जिन आदिवासी भाईयों को लगता है कि धर्मात्रण से हमारी आदिवासी ताकत कमजोर हो रही है तो उनका मानना एक हद तक लाजिमी है । आदिवासी हिन्दु बनकर पाखण्ड में पड जाता है । ईसाई बनकर व्यक्तिवाद अर्थात ईसा मसीह का भक्त बनकर उसके उपदेशों को सर्वोपरि मानने लगता है । प्रकृतिवाद के दर्शन से दूर चला जाता है । जबकि आदिवासी प्रकृतिवादी है, ना वह हिन्दुत्व के पाखण्डी धर्म को अंगीकार करता है ना ही ईसाई के ईसा मसीह के व्यक्ति पूजा पर विश्वास करता है । वह तो प्रकृति पूजक है ,उसे तो पेड पौधे में हवा, पानी में आस्था रखने से अपना जीवन सुरक्षित महसशूस करता है । तब उसे प्रकृति या निसर्ग के सत्य से मानवीकृत आस्था की ओर ले जाने का प्रयास क्यों किया जाता है । आदिवासी यानि निसर्ग पर विश्वास करने वाला, परन्तु अन्य विचारधारायें उन्हें व्यक्तिवाद की ओर धकेल रहीं हैं ,जो अदिवासी की आस्था और विश्वास जो सत्य पर आधारित है, उससे विलग करने का प्रयास किया जाना अदिवासी अस्मिता के लिये घातक है । हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई होकर भी शासकीय लाभ की सूचि के लिये आदिवासी होकर रहा जा सकता है । लेकिन हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई होकर आदिवासी की मूल पहचान प्रकृति धर्म के नियम, प्रकृति धर्म के संस्कार और स्वभाव से तो अलग होना ही पडेगा । मंदिर के मंत्र और और फेरे उल्टे होंगे ,चर्च में फेरे नहीं होगे । ना ही प्रकृति को साक्ष्य मानकर कोई संस्कार होंगे ,तब वह आदिवासी कैसे प्रकृतिवादी हुआ । केवल सहूलियत के लिये आदिवासी हुआ संस्कारों से वह गैर आदिवासी संस्कार का हो जाता है । इसलिये आदिवासी होने के लिये संस्कार आदिवासी के हों ,यही असली आदिवासियत की पहचान होगी । सुविधाओं का अदिवासी ,आदिवसियत से दूर हो गया है ,उसे अदिवासी संस्कार की आवश्यकता है ,अन्यथा खून का भाई होकर भी उसे बहिश्कार का सामना करना पडेगा चाहे जो भी परिणाम हो ।- gsmarkam
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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