"गोंडवाना गोटुल विश्वविद्यालय"
भारतीय संविधान व कानूनों के मंशा के अनुरूप समाज में आदिवासी इतिहास, संस्कति, परम्पराओं, गोटुल, लोकनृत्य, लोककलाओं के प्रति युवाओं को शिक्षित, प्रशिक्षित कर आदिवासियों का समीकरण, प्रकृतिवाद का संरक्षण, विस्तारण कर आदिवासी समाज को मुुख्य धारा से जोडना ,एवं राष्ट्र निर्माण में सहभागिता।
विजन :-
आदिवासी समाज की इतिहास, संस्कति, परम्परा और प्रकृतिवाद के आधार पर समतार्पूण समाज निर्माण।
मिशन:-
प्रकतिवाद के आधार पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक क्षमता वर्धन कर आदिवासी युवाओं का सक्षमीकरण और समुदाय का विकास व पहचान की सुनिश्चितता।
उददेश्य :-
1- आदिवासी गोटुल विश्व विद्यालय की स्थापना।
2- पारम्परिक ज्ञान, संस्कति, लोक-कला, लोक-संगीत, परम्परा के प्रति संवेदनशीलता,व उसका सरंक्षण।
3- आदिवासी युवाओं की नेतृत्व क्षमता का विकास एवं आजीविका की सुनिश्चतता।
4- आदिवासी समाज में प्रचलित ?
गोटुल सहित अन्य प्रगतिशील परम्पराओं व ज्ञान का
विस्तारीकरण।
5- आदिवासी ज्ञान व प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित आजीविका के संसाधनों का
उन्नतीकरण व युवाओं का उनसे जुडाव।
6- विभिन्न राष्ट्रीय व राज्य की योजनाओं का प्रशिक्षण व क्रियान्वयन सुनिश्चत कर
आदिवासी समाज की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, पहचान को मजबूत आधार प्रदान करना।
7- आदिवासी समुदाय से जुडी विभिन्न जानकारियों, ज्ञान, परम्पराओं का
दस्तावेजीकरण, अध्ययन सामग्री का साहित्य तैयार कर पुरातन संस्कति, भाषा व लिपि का सरंक्षण।
8-आदिवासियों के पारम्परिक खेल-कूद ज्ञान को प्रोत्साहन व सरंक्षण कर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी तैयार करना ।
9- सामाजिक व स्थानीय स्तर पर जेण्डर संवेदीकरण ।
10. भारतीय संविधान, पांचवी अनुसूची सहित विभिन्न कानून, आदिवासी अधिकार, संरक्षण और विकास पर प्रशिक्षण व आदिवासियों को समाज की मुख्य धारा में स्थापित करना।
प्रस्तावना:-
गोटूल - गोटूल एक प्राचीनतम संस्थान है, यह एक प्रकार की लिविंग यूनिवर्सिटी है, जहां पर न तो कोई पुस्तक है अैार न ही कोई टेस्ट पेपर(परीक्षा), फिर भी जीवन जीने की शिक्षा सिखाई जाती है। यहां छात्र ही श्क्षिक है, और षिक्षक ही छात्र है, यह आश्चर्यजनक है! गोटूल आमतौर पर ग्राम के बाहर स्थित होता है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है, कि जब पश्चिमी सभ्यता में विश्वविद्यालय की परिकल्पना भी नहीं की गई थी, उसके बहुत पहले आदिवासियों ने युवाओं को शिक्षित करने के लिए खाली जमीन को इस केन्द्र
के लिए आरक्षित कर दिया था। उन्होंने गोटूल उद्यान में सब्जियां उगाई,
कौशल उन्नयन के साथ समुदाय को सिखाया कि यू बच्चों के साथ कैसे रहा जाता है। बच्चे कैसे जिम्मेदार युवा बनकर समाज को प्रगति के पथ पर ले जा सकते हैं।
