साथियों ५ वीं अनुसूचि के अंतर्गत परंपरागत रूढी व्यवस्था,आदिवासियों को अपने स्वयं के तरीके से जीने ,विचरण करने का अधिकार देती है । जिसे संविधान के दायरे में रहकर एकता बनाकर इस अधिकार को हाशिल किया जा सकता है । जो ज्यूडिशियल दायरे में रहकर नान ज्यूडिशियल बना जा सकता है , जिसे संविधान की सहमति भी है , परन्तु भारतीय संविधान से ऊपर उठकर नान ज्यूडिशियल बनना है तो आदिवासियों को पुन: स्वतंत्रता संग्राम करना होगा ! संविधान और संविधान के हर कानून का बहिस्कार करना पडेगा । ध्यान रहे आज की तारीख में संविधान से बडा कोई व्यक्ति , समुदाय या संगठन नहीं है , जो भी अधिकार हाशिल करना है संविधान के दायरे में ही रहकर करें । जनचेतना और माहौल बनाना अलग बात हो सकती है पर अधिकार पाना संविधान सम्मत ही संभव है । अन्यथा स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजाना होगा जो सभी मूलनिवासी ,दलित पिछडे अल्पसंख्यकों को साथ लेकर ही संभव है ।-gsmarkam
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
Comments
Post a Comment