"एक आस एक प्रयास"
(आदिवासी जनप्रतिनिधि अपने संविधान प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने के लिये संबंधित अपनी पार्टी आस्था से ऊपर उठकर संगठित प्रयास करें।)
भारतीय संविधान में कुछ कमियों के बावजूद अजजा के विकास के लिये सबसे अधिक प्रावधान जोड़े गये हैं। पांचवीं ,छठीं अनुसूचि के साथ पेसा और वनाधिकार से संबंधित कानून आदिवासी समुदाय के स्वशासन और समृद्धि के लिये अनुकूल अवसर देते हैं। परंतु दुर्भाग्य से देश की आजादी और संविधान निर्माण के बाद आदिवासी हितों पर उनके जनप्रतिनिधी जानकारी के अभाव में या,दल विशेष में आदिवासी अधिकारों के प्रति उदासीनता के कारण यह विषय राष्ट्रीय पटल पर उभरकर नहीं आ सका। जबकि आदिवासी की सुरक्षा,संरक्षण और विकास का मुद्दा संयुक्त राष्ट्रसंघ (UNO)ने पहले ही तय कर रखा है।जिन देशों तथा वहां के आदिवासी जनप्रतिनिधियों ने इसे गंभीरता से लिया वहां उनकी अपनी स्वतंत्र पहचान और अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। आज सूचना तंत्र से विश्वव्यापी ज्ञान के आदान प्रदान ने भारत देश के आदिवासियों को भी अधिकारों के प्रति सजग किया है। पढ़ा लिखा आदिवासी युवा अपने देश और संयुक्त राष्ट्रसंघ के संविधान के पन्नों को पलटना शुरू कर दिया है। ऐसे में आदिवासी जन गण का अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों की उदासीनता पर आक्रोश स्वाभाविक है।जिसे दल विशेष से ऊपर उठकर समुदाय हित में समस्त आदिवासी समुदाय के जनप्रतिनिधि और समुदाय का बौद्धिक वर्ग एवं विषय के जानकारों से मिलकर सामूहिक बैठकों का आयोजन कर समस्या और अब तक हुए विकास तथा इसमें हुई कमियों और अच्छाईयों का मूल्यांकन कर ठोस रास्ता निकाले,ताकि राष्ट्रीय तथा अंतराष्ट्रीय संविधान के मंशानुरूप परिणाम हासिल हो सके। इसकी समीक्षा के लिये मप्र सरकार ने सबसे अच्छा अवसर 9 अगस्त को प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश घोषित करके दिया है। जिसमें आदिवासी समुदाय अपने विकास का मूल्यांकन कर कमी की पूर्ति हेतु बैठकर सार्वजनिक सहमति से रणनीति तैयार करें। इसी रणनीति के तहत मप्र में आदिवासी जनप्रतिनिधियों तथा समुदाय के प्रबुद्ध वर्ग की संगोष्ठि विधान सभा के आगामी वर्षा सत्र भोपाल में विभिन्न सामाजिक संगठनों के माध्यम से नियत दिनांक को आयोजित की जा रही है। अत: समुदाय के समस्त जनप्रतिनिधि एवं प्रबुद्ध वर्ग अनिवार्यतः उपस्थित होकर श्रेय और प्रेय का भागीदार बनें।
(गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)
(आदिवासी जनप्रतिनिधि अपने संविधान प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने के लिये संबंधित अपनी पार्टी आस्था से ऊपर उठकर संगठित प्रयास करें।)
भारतीय संविधान में कुछ कमियों के बावजूद अजजा के विकास के लिये सबसे अधिक प्रावधान जोड़े गये हैं। पांचवीं ,छठीं अनुसूचि के साथ पेसा और वनाधिकार से संबंधित कानून आदिवासी समुदाय के स्वशासन और समृद्धि के लिये अनुकूल अवसर देते हैं। परंतु दुर्भाग्य से देश की आजादी और संविधान निर्माण के बाद आदिवासी हितों पर उनके जनप्रतिनिधी जानकारी के अभाव में या,दल विशेष में आदिवासी अधिकारों के प्रति उदासीनता के कारण यह विषय राष्ट्रीय पटल पर उभरकर नहीं आ सका। जबकि आदिवासी की सुरक्षा,संरक्षण और विकास का मुद्दा संयुक्त राष्ट्रसंघ (UNO)ने पहले ही तय कर रखा है।जिन देशों तथा वहां के आदिवासी जनप्रतिनिधियों ने इसे गंभीरता से लिया वहां उनकी अपनी स्वतंत्र पहचान और अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। आज सूचना तंत्र से विश्वव्यापी ज्ञान के आदान प्रदान ने भारत देश के आदिवासियों को भी अधिकारों के प्रति सजग किया है। पढ़ा लिखा आदिवासी युवा अपने देश और संयुक्त राष्ट्रसंघ के संविधान के पन्नों को पलटना शुरू कर दिया है। ऐसे में आदिवासी जन गण का अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों की उदासीनता पर आक्रोश स्वाभाविक है।जिसे दल विशेष से ऊपर उठकर समुदाय हित में समस्त आदिवासी समुदाय के जनप्रतिनिधि और समुदाय का बौद्धिक वर्ग एवं विषय के जानकारों से मिलकर सामूहिक बैठकों का आयोजन कर समस्या और अब तक हुए विकास तथा इसमें हुई कमियों और अच्छाईयों का मूल्यांकन कर ठोस रास्ता निकाले,ताकि राष्ट्रीय तथा अंतराष्ट्रीय संविधान के मंशानुरूप परिणाम हासिल हो सके। इसकी समीक्षा के लिये मप्र सरकार ने सबसे अच्छा अवसर 9 अगस्त को प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश घोषित करके दिया है। जिसमें आदिवासी समुदाय अपने विकास का मूल्यांकन कर कमी की पूर्ति हेतु बैठकर सार्वजनिक सहमति से रणनीति तैयार करें। इसी रणनीति के तहत मप्र में आदिवासी जनप्रतिनिधियों तथा समुदाय के प्रबुद्ध वर्ग की संगोष्ठि विधान सभा के आगामी वर्षा सत्र भोपाल में विभिन्न सामाजिक संगठनों के माध्यम से नियत दिनांक को आयोजित की जा रही है। अत: समुदाय के समस्त जनप्रतिनिधि एवं प्रबुद्ध वर्ग अनिवार्यतः उपस्थित होकर श्रेय और प्रेय का भागीदार बनें।
(गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)
Comments
Post a Comment