"गोन्डियन सन्स्क्रति मे पेन्क भीना( देव स्थापना स्थल)"
भारत में हिन्दू नाम का शब्द आने तथा गोन्डियन सन्स्क्रती की भाषा में हिन्दी के प्रवेश के कारण गोन्डियन व्यवस्था के धारको मे अनेक परिवर्तन हुए । आचार विचार के साथ व्यवहार पर भी परसन्स्क्रति का प्रभाव पडा । कहानियो, लोकोक्तियो ,गीतो आदि अनेक परम्परागत बिन्दुओ असर पडा । यही तक ही नही , पेन के स्थान भी बदले गये इस सन्दर्भ मे देश के विभिन्न हिस्सो से प्राप्त जानकारी और खोजी प्रयास के दौरान देखने को मिला है कि वर्तमान समय में गोन्डियनजनो के पेन्क के बैठक या अराधना स्थलो की स्थिति निम्नलिखित है ।
भारत में हिन्दू नाम का शब्द आने तथा गोन्डियन सन्स्क्रती की भाषा में हिन्दी के प्रवेश के कारण गोन्डियन व्यवस्था के धारको मे अनेक परिवर्तन हुए । आचार विचार के साथ व्यवहार पर भी परसन्स्क्रति का प्रभाव पडा । कहानियो, लोकोक्तियो ,गीतो आदि अनेक परम्परागत बिन्दुओ असर पडा । यही तक ही नही , पेन के स्थान भी बदले गये इस सन्दर्भ मे देश के विभिन्न हिस्सो से प्राप्त जानकारी और खोजी प्रयास के दौरान देखने को मिला है कि वर्तमान समय में गोन्डियनजनो के पेन्क के बैठक या अराधना स्थलो की स्थिति निम्नलिखित है ।
(१) -प्रकृतिशक्ति पड़ापेन स्थल जो नार व्यवस्थापन के समय मुख्य ७ व्यक्ति तथा ६ सहायक, जिनके माध्यम से नार को मेढो, सिवाना से लेकर घाट ,पनघट, खेत खलिहान, खीला मुठवा, ठाकुर पेन सहित खेरमाई मातादाई, याया सहित अन्य पेन्क के स्थान नियत किये गये जिनकी पूजा अपने अपने स्थान में होती है पर्व विशेष के अवसरों पर किन्हीं क्षेत्रों में सबका केन्द्रीय पूजा का स्थान अलग अलग न करके ठाकुरपेन स्थल तथा खेरमाई स्थल मे रखा गया हो ऐसा प्रतीत होता है । तभी तो बिदरी पूजा में नार व्यवस्था के सभी पेन्क को एक साथ रखा जाता है, परन्तु अलग अलग भोग चढाया जाता है जिसे प्रक्रतिशक्ति पडापेन का स्थान भी कहा जा सकता है परन्तु गोन्डवाना राज्य के पश्चिमी प्रमुख गढ़ खेरला ( जिला बैतूल) के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रो में "दन्दीवेन" नाम का शक्ति स्थल है जिसे गोन्डियन समुदाय, पेन के रूप मे मानता है जहा पर समुदाय में अप्रिय, घटना या अप्रिय परिस्थितियों सामुदायिक दोष जैसी परिस्थिति पैदा हो जाय तो उक्त सर्वशक्तिमान स्थल मे पूजा कर दोष निवारण जैसे क्रियाकलाप किये जाते है । कही ऐसा तो नही कि यह शक्तिस्थल ही प्रक्रति शक्ति पडापेन का स्थान हो जिसे वर्तमान प्रतीक के रूप में सल्ला गान्गरा पडापेन के रूप में सामूहिक पूजा करते हैं । अन्यथा पडापेन के स्थायी स्थल की अब तक कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है । हो सकता है कालांतर में प्रकृति शक्ति को परिभाषित करने के लिये सल्ला गान्गरा , ऋण धन फिर माता पिता या चन्दा सूरज , अब योनि लिन्ग के आकार रूप में आकर रुक गया । प्रकृति शक्ति पडापेन के समय,परिस्थिति की इस यात्रा में गोन्डियनजन,
शक्ति पूजा से प्रतीक तथा मूर्ति पूजा तक आ गया। जिसे गोन्डवाना आन्दोलन के माध्यम से धीरे धीरे पुनः प्रक्रतिशक्ति पड़ापेन स्थल की ओर अग्रसर करना है । इस कार्य में जल्दबाजी ठीक नहीं।
(२)- "सजोर,हजोर ,पेनकरा/कड़ा या बुढाल पेन , देव खल्ला स्थल"
नार शक्ति स्थल के बाद गोन्डियन व्यवस्था में बिरन्दा (परिवार) के पूजा शक्ति स्थल , जिसमें उस परिवार के वेन(जीवित) के बाद मरने पर (पेन) के रूप में प्रक्रति शक्ति पड़ापेन(सजोर पेन) में मिलाया जाता है । प्रत्येक गोत्र परिवार का अपना पडापेन शक्ति (सजोर पेन) स्थल होता है ।
(३) "पेन भीना, पेन मढिया ,पेन कोठार या पेन रोन स्थल"
