प्रकृति पुनेम और पात्र आधरित संम्प्रदाय ।
कोई धर्म ग्रंथ यदि अपने पात्रों के अच्छे कर्मों आचरणों पर चलने चलाने का प्रयास कराता है,तो समझ लो वह धर्म कमजोर है जो पात्रों को सामने लाकर उन्हें महिमा मंडित करता है । वह धर्म नहीं उनके द्वारा अपने तरीके से चलाये गये मार्ग हैं जिन्हें संम्प्रदाय कहना ज्यादा उचित है । धर्म तो नैसर्गिक प्रकृतिगत दर्शन है, जिसे देखकर सुनकर उसका अनुशरण, आचरण करना ही असली धर्म है । जिस धर्म में किसी पात्र को मुखिया या गुरू मान लिया गया वह संम्प्रदाय से ज्यादा कुछ नहीं परन्तु जिस धर्म में निसर्ग या प्रकृति को गुरू माना गया हो वही धर्म है । पुनेम,आदि,प्रकृति धर्मों का आाधार व्यक्ति या पात्र नहीं स्वयं प्रकृति है निसर्ग है । इसलिये कहा जा सकता है कि हमारे देश में व्यक्तिवादी धर्म अर्थात संप्रदायों का ही बोलबाला है ।
टीप-(धर्म शब्दावली का उपयोग मात्र उस संप्रदाय अथवा मार्ग के बारे में समझने के लिये लिया गया है ।)gsmarkam
कोई धर्म ग्रंथ यदि अपने पात्रों के अच्छे कर्मों आचरणों पर चलने चलाने का प्रयास कराता है,तो समझ लो वह धर्म कमजोर है जो पात्रों को सामने लाकर उन्हें महिमा मंडित करता है । वह धर्म नहीं उनके द्वारा अपने तरीके से चलाये गये मार्ग हैं जिन्हें संम्प्रदाय कहना ज्यादा उचित है । धर्म तो नैसर्गिक प्रकृतिगत दर्शन है, जिसे देखकर सुनकर उसका अनुशरण, आचरण करना ही असली धर्म है । जिस धर्म में किसी पात्र को मुखिया या गुरू मान लिया गया वह संम्प्रदाय से ज्यादा कुछ नहीं परन्तु जिस धर्म में निसर्ग या प्रकृति को गुरू माना गया हो वही धर्म है । पुनेम,आदि,प्रकृति धर्मों का आाधार व्यक्ति या पात्र नहीं स्वयं प्रकृति है निसर्ग है । इसलिये कहा जा सकता है कि हमारे देश में व्यक्तिवादी धर्म अर्थात संप्रदायों का ही बोलबाला है ।
टीप-(धर्म शब्दावली का उपयोग मात्र उस संप्रदाय अथवा मार्ग के बारे में समझने के लिये लिया गया है ।)gsmarkam
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