गोटूल एक सांस्कृतिक केन्द्र भी है, जहां मारिया समुदाय का 6 साल से अधिक उम्र के हर युवा स्वचालित रूप से इसका सदस्य है। गोटूल में समाज के युवा- युवितयां साथ मिलकर हंसी -मजाक करते हैं, चुटकले, कहानियां व अपने प्राकतिक ज्ञान, अनुभव का आदान-प्रदान करते हुए एक-दूसरे से सीखते हैं। लोकगायन व लोकनृत्यों को प्रतिदिन की जीवन शैली में रचाते-बसाते हुए उनका व अपनी परम्पराओं का सरंक्षण व सवंर्धन करते है,जानबूझकर गलती होने, या के नियम भंग करने पर दण्डित होते हैं, और उनसे सीखते भी है। वेरियर एल्विन ने गोटूल के बारे में लिखते हुए घटना का जिक्र किया, जिससे कि घोटूल को समझा जा सकता है- घोटूल में सांस्कतिक आयेाजन के दौरान एक लडकी गाते-गाते अचानक घबरा गई, उसे अपनी साडी में कुछ अजीब से महसूस हुआ, साडी फटकार देखने पर पता चला कि उसकी साडी में किसी ने जिंदा मेढक डाल दिया था। लडकी ने शरारत करने वाले लडके(मोंगार) को रात में सबक सिखाने के का निणर्य लिया। बाकी उपस्थित लोग यह सब देखकर खुलकर हंसते है । इसी प्रकार एक लडकी का पेट खराब था, परंतु वो गोटूल में बनी रही, वो यह सब मजा मिस नहीं करना चाहती थी, पर वो ज्यादा देर तक लोकनृत्य का मजा नहीं ले पाई, और न ही वहां से ज्यादा दूर ही जा सकी, गंध(दुर्गंध) की वजह से पकड़ी गई। भीड ने उसे, उसके इस गलत व्यवहार के लिए 10 खरगोश कूदने (खरगोश की तरह कूदना) के लिए दण्डित किया।
गोटूल और उनकी गतिविधि :- लकड़ी की घंटी बजने के साथ ही गोटूल की औपचारिक शाम की गतिविधियों के शुरू होने के संकेत मिलने प्रारंभ हो जाते है। नए नामांकित बच्चों ने पुराने बडे बच्चों को अपना काम दिखाया(बच्चों के द्वारा हस्तशिल्प आदि) व उसका परीक्षण करवाकर दिशानिर्देश
प्राप्त किए । यह काम खासकर पत्ते बुनाई, सब्जी काटने, राख की सफाई और लकडी की नक्कासी में कौशल के लिए परीक्षण था (किसी कोैशल उन्नयन केन्द्र में जिस प्रकार टास्क का परीक्षण किया जाता है), कुछ बेकार के काम के लिए उन्हें दण्डित भी किया गया, और दण्ड वही खरगोश कूद, पिटाई तथा एक पैर पर खडा होना, या छत पर उल्टा लटकना आदि था । उसके पश्चात उन्होने कविता प्रतियोगिता, पहेली कर ज्ञान का आदान-प्रदान चुटकीले तरीेके से किया, जिसमें सभी को बहुत मजा आता है। लड़के -लड़कियां एक दूसरे को देर रात तक एक दुसरे को चिढाते और तंग करते रहे। गांव के मांझी(कोटवार) ने कक्षा के कप्तान को बुलाया, जिन्होनें उपस्थित लडके- लडकियों के नाम पढे (उपस्थिति)। शाम ढलने के साथ-साथ सब उपस्थित होते जाते है। एक लडकी(मोटियारी) ने अपने पुरूष साथी(जिसे वो पंसद करती है) को तेल से मालिश किया और उसके सिर से जुएं निकाले, व कहा कि वो छोटे बालों में ज्यादा अच्छा दिखता है और उसके बाद लडकी अपने कोमल हाथों से उसके पूरे शरीर को दबाती है, जोश व उत्साह बढने के साथ-साथ लडके ने भी लडकी से बात करना शुरू कर दिया। तब लडकी ने उसे (चेलिक) को एक कंघी बनाने दबाब डाला, वो लडका इस पर कंघी बनाने तैयार हुआ कि वो लडकी उसकी दोस्त बनेगी, जिसे लडकी ने इन्कार कर दिया, परंतु