मध्यप्रदेश में 89 विकासखण्ड और 4 जिलों में पांचवी अनुसूचि क्षेत्र घोषित है । संविधान की पांचवीं अनुसूचि में इन क्षेत्रों के आदिवासियों के लिये स्वशासन की व्यवस्था की गई है । परन्तु इन क्षेत्रों में नगरीय निकाय चुनाव के माध्यम से दोहरी शासन व्यवस्था लगातार थोपी जा रही है । एक ओर संविधान आदिवासियों को स्वशासन का अधिकार देता है, दूसरी ओर राज्य में बनने वाली कोई भी सरकार हो संविधान के आशय और मंसूबों पर पानी फेरते हुए आदिवासियों पर दोहरा शासन थोप रहा है । जानकारी के अभाव में समुदाय चुप है, परन्तु सत्ताधारी और विपक्षी दलों के आदिवासी समुदाय के आरक्षित क्षेत्रों के जनप्रतिनिधि जिन्हें समुदाय विधान सभा और लोकसभाओं में चुनकर भेजता है क्यों चुप हैं । क्या इन्हें मालूम नहीं कि इससे समुदाय का कितना नुकशान हो रहा है । एक नजर हम एैसे क्षेत्रों के नगर परिषद और नगर पालिका, निकाय की तरफ देखे तो एैसे निकाय क्षेत्र लगातार अपने पैर पसारते हुए ग्रामों के अस्तित्व को समाप्त कर रहे हैं । पेसा कानून के तहत दिये गये पंचायती राज अधिनियम के आंशिक अधिकार को भी शनैः शनैः समाप्त कर रहे हैं । स्वतंत्र ग्रामों और ग्राम पंचायतो का नगर निकायों में वार्ड के रूप में शामिल किया जाना, जिस पर गैर आदिवासियों का शासन होता है ,इसी शडयंत्र का हिस्सा है । अतः संविधान में प्रदत्त आदिवासी स्वशासन पर दोहरी शासन व्यवस्था बर्दास्त नहीं होना चाहिये । इसलिये आदिवासी समुदाय, एैसे जनप्रतिनिधियों जिनके विधानसभा और लोक सभा क्षेत्रों में नगर निकाय हैं उनसे नगर निकाय चुनाव को निरस्त कराने का दबाव बनायें । यही हमारे पांचवीं अनुसूचि की जागरूकता का परिचय होगा । अन्यथा नगरीय निकाय आपके अनुसूचित घोषित क्षेत्रों को कब निगल जायेंगी पता भी नहीं चलेगा।-gsmarkam
"नगर निकाय चुनाव और पांचवीं अनुसूचि" भाग 2
अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निकाय अवैध हैं । देखें भारतीय संविधान की धारा ।
अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निकाय अवैध हैं । देखें भारतीय संविधान की धारा ।
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