“अजब गजब, लेकिन सच्चाई है “
भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है , और इसी विविधता के अन्दर राष्ट्रीयता की खोज की जाती है , यह खोज का कार्य देश की कथित आजादी के बाद से लगातार जारी है । परन्तु राष्ट्रीयता पनपने की बजाय राष्ट्र की सम्पत्ति की लगातार लूट हो रही है । राष्ट्र को गुलामी की बेडियों में डालने का क्रत्य जारी है । इसका समाधान दूर तक होता दिखाई नहीं देता ? आखिर क्या वजह है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि “ सबको राष्ट्रवाद की भावनाओं में बहाते चलो , और चालाकी से अपनी जाति बिरादरी को ताकतवर और मजबूत करते रहो !”
इसलिये मेरा मानना है, कि मेरी बात भले ही कुछ कथित राष्ट्रवादियों के गले नहीं उतरेगी पर मेरी दृष्टि में यही सच है , कि राष्ट्रवाद के लक्छ्य को हासिल करने के लिय , जातिवाद को बढाना होगा ,जब जातियाँ एक सूत्र में होंगी तब वर्गीय मानसिकता पैदा होगी , वर्गीय मानसिकता राष्ट्रवादी होने की स्थिति पैदा करेगी । कारण है कि आज देश में जातीय भावना भी पनप नहीं पायी है , आज एक जाति भी एक सूत्र में नहीं है और उससे वर्गीय सहयोग की अपेक्छा की जाती है , उसे अपनी जाति से पूर्ण सहयोग प्राप्त होने का भरोशा नहीं वह वर्ग में अनुसूचित होकर भी ताकत का एहसास नहीं दिला सकता । उसे मालूम है मेरी जाति एकसूत्र में ,एक विचार ,एक मार्ग में नहीं है । आज जिन जातियों में जातीय भावना मजबूत हो चुकी वे जातियॉ मजबूत होकर एक सूत्र में हैं , उनकी जाति व वर्ग एकाकार हो चुका है । वो जाति से उठकर वर्ग हित के चिंता में हैं । वे ही हमें राष्ट्रवादी बनने की सलाह देते है , जबकि वे अभी वर्गवाद की ताकत के बल पर देश की हर सुविधा का उपभोग कर रहे हैं , अपने वर्ग हित में राष्ट्रवाद को भी ताक में रखकर फैसला लेने में संकोच नहीं करते ! कायदे से तो इस मजबूत जाति के वर्ग सबसे अधिक राष्ट्रवादी होना चाहिये परन्तु यह वर्ग अपनी जातिय मानसिकता को सुदृढ करके वर्गीय मजबूती का आनंद ले रहा है । अन्यों को सीधे राष्ट्रवादी बनने की दुहाई दे रहा है । जातियों में जातीय मानसिकता भी पनपने का प्रयास होता है उसे जातिवादी ,अलगाववादी कहा जाता है । जब तक जातियॉ मजबूत नहीं होती तब तक वर्ग की मानसिकता आना केवल कुछ हद तक , कुछ समस्याओं को लेकर हो सकता है, लेकिन स्थायी वर्ग बनने के लिये इस देश में जातिय रूप में मजबूती की आवशयकता है । तब वर्ग के रूप में अपनी सामूहिक चिंतन को बल मिलेगा । जातीय मानसिकता को मजबूत किये बिना वर्गीय मानसिकता असम्भव है , तथा वर्गीय मानसिकता के बगैर राष्ट्रीय मानसिकता दूर की कौडी साबित होगी । यह लेख “अजब गजब है पर हकीकत से काफी नजदीक है ।” किसी को इस बात से असहमति हो तो अपने विचार बेबाकी से प्रस्तुत करें ।-gsmarkam
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