान, जलाउ लकडी कृषि औजार की लकडी ,झोपडी बनाने के
बांस बल्ली लाने के स्थान, चराई के स्थान ,मुरम मिटटी एवं पत्थर के स्थान ,धार्मिक
,सामाजिक रीतिरिवाजों के लिये निर्धारित स्थान मछली पकडने ,सन सडाने ,सिंचाई के अधिकार , रास्तों सडक मार्ग से आने जाने
के अधिकार आदि के नाम से भी दर्ज किया जाता रहा है जिसे प्रयोजन कहा जाता था । मद और प्रयोजन को समांतर रूप से दर्ज किये जाने
की व्यवस्था सभी तरह के ग्रामों में प्रचलित थी लेकिन इनमें से महल, दुमाला, मालगुजारी
,जमींदारी, जागीरदारी, ग्रामों की भूमियों को भूस्वामी हक की भूमि माना जाकर ग्रामीणों
को उनके उपयोग की छूट मिली हुई थी ।
1950 में भारतीय संविधान लागू किये जाने के बाद
सबसे पहला क्रांतिकारी कानून जमींदारों ,जागीरदारों एवं मालगुजारों के उन्मूलन को बनाया
गया इस कानून के अनुशार स्वामित्वधिकारों के संसाधनों को ही अर्जित किया गया यानि विभिन्न
मदों और उन्हें विभिन्न प्रयोजनों के लिये दर्ज किये जाने वाली जमीनों को अर्जित कर
लिया गया ।
इन अर्जित संसाधनों
की मदों एवं प्रयोजनों को यथावत रखा जाकर इन संसाधनों को राजस्व अभिलेखों में दखल रहित भूमि के रूप में दर्ज किया और दखल रहित
भूमि के रूप में ही इन संसाधनों के उपभोग ओर उपयोग को सुनिश्चित किये जाने से संबंधित
राजस्व कानूनों के प्रचलित प्रावधानों को लागू किया या इस तरह के प्रावधान राजस्व कानूनों
में शामिल किये गये ।
इस तरह से वर्तमान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ राज्य में दखल रहित जमींनों यानि
विभिन्न मदों या नोईयत में दर्ज विभिन्न सार्वजनिक एवं निस्तारी प्रयोजनों की जमीनो
को लेकर समान व्यवस्था लागू कर भू राज्स्व संहिता 1954 जिसे राज्य पुनर्गठन के बाद
भू राजस्व संहिता 1959 के रूप में लागू किया गया के अध्याय 18 में दखल रहित भूमि के रूप में उल्लेखित किया जाकर प्रावधान
किये गये उन प्रावधानों के अनुशार अलग अलग धाराओं से संबंधित नियम राज्य सरकार ने राजपत्र
में अधिसूचित किये । राजस्व अभिलेखों में विभिन्न मदों एवं प्रयोजनो के लिये दर्ज दखल
रहित जमीनों को भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 29 के अनुशार संरक्षित वन अधिसूचित
किये जाने की कार्यवाहियां वन विभाग के द्धारा 1954 में वर्ष 1955 में एवं वर्ष 1958 में की रीवा राज दरबार के इलाकों सं संबंधित
1950 में लागू किये गये विन्ध्य जमींदारी विनास कानून 1950 के अनुशार अर्जित किये संसाधनों
को अर्जन के बाद रीवा राज दरबार द्धारा दिनांक 8 फरवरी 1927 में जारी आदेश के अनुशार
संरक्षित वन घोषित संसाधन मान लिया गया इन संसाधनों को राजपत्र में धारा 29 के अनुशार
अधिसूचित ही नहीं किया ।
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