(1) "फेकचन्द पर व्यन्ग"
फेक मारने का तजुरबा, पैसा देकर सीखा है ।
सौ सौ झूठ बोलकर हमने, सच को बनते देखा है।
बेवकूफ हो तुम , अब भी सच्चाई पर ही टिके रहो ।
हम सत्ता सुख भोग रहे हैं, तुम ऐसे ही पडे रहो ।
मीठी चाय बताकर हमने, सबको फीका पिला दिया ।
वोटों को मशीन में गिनकर , सबको पानी पिला दिया।
चार दिन की है जिन्दगी, अच्छाई से तुम जुड़े रहो ।
चार दिवस तो अपने ही हैं, क्यों ना जमकर मौज करो ।
बेवकूफ तुम मौज क्या जानो , स्वर्ग नरक को धरे रहो ।
सच्च झूठ के इस झन्झट में, जब तक चाहे फसे रहो ।
हम तो भैया फेक चन्द हैं, जब तक चले हम फेकेगे ।
जब तक तवा गर्म रहता है, तब तक रोटी सेकेंगे ।
इतने से भी नहीं समझे तो , लानत है खुदगर्जी पर ।
भूख प्यास से मरो रात दिन, या दडबे में घुसे रहो ।
हम सत्ता सुख भोग रहे हैं, तुम ऐसे ही पडे रहो ।-gsmarkam
(2) "मन की बात"
मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से।
तानाशाही झलक रही है, इनके हर लफ्फाजो में।।१।।
गर्म तवे पर बैठ भी जाये , ऐसा भी हो जाये कभी ।
ना करना विश्वास कभी , इन शातिर तानाशाहो से ।
मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से।।२।।
असली चेहरा कह जाता है, भाव भन्गिमा जो भी रहे ।
हैं तो ये वामन के बच्चे, साम,दाम ये क्यों ना करें ।
दन्ड, भेद का अस्त्र चलाकर , इस दुनिया को क्यों ना छलें ।
मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से।।३।।
मन मैला तन उजला करके, जाते जब परदेश में।
मूर्ख बनाने के चक्कर में, पडते लात विदेश मे ।
मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से
तानाशाही झलक रही है, इनके हर लफ्फाजो में।।४।।-gsmarkam
फेक मारने का तजुरबा, पैसा देकर सीखा है ।
सौ सौ झूठ बोलकर हमने, सच को बनते देखा है।
बेवकूफ हो तुम , अब भी सच्चाई पर ही टिके रहो ।
हम सत्ता सुख भोग रहे हैं, तुम ऐसे ही पडे रहो ।
मीठी चाय बताकर हमने, सबको फीका पिला दिया ।
वोटों को मशीन में गिनकर , सबको पानी पिला दिया।
चार दिन की है जिन्दगी, अच्छाई से तुम जुड़े रहो ।
चार दिवस तो अपने ही हैं, क्यों ना जमकर मौज करो ।
बेवकूफ तुम मौज क्या जानो , स्वर्ग नरक को धरे रहो ।
सच्च झूठ के इस झन्झट में, जब तक चाहे फसे रहो ।
हम तो भैया फेक चन्द हैं, जब तक चले हम फेकेगे ।
जब तक तवा गर्म रहता है, तब तक रोटी सेकेंगे ।
इतने से भी नहीं समझे तो , लानत है खुदगर्जी पर ।
भूख प्यास से मरो रात दिन, या दडबे में घुसे रहो ।
हम सत्ता सुख भोग रहे हैं, तुम ऐसे ही पडे रहो ।-gsmarkam
(2) "मन की बात"
मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से।
तानाशाही झलक रही है, इनके हर लफ्फाजो में।।१।।
गर्म तवे पर बैठ भी जाये , ऐसा भी हो जाये कभी ।
ना करना विश्वास कभी , इन शातिर तानाशाहो से ।
मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से।।२।।
असली चेहरा कह जाता है, भाव भन्गिमा जो भी रहे ।
हैं तो ये वामन के बच्चे, साम,दाम ये क्यों ना करें ।
दन्ड, भेद का अस्त्र चलाकर , इस दुनिया को क्यों ना छलें ।
मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से।।३।।
मन मैला तन उजला करके, जाते जब परदेश में।
मूर्ख बनाने के चक्कर में, पडते लात विदेश मे ।
मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से
तानाशाही झलक रही है, इनके हर लफ्फाजो में।।४।।-gsmarkam
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