"निरंकुश सत्ताऐं और साहित्यकार कवियों चित्रकारों की भूमिका"
किसी देश का शासक निरंकुश होकर मनमानी करने लगे विपक्ष की भूमिका अप्रासंगिक हो जाये तब साहित्यकारों कवियों चित्रकारों तथा मीडिया को विपक्ष की भूमिका में आ जाना चाहिये ताकि निरंकुश सत्ता को पटरी पर लाया जा सके । कुछ साहित्यकार मीडिया कवि भले ही सत्ता के चाटुकार हो जाते हैं इसका मतलब यह नहीं कि सभी कवियों कलाकारों साहित्यकारों की संवेदनायें मर जाती हैं, नानक और कबीरदास जैसे कवि सत्ताओं के विरूद्ध जोखिम उठना नहीं भूलते । आचार्य रजनीश जैसे विद्धवान हर विषय पर बेबाकी से लिखने और कहने में कोई कोर कसर नहीं छोडते । भारत देश आज संकृमण काल से गुजर रहा है एैसे में चाटुकारों को एक किनारे कर संवेदनशील कवि साहित्यकार चित्राकारों की फौज तैयार करने की आवश्यकता है मूलनिवासियों आदिवासियों में इस विषय के अग्रणी लोग अब अपनी असली भूमिका में आ जायें हास्य और मनोरंजन के साथ साथ ज्वलंत विषयों पर साहित्य और कवितायें लिखें समाज को अपनी कविताओं लेखन से आन्दोलित करें ताकि जनमानस को हकीकत से अवगत कराया जा सके । भारतीय परिवेश में जिन साहित्यकारों से कवियों से अपेक्षा थी वे सारे के सारे सत्ता के चाटुकार हो गये हैं इसमें मीडिया की भूमिका अग्रणी है ,इसलिये समुदाय में अग्रणी नेतृत्व के साथ साथ मीडिया सहित मूलनिवासी कवियों रचनाकारों की भी फौज तैयार करने की आवश्यकता है ।-gsmarkam
किसी देश का शासक निरंकुश होकर मनमानी करने लगे विपक्ष की भूमिका अप्रासंगिक हो जाये तब साहित्यकारों कवियों चित्रकारों तथा मीडिया को विपक्ष की भूमिका में आ जाना चाहिये ताकि निरंकुश सत्ता को पटरी पर लाया जा सके । कुछ साहित्यकार मीडिया कवि भले ही सत्ता के चाटुकार हो जाते हैं इसका मतलब यह नहीं कि सभी कवियों कलाकारों साहित्यकारों की संवेदनायें मर जाती हैं, नानक और कबीरदास जैसे कवि सत्ताओं के विरूद्ध जोखिम उठना नहीं भूलते । आचार्य रजनीश जैसे विद्धवान हर विषय पर बेबाकी से लिखने और कहने में कोई कोर कसर नहीं छोडते । भारत देश आज संकृमण काल से गुजर रहा है एैसे में चाटुकारों को एक किनारे कर संवेदनशील कवि साहित्यकार चित्राकारों की फौज तैयार करने की आवश्यकता है मूलनिवासियों आदिवासियों में इस विषय के अग्रणी लोग अब अपनी असली भूमिका में आ जायें हास्य और मनोरंजन के साथ साथ ज्वलंत विषयों पर साहित्य और कवितायें लिखें समाज को अपनी कविताओं लेखन से आन्दोलित करें ताकि जनमानस को हकीकत से अवगत कराया जा सके । भारतीय परिवेश में जिन साहित्यकारों से कवियों से अपेक्षा थी वे सारे के सारे सत्ता के चाटुकार हो गये हैं इसमें मीडिया की भूमिका अग्रणी है ,इसलिये समुदाय में अग्रणी नेतृत्व के साथ साथ मीडिया सहित मूलनिवासी कवियों रचनाकारों की भी फौज तैयार करने की आवश्यकता है ।-gsmarkam
Comments
Post a Comment