"आर्य बनाम अनार्य की मानसिकता बनाकर हर बिन्दु पर सन्घर्ष करना होगा।"
मूलनिवासियो को यदि देश मे आरक्षण व्यवस्था की पूरी समझ है , शोषक/शोषित को व्यवहार में देख रहा हो जिसने पन्द्रह /पचासी का इतिहास पूरी तरह खन्गाल लिया है । उसे यह कहने की आवश्यकता नहीं कि उसे किस विचारधारा के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक संगठन के साथ खड़ा रहना है । किन महापुरुषों को सम्मान देना है । उनकी आस्था के देवी देवता और अराध्य स्थल कौन हो सकते है , इसका पूरी तरह ख्याल रखना होगा । अन्यथा खोखला मूलनिवासी आन्दोलन चलाने के नाम पर मूलनिवासीयो को गुमराह न करें । पासवान और डा0 उदितराज जैसे बहुत से नेता कुछ मूलनिवासीयो को यह कहकर अपनी साख बनाने में सफल हैं कि दुश्मन के साथ रहकर उनकी गतिविधियों को समझकर मूलनिवासीयो के सन्रक्षण की बात की जा सकती है। पर मेरा मानना है कि एैसे लोग केवल स्वहित के लिए समुदाय को गिरवी रखकर भोलेभाले समुदाय को सन्तुष्ट कर सकते हैं ,लेकिन मूलनिवासी समुदाय अब इन सब बातों से भिज्ञ है, उसे अपने पराये का भेद समझ में आने लगा है, विचारधारा के विरोधी और समर्थकों की समझ अब आने लगी है। इसलिये मूलनिवासी आन्दोलन के सच्चे हितैषी हैं तो ,देश में चल रही मूलनिवासी विचारधारा और विदेशी विचारधारा के अन्तर को समझकर कार्य करने की आवश्यकता है । अन्यथा सन्देह और सन्दिग्ध समर्थको से किसी लक्ष्य को हाशिल करना सम्भव नही होता ।-gsmarkam
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