"रोजी रोटी पर बंधा अनुशासन"
देश की मिलिट्री और पुलिस आज रोजी रोटी को ध्यान में रखकर काम करने को मजबूर दिखाई देती है,अन्यथा शासकों के उल्टे सीधे निर्णयों का आंख बंद करके पालन ना करती । इनकी शहादत के बाद उनका परिवार पेंशन के लिये तरसता है, जवानों पर आम जन पत्थरों से हमला कर देता है, ये केवल राष्ट्रवाद के नाम पर संयमित रहते हैं ,इनका यह राष्ट्रवाद मजबूरी में रोजी रोटी के इर्दगिर्द घूमता नजर आता है । ये मजबूरी में अपने ही भाई बन्धु पर लाठी,डंडे और गोलियां बरसाते हैं । बगावत केवल इसलिये नहीं होती क्योंकि आम सैनिकों के उपर सत्ताधीशों के द्वारा चयनित बडे अधिकारी बैठाये जाते हैं,नौकरी जाने का दंडित होने का भय बनाकर रखा जाता है,ताकि शासकों के उल्टे सीधे गलत निर्णय पर भी सैनिक बगावत ना कर सके,क्योंकि रोजी रोटी का सवाल है । सैनिक मशीन नहीं वह भी किसी का भाई, किसी का बेटा, किसी का बाप, किसी का सुहाग है, किसी का रिस्तेदार है उसके दिल में भी मानवीय संवेदना है पर यह संवेदना संबंधियों की रोटी के लिये सैनिक के दिल को पत्थर बना देती है । यही स्थिती अंग्रेजी शासन काल में भी थी । ध्यान रहे सैनिको के बगावत ने देश को अंग्रेजो से मुक्ति दिलाई थी । आज के सगााधारी देश के नागरिकों के साथ अंगेजो की तरह मनमानी कर देश को बर्बाद करने में लगा है क्या भारत में सैन्य बगावत की पुनरावृत्ति संभव है ।-gsmarkam
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