(भोजली पर्व के कारण छ0ग0 सहित अन्य प्रदेशों में अप्रासांगिक हुआ कथित रक्षा बंधन का आदिवासियों पर रोपित त्योहार ।)
भोजली तिहार मूलतः प्रकृति प्रदत्त बीज से मनुष्य के बीच उसके संबंधों को जोडते हुए प्रकृति की रहस्यमयी शक्ति के परिचय के रूप में संदेश देता प्रतीत होता है । सात प्रकार के बीजों का रजस्वला परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कुवारी कन्याओं के माध्यम से बीजारोपण सहित, सात दिन तक लगातार उसे कम प्रकाश सीमित जल सामान्य से कम ताप में रख कर बीज के विषम परिस्थितियों में अंकुरण का परीक्षण, साथ ही इन परिस्थितियों में अंकुरण के बाद संभावित पौध रोग आदि के परीक्षण का संदेश देता है भोजली पर्व । जिस तरह प्रकृतिवादियों के हर पर्व अमास या पूनो में संपन्न होते हैं लेकिन इस पर्व को अप्रासांगिक करने के लिये कथित रक्षाबंधन को लाकर इसके महत्व को कमजोर करने का कार्य हुआ है । अब अधिकांश जगहों पर इस भोजली को विसर्जित करने और एक दूसरे को वितरित करने का कार्य दूसरे दिन होता है जो इस पर्व तिथि की अवधारणा के विरूद्ध है । रायपुर में पूनो के दिन आयोजित भोजली पर्व ने छ0ग0 सहित अन्य प्रदेशों के प्रकृतिवादियों को कथित रक्षा बंधन से सभा में उपस्थित हजारों लोगों को बिना कुछ कहे,राखी मुक्त कर भोजली पर्व की प्रमुखता का संदेश दिया गया । गुरूदेव भगत सिदार जी ने इसके औषधीय महत्व को बताते हुए कहा कि बरसात के मौसम में अधिकतर पीलिया या मौवरा रोग होने का खतरा रहता है एैसी परिस्थिति में भोजली के पत्तो का सेवन करने से मवरा रोग की संभावना खत्म होती है या जिसे रोग हो गया है तो इसका सेवन लाभदायक होता है ।
नोटःभोजली तिहार की अन्य विशोषताओं से संबंघित जानकारी हो अथवा इस पोष्ट में कोई अनहोनी बात लिखी गई हो तो अपना सुझाव अवश्य दें । -gsmarkam
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