चेलिक जानता है कि उसका इन्कार ही वास्तव में उसका इजहार है, क्योकि वो ओर कैजोलिंग ब्ंरवसपदह चाहती है। कंघी संग्रह मोटिहारीज के लिए महान प्रतिष्ठा का विषय है, संग्रह जितना बडा होगा, वह उतनी ही लोकप्रिय होगी। कंघे बालों में गहनों के रूप में उपयोग किए जाते हैं। लडके उन्हें लकडी /बांस से बनाते हैं, जिससे कि उनका कौशल उन्नयन होता है। दर्पण के टुकडे, मोती, रंग का उपयोग इन कंघों को सजाने में होता है। लडके भी इन्हें पहनते हैं पर केवल सजावट के लिए, वास्तविक संख्या पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। अगर मोटियारी, चेलिक (समकक्ष पुरूष) को पंसद करती है, तो वह उसका कंघी ले/चुरा लेती है,और उसे दोस्ती का अधिकार प्रदान करती है । (दोस्ती करने के पूर्व, साथी को जांचना कि वो उसके योग्य है कि नहीं?)। आमतौर पर यह उपहार प्रकिया केवल बुर्जुगों की उपस्थिति में ही होनी चाहिए, परंतु चुराने वाली स्थिति में आवंछनीय स्थिति बन जाती है ।
गोटूल भवन गांव की आबादी और नेतत्व के आधार पर एक झोंपडी के रूप में छोटा या मीटिंग हाॅल के रूप में बडा हो सकता है। ये रोशनी और हवादार होते है। कुछ गरमी से बचने के लिए छोटे बनाए जाते हैं। जहां पर वन्य प्राणी
के हमलों की आशंका हो वहां पर गोटूल उठाए गए मंच पर भी बनाए जाते हैं। गोटूल के छात्र गोटूल की दीवारों पर विभिनन प्रकार की पारम्परिक चित्रकारी भी करते हैं। उसके चारों और साफ सफाई रखते हैं। ये चित्रकारी पुरूष, महिला या मानव जीवन से संबधी होती है।
4 :- घोटूल की सबसे बडी विशेषता स्त्री-पुरूष में समानता के साथ
समुदाय को जीवन जीने की कला की शिक्षा स्वयं से प्राप्त करना है। गोटूल अपने वैचारिक ज्ञान को प्रयोगि रूप से क्रियान्वित कर अपनी सभ्यता, परम्परा, रीति-रिवाजों, प्राकतिक ज्ञान, लोक कला, लोक संगीत और लोक नत्यों का सरंक्षण भी करता है।
हमारा प्रयास आदिम गोटूल व्यवस्था को सरंक्षित करते हुए, आदिवासियों को
आधुनिक समाज से जोडने का है। जिससे कि वे अपने पारंपरिक ज्ञान व आधुनिक ज्ञान में सामंजस्य स्थापित करते हुए अपना सर्वांगीण विकास कर सकें, व समाज की मुख्य धारा में अपने पारंपरिक ज्ञान के साथ, आजीविका को सुनिश्चत कर सम्मानपूर्ण जीवन जी सके के लिए हमारे द्वारा एक मुक्त गोटूल विश्वविद्यालय स्थापित करने कि योजना है, जहां कि हम उपर लिखे लक्ष्यों व उद्देश्यों को प्राप्त कर सके।
इसके लिए हमारे पास लगभग 25 एकड भूमि है, जिसे विश्वविद्यालय के लिए उपलब्ध करायेगें। 5 एकड भूमि पर विश्वविद्यालय भवन पारंपरिक गोटूल के समान बनाए जाऐंगें। जहां अध्ययन कक्ष, हाॅस्टल, मीटिंग हाॅल व पुस्तकालय आदि होगा।
जहां हमारी अपनी स्वयं की रोजमर्रा/दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए 5 एकड भूमि को स्थायी व प्राकतिक खेती के लिए तैयार किया जायेगा, जिसमें जैविक तरीके से अन्न का उपार्जन घोटूल के छात्रों द्वारा किया जावेगा। रोजमर्रा की आवश्यकता के लिए 5 एकड भूमि में सब्जी व फल का उत्पादन किया जायेगा। साथ ही पशु-पालन (डेयरी उद्योग) पर छात्रों को प्रशिक्षित कर उत्पादन व विपणन भी किया जायेगा।
