( फेसबुक मित्रो के कमेन्ट पर प्रस्तुत विचार जिन्हें अलग अलग देने की अपेक्षा एक साथ समर्पित कर रहा हूँ )
भोजली को समझने के लिए सबसे पहले इस तिहार की तिथि पर ध्यान दें । गोन्डियन त्यौहार स्वत: समझ में आ जायेगा। जहा तक इसके मूल प्रक्रिया जिसे पोस्ट में उल्लेखित किया गया है भी प्रकृति का इन्सान से सम्बन्ध की पुष्टि करता है । जहा तक प्रक्रति से प्राप्त ज्ञान से मानवीक्रत व्यवस्था के अन्तर्गत बने नियम कानून की बात है उनमे समय समय पर बदलाव हुए हैं। परन्तु उसके मूल सिद्धांत में कोई बदलाव नहीं होता है । जैसे पारी कुपार लिगो की गोत्र व्यवस्था माता पक्ष और पिता पक्ष के आधार यानी पारी के हिसाब से है गोन्डवाना भूभाग में मूल व्यवस्था तो है पर कालांतर में यह गोत्र, देव/पेन और गढ व्यवस्था में बदल गया जो कुछ क्षेत्रों में पूर्णतः वर्जित है पर अनेक क्षेत्रों में सहज स्वीकार्य है। कुछ इलाकों में तो अपना गोत्र या देव सन्ख्या भी नहीं जानते केवल गोन्ड शब्द जानते हैं वे स्वीकार्य इसलिये है कि इस विभाजन के बाद भी वे अपने मूल सिद्धांत से अलग नहीं। तिहारो के मामले में भी यही है जन्गो लिगो गोगो हो या मडई या ढाल पूजा हो किसी क्षेत्र मे या किसी परिवार में मनाया जाता किसी में नहीं भी , इसी तरह आन्गा पेन के बारे में कहा जाता है कि हमारे इलाके मे नही होता परन्तु हमे यह नही भूलना चाहिये कि ऐसी पूजा किसी ना किसी रूप मे होती है इसे जानने के लिये हमे उस पूजा के मूल को खोजना चाहिये । मानवीक्रत धारणाओ मान्यताओ मे समय और परिस्थितियों के चलते बदलाव होते रहे है । और भी होन्गे पर जिस दिन मूल को समझे बिना उसे नकार देगे तो उसका प्रतिकूल प्रभाव पडे बिना नही रहेगा । गोन्डियन दर्शन प्रक्रति के मूल से जुडा है इसलिये हमे अपनी भाषा ,धर्म, सन्सक्रति रीति नीति परम्पराओ तीज त्यौहारो का मूल्यान्कन प्रक्रति के मूल से ही करना होगा । गोन्डियन सन्सक्रति की अनेक अबूझ पहेलिया है इन्हे सुलझाकर विश्व पटल पर लाने की आवश्यकता है । एक मित्र ने कहा कि भोजली त्यौहार हमारी सूचि मे नही है इसलिये यह हमारा नही पर मित्रो इस बात पर भी ध्यान दे कि ऐसे बहुत से तिहारो का भी उल्लेख नही पर उन्हे कई क्षेत्रो मे मनाया जाता है जिसे समय आने पर उनका परीक्षण करके जोडा जा सकेगा । देश मे गोन्ड समुदाय के ऐसे अनेक गोत्र है जो सूचिबद्ध नही है पर अपनी मूल अवधारणा के साथ व्यवहार मे है , इसका मतलब यह नही कि सूचि मे नही है तो वे हमारे नही है । और भी अनेक विषय है जिनपर शोध की आवश्यकता है ज्ञान को तालाब के पानी की तरह बाधकर गन्दा मत करो उसे निर्झर नदी की तरह प्रवाहित होने दो ताकि वह सदैव प्रक्रति की तरह निर्मल और शुद्ध रहे । मेरी बात पर किसी को ठेस या चोट लगी हो तो अवश्य माफ करे ।इस सम्बन्ध में और भी रोचक तथ्य प्रस्तुत करने का प्रयास करूँगा, जय सेवा जय जोहार । - gsmarkam
Comments
Post a Comment