पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियर और
डाक्ट्रेट युवा जब
अपने शैक्षणिक स्तर
से नीचे की
नौकरियों के लिये
आवेदन करता है
, तब इसे रोजगार
की मजबूरी नहीं
तो क्या कहेंगे
। इंजीनियरिंग का
युवा बैंक का
मेनेजर बाबू बन
रहा है एम
बी ए पास
युवा शिक्षक बनने
के लिये अप्लाई
कर रहा है
। कही कहीं
तो ग्रेजुएट लोग
पुलिस और चपरासी
का इन्टरव्यू देते
दिखाई दे रहे
हैं क्यों ।
यही ना कि
जिस विषय पर
डिप्लोगा डिग्री लिया है
उस पद पर
वह इसलिये अपने
आप को अक्षम
पाता है उसकी
माली हालत नहीं
कि वह लगातार
संघर्ष कर सके
अंतत बेरोजगारी के
कारण अपनी शिक्षा
और योग्यता से
समझौता कर एैसे
कदम उठाता है
। युवाओं में
कमी है या
शासन प्रशासन की
व्यवस्था में कमी
है । इसे
समझना होगा ।
मिलिट्री सर्विस में जाने
वाले छोटी पोस्ट
के युवा केवल
देश भक्ति के
जज्बे से सैनिक
नहीं बन रहे
हैं, केवल बेरोजगारी
के चलते लाखों
युवा मिलिट्री भर्ती
में लाईन से
खडे दिखाई देते
हैं । क्या
इनमें इतनी देशभक्ति
की भावना है
? नहीं ,यह केवल
बेरोजगारी के कारण
की भीड है
। एैसी बात
नहीं कि सभी
में देश भक्ति
की भावना नहीं
। पर अपवाद
ही कहा जा
सकता है ।
युवाओं का यह
गुस्सा यह देश
भक्ति वहां दिखाई
देता है जब
हडताल और दंगे
में भाग लेकर
वह सरकारी संपत्ति
बस ट्रकों पर
अपना गुस्सा उतारता
और निरीह बेकसूर
लोगों की हत्या
करने में अपने
आप को क्रांतिकारी
साबित करने का
प्रयास करता है
। गल्ति को
यदि ढूंढें तो
पता चलता है
कि एक इंजीनियर
बनाने के लिये
एक डाक्टर के
लिये सरकार लाखों
रूपये खर्च कर
रही है डिग्री
देकर उन्हे रोजगार
स्वरोजगार नहीं देती
उसे स्नातक डिग्री
धारी मानकर किसी भी विषय के पद पर आवेदन की छूट देती है तब वह उसमें सलेक्ट होकर उस
विषय की सरकारी सेवा में पदस्थ होकर वांछित विषय वाले आवेदक को बेरोजगार कर देता है
। आखिर एैसा क्यों । जबकि ग्रेजुएशन होने के
लिये वह अपनी रूचि के अनुशार विषय चयन करता है तब वह जिसमें अरूचि समझकर उस विषय पर
ग्रेजुएशन नहीं किया अब वहीं विषय उसके लिये रूचिकर क्यों हो जाता है । कोई कारण नहीं
केवल बेरोजगारी उसकी रूचि बदल देती है । मेरा मानना है कि जिस विषय और जिस योग्यता
के लिये पद की रिक्तियां हैं उन्हे उसी पद हेतु आवेदन कराया जाना चाहिये । अन्यथा लगातार
अरूचिकर विषय और बेरोजगारी के कारण व्यवस्था लगातार गंभीर होती जायेगी । एक इंजीनियर
या डाक्टर आई ए एस बनेगा तब केवल एक विषय का जानकार होगा जबकि कलेक्टर बनकर उसे सभी
विभाग की मानसिकता को समझना आवश्यक है जिसके लिये आर्ट जैसे विषय निर्धारित हैं पर
सब गडबडझाला है । इस सबका कारण केवल बेरोजगारी
है । बेरोजगारी के कारण राष्ट्रीयता पनप नहीं रही जिसे दूर किये बिना देश के
सुन्दर भविष्य की कल्पना करना बेमानी होगी । -gsmarkam
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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