किसी समुदाय का पर्सनल ला जाति नहीं धर्म संस्कृति संस्कार परंपराओं पर आधारित है"
जनजाति समुदाय की महिला ने अलग जाति के पुरूष से शादी कर ली तो वह उस जाति की धर्म संस्कृति परंपरा से शासित होकर अपनी मूल पहचान को खो देती है। इसलिए उस महिला पर एट्रोसिटी एक्ट लग सकता है। उसके द्वारा एट्रोसिटी एक्ट लगाना अवैध है। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट भी यही फैसला देगा। और जनजाति की महिला या पुरुष भी यदि गैर जनजाति पर इस एक्ट का उपयोग करना चाहता है तो उसे जनजातिय होने का मापदंड अपनाना होगा। इसकी पहली शर्त है कि वह किस पर्सनल ला से संबंध रखता है। और सभी समुदाय के पर्सनल ला प्रथक हैं। आपको अवगत हो कि पर्सनल ला का आधार धर्म संस्कृति परंपरा और मान्यताएं हैं। ऐसे में जनजातीय समुदाय यदि प्रथक धर्म का पालन कर रहा है तो वह जनजाति नहीं रहेगी। इस तरह के केस भी सुप्रीम कोर्ट में जीते गये हैं। ट्राईबल धर्मकोड के नाम पर हम सभी सेमिनार और आंदोलन इसलिए कर रहे हैं,ताकि हमें जनगणना में प्रथक कालम मिल सके। ताकि भविष्य में हमें किसी पर्सनल ला की जद में लाकर हमारे जनजातीय अधिकार छीनने ना जा सकें। सावधान यदि एट्रोसिटी आरक्षण या अन्य मुद्दों पर लाभ लेते रहना है तो धर्म कालम पर आंदोलन करो। अन्यथा १९५१ के बाद सब जनजाति हिंदू हो चुकी है। अब जाति के नाम पर लाभ मिलने की ग्यारंटी नहीं होगी।(झारखंड राज्य का निर्णय देखें)
(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंसक्रांआं)
जनजाति समुदाय की महिला ने अलग जाति के पुरूष से शादी कर ली तो वह उस जाति की धर्म संस्कृति परंपरा से शासित होकर अपनी मूल पहचान को खो देती है। इसलिए उस महिला पर एट्रोसिटी एक्ट लग सकता है। उसके द्वारा एट्रोसिटी एक्ट लगाना अवैध है। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट भी यही फैसला देगा। और जनजाति की महिला या पुरुष भी यदि गैर जनजाति पर इस एक्ट का उपयोग करना चाहता है तो उसे जनजातिय होने का मापदंड अपनाना होगा। इसकी पहली शर्त है कि वह किस पर्सनल ला से संबंध रखता है। और सभी समुदाय के पर्सनल ला प्रथक हैं। आपको अवगत हो कि पर्सनल ला का आधार धर्म संस्कृति परंपरा और मान्यताएं हैं। ऐसे में जनजातीय समुदाय यदि प्रथक धर्म का पालन कर रहा है तो वह जनजाति नहीं रहेगी। इस तरह के केस भी सुप्रीम कोर्ट में जीते गये हैं। ट्राईबल धर्मकोड के नाम पर हम सभी सेमिनार और आंदोलन इसलिए कर रहे हैं,ताकि हमें जनगणना में प्रथक कालम मिल सके। ताकि भविष्य में हमें किसी पर्सनल ला की जद में लाकर हमारे जनजातीय अधिकार छीनने ना जा सकें। सावधान यदि एट्रोसिटी आरक्षण या अन्य मुद्दों पर लाभ लेते रहना है तो धर्म कालम पर आंदोलन करो। अन्यथा १९५१ के बाद सब जनजाति हिंदू हो चुकी है। अब जाति के नाम पर लाभ मिलने की ग्यारंटी नहीं होगी।(झारखंड राज्य का निर्णय देखें)
(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंसक्रांआं)
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