छात्रों द्वारा ही भोजन बनाने आदि के लिए गोटूल रसोई (आधुनिक रसोई यंत्रों के साथ) का निर्माण व पोषाहार बनाने का तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करते व उसका उपयोग करते हुए पारंपरिक पोषाहार तैयार किया जावेगा। भोजन
विशेषज्ञ(पारंपरिक व आधुनिक) को प्रशिक्षित कर तैयार किया जायेगा। साथ ही आदिवासी खाद्य व्यजंनों का आधुनिक समाज की मुख्य घारा में आदिवासी व्यंजनों पर गोटूल व्यंजन मेला आयोजित किया जावेगा।
आधुनिक शिक्षा से आदिवासी समुदाय को जोड़ते हुए स्थानीय भाषा व लिपि में
आदिवासी साहित्य तैयार कर ज्ञान का विस्तार किया जावेगा।
(5) एकड में खेल का मैदान तैयार किया जावेगा, जिसमें विभिन्न प्रकार के पारम्परिक खेलों पर छात्रों को प्रशिक्षित कर राज्य व राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी तैयार किये जायेंगें। गोटूल में विभिन्न कौशल उन्नयन केन्द्रों की स्थापना कर छात्रों को उनकी क्षमता, इच्छानुसार कौशल विकास किया जाकर आजीविका से जोडा जावेगा।
कौशल उन्नयन केन्द्रों के माध्यम से प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न परांपरागत
वस्तुओं का निर्माण किया जाकर, पशु-पालन व उनके उत्पादो का विपणन भी किया जायेगा, जिससे कि एक ओर तो छात्रांे को अपने इच्छित क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त होगी, दूसरी ओर गोटूल के विभिन्न आवश्यक व्यय की पूर्ति गोटूल के स्वयं के साधनों से पूरी की जा सकेगी, जिससे कि साथ ही विश्व विद्यालय के कार्य व ज्ञान को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान व आदिवासी पहचान, संस्कति का विस्तार करने विभिन्न सम्मेलन, विमर्श, कार्यशालाओं का आयोजन किया जावेगा, जिसके लिए विशेष गोटूल का निर्माण किया जाकर आदिवासी संस्क्रति का सरंक्षण किया जायेगा।
By-(Gotul univers of Gondwana)
भारतीय संविधान व कानूनों के मंशा के अनुरूप समाज में आदिवासी इतिहास, संस्कति, परम्पराओं, गोटुल, लोकनृत्य, लोककलाओं के प्रति युवाओं को शिक्षित, प्रशिक्षित कर आदिवासियों का समीकरण, प्रकृतिवाद का संरक्षण, विस्तारण कर आदिवासी समाज को मुुख्य धारा से जोडना ,एवं राष्ट्र निर्माण में सहभागिता।
विजन :-
आदिवासी समाज की इतिहास, संस्कति, परम्परा और प्रकृतिवाद के आधार पर समतार्पूण समाज निर्माण।
मिशन:-
प्रकतिवाद के आधार पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक क्षमता वर्धन कर आदिवासी युवाओं का सक्षमीकरण और समुदाय का विकास व पहचान की सुनिश्चितता।
उददेश्य :-
1- आदिवासी गोटुल विश्व विद्यालय की स्थापना।
2- पारम्परिक ज्ञान, संस्कति, लोक-कला, लोक-संगीत, परम्परा के प्रति संवेदनशीलता,व उसका सरंक्षण।
3- आदिवासी युवाओं की नेतृत्व क्षमता का विकास एवं आजीविका की सुनिश्चतता।
4- आदिवासी समाज में प्रचलित ?
