"बोलना नहीं था पर अस्तित्व बचाने के लिए बोलना मजबूरी है"
अपने आकाओं का गुलाम बैतूल सांसद तो उस नकली प्रमाण पत्र धारी पूर्व सांसद श्रीमती धुर्वे से भी बदतर निकला जो आदिवासी अस्तित्व को ही अपने आकाओं के इशारे पर मिटाने को आतुर है। यह मूर्ख गोडियन धार्मिक सांस्कृतिक व्यवस्था में जिस परधान,पठारी उपजाति से आता है ,इसकी प्रथम जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी धार्मिक सांस्कृतिक व्यवस्था को जो हिंदू से प्रथक है मजबूत करें परंतु यह शख्स उल्टा ही संदेश दे रहा है । गोंड समुदाय ने इस उपजाति को अपने धर्म संस्कृति परंपराओं को संरक्षण की जिम्मेदारी दी गई थी,यह उपजाति का व्यक्ति आदिवासियों की गोंड जनजाति की सांस्कृतिक धार्मिक पारंपरिक विरासत को बचाने के बजाय मिटाने का कृत्य कर रहा है जबकि संविधान की पांचवी अनुसूची और पेशा कानून में स्पष्ट उल्लेख है की आदिवासियों की धर्म संस्कृति रुढ़ी परंपराओं का संरक्षण किया जाए यदि इसकी जिम्मेदारी समुदाय के जिन पंडा पुजारी प्रधानों की रही है यदि वे ऐसा नहीं कर रहे हैं तो सामुदाय का नुकसान कर रहे हैं। इस अपराध के लिए इन्हें जनजाति सूची से पृथक किया जाना चाहिए अन्यथा ऐसे लोगों के माध्यम से जनजाति पहचान उनकी भाषा धर्म संस्कृति नष्ट हो जाएगी संविधान विरोधी कृत्य करने वाले बैतूल सांसद डीडीयू पर आदिवासियों की सांस्कृतिक धार्मिक रूढ़ी परंपराओं को मिटाने की भूमिका के लिए इस पर स्थानीय बैतूल जिले में एफ आई आर दर्ज कराई जाये । तथा सामाजिक रूढि परंपरानुसार समुदाय से प्रथक किया जाय।
(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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