"कान्ग्रेस के भय से भाजपा को वोट अब भाजपा के भय से कान्ग्रेस को वोट ! कही लोकतंत्र "भयतन्त्र का शिकार तो नहीं हो रहा है"
--लोकतन्त्र यानि भयमुक्त व्यवस्था जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ साथ बिना भय के अपनी इच्छा का प्रतिनिधि चुनना। परन्तु भारतीय लोकतंत्र ने अनेक दौर देखे है जहा दलो की विचारधारा को जाने बगैर चुनाव चिन्ह को देखकर वोट दिया गया । अगला दौर भी आया जब मतदाता का मत छीनकर बूथ केप्चरिग से व्यक्ति विशेष को जबरदस्ती जनप्रतिनिधि स्वीकार कराया गया । मतदाताओं की अज्ञानता का लाभ उठाते हु, एक और प्रयोग वोटिंग मशीन ने तो दल विशेष के लिये सोने में सुहागा का काम किया है सत्ता में आने के बाद उसके लगातार उपयोगिता को निर्वाचन आयोग की मुहर लगवाने से भी नहीं चूक रहे हैं यानि आंखों में लगातार धूल झोकना । मतदाता सत्ताधीशों के इन लोकतंत्र विरोधी निर्णयों कृत्यों से अपने आप को लगातार असहाय पा रहा है । एैसे आम चुनाव स्थानीय चुनाव के अनेक दौर में मतदाताओं ने लगातार ऐसे क्रत्यो का सामना किया है । इन कृत्यों के बाद भी एक थैली के चटटे बटटे कांग्रेस भाजपा ने आरंभ से लेकर अब तक तीसरी ताकतों छोटे स्थानीय दल को नहीं उभरने देने के लिये हिन्दू मुस्लिम का भय के साथ साथ कांग्रेस जीत जायेÛी या भाजपा जीत जायेगी का लगातार भय पैदा किया जाता रहा है । क्या भारतीय लोकतंत्र का मतदाता अब भी इन दलों के भय से अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति या मत को खराब करता रहेगा । कांग्रेस और भाजपा जैसे संगठित गिरोह के इस भयतंत्र से मुक्त होकर अपना निर्णय देने से ही स्वस्थ्य लोकतंत्र की स्थापना संभव है । भय से दिये और भय दिखाकर लिये मत से नहीं ।-gsmarkam
--लोकतन्त्र यानि भयमुक्त व्यवस्था जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ साथ बिना भय के अपनी इच्छा का प्रतिनिधि चुनना। परन्तु भारतीय लोकतंत्र ने अनेक दौर देखे है जहा दलो की विचारधारा को जाने बगैर चुनाव चिन्ह को देखकर वोट दिया गया । अगला दौर भी आया जब मतदाता का मत छीनकर बूथ केप्चरिग से व्यक्ति विशेष को जबरदस्ती जनप्रतिनिधि स्वीकार कराया गया । मतदाताओं की अज्ञानता का लाभ उठाते हु, एक और प्रयोग वोटिंग मशीन ने तो दल विशेष के लिये सोने में सुहागा का काम किया है सत्ता में आने के बाद उसके लगातार उपयोगिता को निर्वाचन आयोग की मुहर लगवाने से भी नहीं चूक रहे हैं यानि आंखों में लगातार धूल झोकना । मतदाता सत्ताधीशों के इन लोकतंत्र विरोधी निर्णयों कृत्यों से अपने आप को लगातार असहाय पा रहा है । एैसे आम चुनाव स्थानीय चुनाव के अनेक दौर में मतदाताओं ने लगातार ऐसे क्रत्यो का सामना किया है । इन कृत्यों के बाद भी एक थैली के चटटे बटटे कांग्रेस भाजपा ने आरंभ से लेकर अब तक तीसरी ताकतों छोटे स्थानीय दल को नहीं उभरने देने के लिये हिन्दू मुस्लिम का भय के साथ साथ कांग्रेस जीत जायेÛी या भाजपा जीत जायेगी का लगातार भय पैदा किया जाता रहा है । क्या भारतीय लोकतंत्र का मतदाता अब भी इन दलों के भय से अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति या मत को खराब करता रहेगा । कांग्रेस और भाजपा जैसे संगठित गिरोह के इस भयतंत्र से मुक्त होकर अपना निर्णय देने से ही स्वस्थ्य लोकतंत्र की स्थापना संभव है । भय से दिये और भय दिखाकर लिये मत से नहीं ।-gsmarkam
Comments
Post a Comment