गोटुल सहित अन्य प्रगतिशील परम्पराओं व ज्ञान का
विस्तारीकरण।
5- आदिवासी ज्ञान व प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित आजीविका के संसाधनों का
उन्नतीकरण व युवाओं का उनसे जुडाव।
6- विभिन्न राष्ट्रीय व राज्य की योजनाओं का प्रशिक्षण व क्रियान्वयन सुनिश्चत कर
आदिवासी समाज की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, पहचान को मजबूत आधार प्रदान करना।
7- आदिवासी समुदाय से जुडी विभिन्न जानकारियों, ज्ञान, परम्पराओं का
दस्तावेजीकरण, अध्ययन सामग्री का साहित्य तैयार कर पुरातन संस्कति, भाषा व लिपि का सरंक्षण।
8-आदिवासियों के पारम्परिक खेल-कूद ज्ञान को प्रोत्साहन व सरंक्षण कर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी तैयार करना ।
9- सामाजिक व स्थानीय स्तर पर जेण्डर संवेदीकरण ।
10. भारतीय संविधान, पांचवी अनुसूची सहित विभिन्न कानून, आदिवासी अधिकार, संरक्षण और विकास पर प्रशिक्षण व आदिवासियों को समाज की मुख्य धारा में स्थापित करना।
प्रस्तावना:-
गोटूल - गोटूल एक प्राचीनतम संस्थान है, यह एक प्रकार की लिविंग यूनिवर्सिटी है, जहां पर न तो कोई पुस्तक है अैार न ही कोई टेस्ट पेपर(परीक्षा), फिर भी जीवन जीने की शिक्षा सिखाई जाती है। यहां छात्र ही श्क्षिक है, और षिक्षक ही छात्र है, यह आश्चर्यजनक है! गोटूल आमतौर पर ग्राम के बाहर स्थित होता है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है, कि जब पश्चिमी सभ्यता में विश्वविद्यालय की परिकल्पना भी नहीं की गई थी, उसके बहुत पहले आदिवासियों ने युवाओं को शिक्षित करने के लिए खाली जमीन को इस केन्द्र
के लिए आरक्षित कर दिया था। उन्होंने गोटूल उद्यान में सब्जियां उगाई,
कौशल उन्नयन के साथ समुदाय को सिखाया कि यू बच्चों के साथ कैसे रहा जाता है। बच्चे कैसे जिम्मेदार युवा बनकर समाज को प्रगति के पथ पर ले जा सकते हैं।
गोटूल एक सांस्कृतिक केन्द्र भी है, जहां मारिया समुदाय का 6 साल से अधिक उम्र के हर युवा स्वचालित रूप से इसका सदस्य है। गोटूल में समाज के युवा- युवितयां साथ मिलकर हंसी -मजाक करते हैं, चुटकले, कहानियां व अपने प्राकतिक ज्ञान, अनुभव का आदान-प्रदान करते हुए एक-दूसरे से सीखते हैं। लोकगायन व लोकनृत्यों को प्रतिदिन की जीवन शैली में रचाते-बसाते हुए उनका व अपनी परम्पराओं का सरंक्षण व सवंर्धन करते है,जानबूझकर गलती होने, या के नियम भंग करने पर दण्डित होते हैं, और उनसे सीखते भी है। वेरियर एल्विन ने गोटूल के बारे में लिखते हुए घटना का जिक्र किया, जिससे कि घोटूल को समझा जा सकता है- घोटूल में सांस्कतिक आयेाजन के दौरान एक लडकी गाते-गाते अचानक घबरा गई, उसे अपनी साडी में कुछ अजीब से महसूस हुआ, साडी फटकार देखने पर पता चला कि उसकी साडी में किसी ने जिंदा मेढक डाल दिया था। लडकी ने शरारत करने वाले लडके(मोंगार) को रात में सबक सिखाने के का निणर्य लिया। बाकी उपस्थित लोग यह सब देखकर खुलकर हंसते है । इसी प्रकार एक लडकी का पेट खराब था, परंतु वो गोटूल में बनी रही, वो यह सब मजा मिस नहीं करना चाहती थी, पर वो ज्यादा देर तक लोकनृत्य का मजा नहीं ले पाई, और न ही वहां से ज्यादा दूर ही जा सकी, गंध(दुर्गंध) की वजह से पकड़ी गई। भीड ने उसे, उसके इस गलत व्यवहार के लिए 10 खरगोश कूदने (खरगोश की तरह कूदना) के लिए दण्डित किया।
