"लोकतंत्र व्यवस्था वाले देश में हैं तो सवाल उठाना पडेगा ।"
भारत देश लोकतांत्रिक व्यवस्था से देश का संचालन होता है । इस व्यवस्था में सबसे बडी भूमिका चैाथे स्तंभ मीडिया की होती है । यही कारण है कि इस लोकतंत्र में जनता और सत्ताधारी पार्टी के बीच माध्यम का काम मीडिया का होता है । जिसके लिये बकायदा केंद्र में सूचना प्रसारण तथा राज्यों में जनसंपर्क विभाग की स्थापना है । इनका दायित्व सरकार की योजनाओं को जनता तक जानकारी के रूप में पहुंचाना तथा जनता के दुख तकलीफ को शासन तक हूबहू अर्थात वास्तविक बात को सत्ताधारी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है । इसके बावजूद सरकारी तंत्र ने मीडिया के प्रायवेट एजेंसी के लिये भी निश्चित बजट बनाती है । उसके लिये सरकारी खजाने से आम जनता का धन खर्च करने की व्यवस्था बनाई गई है ताकि सरकारी तंत्र से पूरी जानकारी ना मिले तो । विज्ञापन दृष्य और श्रव्य के माध्यम से जनता तक पहुचाई जा सके । परन्तु वर्तमान समय में शासकीय मीडिया के साथ साथ प्रायवेट मीडिया भी आम जनता की आवाज बनने की बजाय सत्ताधारी पार्टी के विचारधारा का अगुवा बनकर काम कर रहा है । भले ही आम जनता को किसी विषय पर आपत्ति या विरोध हो पर उसे सत्ताधारी पार्टी और सरकार के इशारे पर चलने की आदत हो गई है । इसका सीधा मतलब है कि आम जनता के बजट से चलने वाला मीडिया जिसे सरकार और आम जनता के बीच मध्यस्थता करना चाहिये वह सरकार की गोदी में बैठकर शासकीय मामलों की बजाय सरकार की पार्टी का गुणगान करने और उसे बेहतर साबित करने का ठेका ले लिया है । वहीं इस गोदी मीडिया ने जनता को दुख तकलीफ होने के बावजूद फील गुड कराने में पूरी तरह सफल नजर आ रही है । आज तो ये हालात हैं कि कोई गंभीर और महत्वपूर्ण मसला है जिसे सरकार,पार्टी और जनता को गंभीरता से लेना चाहिये ताकि जनहित में कोई ठोस परिणाम मिल सके । परन्तु गोदी मीडिया गंभीर सवालों का मजाक बनाकर उसके महत्व को समाप्त कर देती है । गंभीर से गंभीर मामले को इतना इतना मजाक बना दिया जाता है ताकि आम जनता को इस तकलीफ का एहसास तक ना हो । जब लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया चाटुकार हो जाये एैसी परिस्थिति में लोकतंत्र व्यवस्था में आम जनता को मीडिया की भूमिका में आना होगा । सरकार और पार्टियों की आवाज बनने की बजाय सरकार के अच्छे बुरे कामों के लिये बोलने की आवयकता है ना कि गोदी मीडिया की खबर के अनुशार अपनी सुर में सुर मिलाना है । सरकार अच्छे कामों की प्रशंसा हो लेकिन जनविरोधी मसलों पर तो बोलना पडेगा । आम जनता को विपक्ष की भूमिका निभाना होगा । सवाल उठाना पडेगा तभी इस देश में लोकतंत्र जीवित रह सकता है । अन्यथा सत्ताधारी और उसकी सरकार जनता में तकलीफ के बावजूद फील गुड कराता रहेग । भुलक्कड जनता समस्याओ को भुलाकर कुटिल विज्ञापन के प्रभाव में अपने गंभीर मसलों को हवा में उडाकर पांच सालतक पछतावा करता ळै ।
भारत देश लोकतांत्रिक व्यवस्था से देश का संचालन होता है । इस व्यवस्था में सबसे बडी भूमिका चैाथे स्तंभ मीडिया की होती है । यही कारण है कि इस लोकतंत्र में जनता और सत्ताधारी पार्टी के बीच माध्यम का काम मीडिया का होता है । जिसके लिये बकायदा केंद्र में सूचना प्रसारण तथा राज्यों में जनसंपर्क विभाग की स्थापना है । इनका दायित्व सरकार की योजनाओं को जनता तक जानकारी के रूप में पहुंचाना तथा जनता के दुख तकलीफ को शासन तक हूबहू अर्थात वास्तविक बात को सत्ताधारी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है । इसके बावजूद सरकारी तंत्र ने मीडिया के प्रायवेट एजेंसी के लिये भी निश्चित बजट बनाती है । उसके लिये सरकारी खजाने से आम जनता का धन खर्च करने की व्यवस्था बनाई गई है ताकि सरकारी तंत्र से पूरी जानकारी ना मिले तो । विज्ञापन दृष्य और श्रव्य के माध्यम से जनता तक पहुचाई जा सके । परन्तु वर्तमान समय में शासकीय मीडिया के साथ साथ प्रायवेट मीडिया भी आम जनता की आवाज बनने की बजाय सत्ताधारी पार्टी के विचारधारा का अगुवा बनकर काम कर रहा है । भले ही आम जनता को किसी विषय पर आपत्ति या विरोध हो पर उसे सत्ताधारी पार्टी और सरकार के इशारे पर चलने की आदत हो गई है । इसका सीधा मतलब है कि आम जनता के बजट से चलने वाला मीडिया जिसे सरकार और आम जनता के बीच मध्यस्थता करना चाहिये वह सरकार की गोदी में बैठकर शासकीय मामलों की बजाय सरकार की पार्टी का गुणगान करने और उसे बेहतर साबित करने का ठेका ले लिया है । वहीं इस गोदी मीडिया ने जनता को दुख तकलीफ होने के बावजूद फील गुड कराने में पूरी तरह सफल नजर आ रही है । आज तो ये हालात हैं कि कोई गंभीर और महत्वपूर्ण मसला है जिसे सरकार,पार्टी और जनता को गंभीरता से लेना चाहिये ताकि जनहित में कोई ठोस परिणाम मिल सके । परन्तु गोदी मीडिया गंभीर सवालों का मजाक बनाकर उसके महत्व को समाप्त कर देती है । गंभीर से गंभीर मामले को इतना इतना मजाक बना दिया जाता है ताकि आम जनता को इस तकलीफ का एहसास तक ना हो । जब लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया चाटुकार हो जाये एैसी परिस्थिति में लोकतंत्र व्यवस्था में आम जनता को मीडिया की भूमिका में आना होगा । सरकार और पार्टियों की आवाज बनने की बजाय सरकार के अच्छे बुरे कामों के लिये बोलने की आवयकता है ना कि गोदी मीडिया की खबर के अनुशार अपनी सुर में सुर मिलाना है । सरकार अच्छे कामों की प्रशंसा हो लेकिन जनविरोधी मसलों पर तो बोलना पडेगा । आम जनता को विपक्ष की भूमिका निभाना होगा । सवाल उठाना पडेगा तभी इस देश में लोकतंत्र जीवित रह सकता है । अन्यथा सत्ताधारी और उसकी सरकार जनता में तकलीफ के बावजूद फील गुड कराता रहेग । भुलक्कड जनता समस्याओ को भुलाकर कुटिल विज्ञापन के प्रभाव में अपने गंभीर मसलों को हवा में उडाकर पांच सालतक पछतावा करता ळै ।
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