गोटूल और उनकी गतिविधि :- लकड़ी की घंटी बजने के साथ ही गोटूल की औपचारिक शाम की गतिविधियों के शुरू होने के संकेत मिलने प्रारंभ हो जाते है। नए नामांकित बच्चों ने पुराने बडे बच्चों को अपना काम दिखाया(बच्चों के द्वारा हस्तशिल्प आदि) व उसका परीक्षण करवाकर दिशानिर्देश
प्राप्त किए । यह काम खासकर पत्ते बुनाई, सब्जी काटने, राख की सफाई और लकडी की नक्कासी में कौशल के लिए परीक्षण था (किसी कोैशल उन्नयन केन्द्र में जिस प्रकार टास्क का परीक्षण किया जाता है), कुछ बेकार के काम के लिए उन्हें दण्डित भी किया गया, और दण्ड वही खरगोश कूद, पिटाई तथा एक पैर पर खडा होना, या छत पर उल्टा लटकना आदि था । उसके पश्चात उन्होने कविता प्रतियोगिता, पहेली कर ज्ञान का आदान-प्रदान चुटकीले तरीेके से किया, जिसमें सभी को बहुत मजा आता है। लड़के -लड़कियां एक दूसरे को देर रात तक एक दुसरे को चिढाते और तंग करते रहे। गांव के मांझी(कोटवार) ने कक्षा के कप्तान को बुलाया, जिन्होनें उपस्थित लडके- लडकियों के नाम पढे (उपस्थिति)। शाम ढलने के साथ-साथ सब उपस्थित होते जाते है। एक लडकी(मोटियारी) ने अपने पुरूष साथी(जिसे वो पंसद करती है) को तेल से मालिश किया और उसके सिर से जुएं निकाले, व कहा कि वो छोटे बालों में ज्यादा अच्छा दिखता है और उसके बाद लडकी अपने कोमल हाथों से उसके पूरे शरीर को दबाती है, जोश व उत्साह बढने के साथ-साथ लडके ने भी लडकी से बात करना शुरू कर दिया। तब लडकी ने उसे (चेलिक) को एक कंघी बनाने दबाब डाला, वो लडका इस पर कंघी बनाने तैयार हुआ कि वो लडकी उसकी दोस्त बनेगी, जिसे लडकी ने इन्कार कर दिया, परंतु चेलिक जानता है कि उसका इन्कार ही वास्तव में उसका इजहार है, क्योकि वो ओर कैजोलिंग ब्ंरवसपदह चाहती है। कंघी संग्रह मोटिहारीज के लिए महान प्रतिष्ठा का विषय है, संग्रह जितना बडा होगा, वह उतनी ही लोकप्रिय होगी। कंघे बालों में गहनों के रूप में उपयोग किए जाते हैं। लडके उन्हें लकडी /बांस से बनाते हैं, जिससे कि उनका कौशल उन्नयन होता है। दर्पण के टुकडे, मोती, रंग का उपयोग इन कंघों को सजाने में होता है। लडके भी इन्हें पहनते हैं पर केवल सजावट के लिए, वास्तविक संख्या पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। अगर मोटियारी, चेलिक (समकक्ष पुरूष) को पंसद करती है, तो वह उसका कंघी ले/चुरा लेती है,और उसे दोस्ती का अधिकार प्रदान करती है । (दोस्ती करने के पूर्व, साथी को जांचना कि वो उसके योग्य है कि नहीं?)। आमतौर पर यह उपहार प्रकिया केवल बुर्जुगों की उपस्थिति में ही होनी चाहिए, परंतु चुराने वाली स्थिति में आवंछनीय स्थिति बन जाती है ।
गोटूल भवन गांव की आबादी और नेतत्व के आधार पर एक झोंपडी के रूप में छोटा या मीटिंग हाॅल के रूप में बडा हो सकता है। ये रोशनी और हवादार होते है। कुछ गरमी से बचने के लिए छोटे बनाए जाते हैं। जहां पर वन्य प्राणी
के हमलों की आशंका हो वहां पर गोटूल उठाए गए मंच पर भी बनाए जाते हैं। गोटूल के छात्र गोटूल की दीवारों पर विभिनन प्रकार की पारम्परिक चित्रकारी भी करते हैं। उसके चारों और साफ सफाई रखते हैं। ये चित्रकारी पुरूष, महिला या मानव जीवन से संबधी होती है।
4 :- घोटूल की सबसे बडी विशेषता स्त्री-पुरूष में समानता के साथ
समुदाय को जीवन जीने की कला की शिक्षा स्वयं से प्राप्त करना है। गोटूल अपने वैचारिक ज्ञान को प्रयोगि रूप से क्रियान्वित कर अपनी सभ्यता, परम्परा, रीति-रिवाजों, प्राकतिक ज्ञान, लोक कला, लोक संगीत और लोक नत्यों का सरंक्षण भी करता है।
हमारा प्रयास आदिम गोटूल व्यवस्था को सरंक्षित करते हुए, आदिवासियों को
आधुनिक समाज से जोडने का है। जिससे कि वे अपने पारंपरिक ज्ञान व आधुनिक ज्ञान में सामंजस्य स्थापित करते हुए अपना सर्वांगीण विकास कर सकें, व समाज की मुख्य धारा में अपने पारंपरिक ज्ञान के साथ, आजीविका को सुनिश्चत कर सम्मानपूर्ण जीवन जी सके के लिए हमारे द्वारा एक मुक्त गोटूल विश्वविद्यालय स्थापित करने कि योजना है, जहां कि हम उपर लिखे लक्ष्यों व उद्देश्यों को प्राप्त कर सके।
इसके लिए हमारे पास लगभग 25 एकड भूमि है, जिसे विश्वविद्यालय के लिए उपलब्ध करायेगें। 5 एकड भूमि पर विश्वविद्यालय भवन पारंपरिक गोटूल के समान बनाए जाऐंगें। जहां अध्ययन कक्ष, हाॅस्टल, मीटिंग हाॅल व पुस्तकालय आदि होगा।
जहां हमारी अपनी स्वयं की रोजमर्रा/दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए 5 एकड भूमि को स्थायी व प्राकतिक खेती के लिए तैयार किया जायेगा, जिसमें जैविक तरीके से अन्न का उपार्जन घोटूल के छात्रों द्वारा किया जावेगा। रोजमर्रा की आवश्यकता के लिए 5 एकड भूमि में सब्जी व फल का उत्पादन किया जायेगा। साथ ही पशु-पालन (डेयरी उद्योग) पर छात्रों को प्रशिक्षित कर उत्पादन व विपणन भी किया जायेगा।
छात्रों द्वारा ही भोजन बनाने आदि के लिए गोटूल रसोई (आधुनिक रसोई यंत्रों के साथ) का निर्माण व पोषाहार बनाने का तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करते व उसका उपयोग करते हुए पारंपरिक पोषाहार तैयार किया जावेगा। भोजन
विशेषज्ञ(पारंपरिक व आधुनिक) को प्रशिक्षित कर तैयार किया जायेगा। साथ ही आदिवासी खाद्य व्यजंनों का आधुनिक समाज की मुख्य घारा में आदिवासी व्यंजनों पर गोटूल व्यंजन मेला आयोजित किया जावेगा।
आधुनिक शिक्षा से आदिवासी समुदाय को जोड़ते हुए स्थानीय भाषा व लिपि में
आदिवासी साहित्य तैयार कर ज्ञान का विस्तार किया जावेगा।
(5) एकड में खेल का मैदान तैयार किया जावेगा, जिसमें विभिन्न प्रकार के पारम्परिक खेलों पर छात्रों को प्रशिक्षित कर राज्य व राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी तैयार किये जायेंगें। गोटूल में विभिन्न कौशल उन्नयन केन्द्रों की स्थापना कर छात्रों को उनकी क्षमता, इच्छानुसार कौशल विकास किया जाकर आजीविका से जोडा जावेगा।
कौशल उन्नयन केन्द्रों के माध्यम से प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न परांपरागत
वस्तुओं का निर्माण किया जाकर, पशु-पालन व उनके उत्पादो का विपणन भी किया जायेगा, जिससे कि एक ओर तो छात्रांे को अपने इच्छित क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त होगी, दूसरी ओर गोटूल के विभिन्न आवश्यक व्यय की पूर्ति गोटूल के स्वयं के साधनों से पूरी की जा सकेगी, जिससे कि साथ ही विश्व विद्यालय के कार्य व ज्ञान को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान व आदिवासी पहचान, संस्कति का विस्तार करने विभिन्न सम्मेलन, विमर्श, कार्यशालाओं का आयोजन किया जावेगा, जिसके लिए विशेष गोटूल का निर्माण किया जाकर आदिवासी संस्क्रति का सरंक्षण किया जायेगा।
By-(Gotul univers of Gondwana)
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