उस नार मे परिवार के मुखिया के घर पर अपने अपने कुल चिन्ह, गोत्र चिन्ह के अनुसार स्थापित रहते हैं । इन पेन्क को देश के विभिन्न भागों का गोन्डियन सन्स्क्रति का धारक समुदाय इन्हें देश काल ,समयकाल और परिस्थिति अनुशार अलग अलग स्थानों में स्थापित करता है । उन्हे उस स्थल के नाम पर जाना जाता है । ऐसे नियत स्थल, समय काल और परिस्थितियो के कारण स्थापित होने की कुछ बानगी यहा प्रस्तुत है ।
(३)-क (१) "पेन भीना"
समान्यतया पेन भीना अर्थात अपने कुल गोत्र के पेन्क का स्थायी ठिकाना कहा जा सकता है । जो घर के किनारे या बाड़ी/बाड़े में खुले चबूतरे पर स्थित होते हैं ।
(३)क(२) "पेन भीना" गोन्डवाना राज्य के केन्द्र "गढ़ मन्डला क्षेत्र में यह पेन भीना घर के अन्दर प्रमुख कमरे में होता है जहाँ अनाज कोठी या महत्वपूर्ण सामग्री रखी होती है जिसमें परिवार के लोग विशेष आवश्यकता पड़ने पर ही प्रवेश करते हैं ।
(३)-ख "पेन मढ़िया"
यह स्थल भी कुल गोत्र पेन्क के लिये बाड़ी/बाड़े में स्थायी रूप में होता है परंतु पेन्क के लिये स्थायी मन्डप बना दिया जाता है या चारो ओर बन्द एक दरवाजे की कच्ची झोपड़ी बनी होती है
(३)-ग "पेन कोठार या पेन रोन"
पेन भीना, पेन मढ़िया की तरह ही पेन कोठार या पेन रोन में कुल गोत्र के पेन्क रखे जाते हैं पर ये गोत्र पेन स्थायी रूप से स्थापित नहीं रहते बल्कि इन पेन्क के अलग अलग प्रतीक चिन्हो को एक साथ बान्स या पुरका (लौकी) के बने पात्र में पेन कोठार या पेन रोन के किसी स्थान पर लटकाकर रख दिया जाता है । पूजा के अवसरों पर पेन रोन की लिपाई पुताई करके इन्हें पटे पर या जमीन पर चावल या अन्य अनाज की अलग अलग बैठक बनाकर पूजा सन्सकार सम्पन्न किया जाता है । पूजा समाप्ति के बाद उचित समय देखकर इन पेन्क को पुनः उसी पात्र में रख दिया जाता है । यह क्रम गोन्डियन सन्स्क्रति में परम्परा से चलती आ रही है ।
पेन भीना हो या पेन मढ़िया हो सबकी पूजा पद्धति और कुल गोत्र पेन्क के स्थान स्थायी हैं,वही पेन कोठार या पेन रोन मे बान्स से बने पात्र "ढूली"/ या पर्रास (लौकी) से बने "पुरका" मे रखा जाना किन्ही विषम परिस्थितियो की रोचक कहानी बया करती है ।
प्रस्तुत है पेन कोठार या पेन रोन मे बान्स या पुरका मे पेन्क को रखे जाने की रोचक किवदन्ति ! यह किवदन्ति सत्य के कितना नजदीक है कहा नहीं जा सकता लेकिन भारत के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इस किवदन्ती से जुड़े तथ्य किवदन्ती की सत्यता को प्रमाणित करते दिखाई देते है । गोन्डियन सन्स्क्रति के वैभव काल मे सम्पूर्ण गोन्डवाना के राज्यों की व्यवस्था का सन्चालन स्वछन्द और निर्भीक हुआ करता था । सम्पूर्ण व्यवस्था के क्रियाकलाप निर्भीक सन्चालित होते तब ये पेन्क , पेन भीना मे स्थायी थे । कालान्तर में अनेक विदेशी आक्रमणों ने स्वछन्द और निर्भीक व्यवस्था में ग्रहण लगा दिया । विदेशी आक्रमणकारियों के बार बार आतन्क लूट पाट और सान्स्क्रतिक, धार्मिक आक्रमण से गोन्डियन व्यवस्था अपने आप को बचाने में लग गई। इसी सन्दर्भ में कुछ क्षेत्रों के गोन्डियन लोग सन्घर्ष करते करते जन्गलो में छिप जाते थे तथा पुनः रणनीति बनाकर वापस आने के बाद अपनी व्यवस्था कायम करते थे। उस समय के धार्मिक मान्यता में पेन शक्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती रही है, गोन्डियनो का मानना था कि" धन चला जाए लेकिन धर्म नहीं जाना चाहिए।" इसलिये परास्त होने के बाद ये गुलामी की जगह जन्गलो में भाग जाना अधिक पसन्द किये। यही कारण था कि भागते वक्त सबसे पहले वे अपने पेन्क शक्तियों के प्रतीक चिन्हों को स्थायी पेन भीना से उखाड़कर "ढूली" या "पुरका" मे रखकर भाग जाते थे । उन्हे भरोशा था कि ये पेन शक्तिया हमे हिम्मत ताकत और सहयोग देगी हम पुन: स्थापित हो जायेगे । इसी आत्मविश्वास के कारण ये हारे हुए राज्य या क्षेत्रो को पुन: हासिल कर लेते थे । कुछ क्षेत्र ऐसे रहे होन्गे जो बार बार आने जाने के कारण अपने पेन शक्तियों को सदैव एक साथ ढूली या पुरका में रखे रहते थे जो आकस्मिक समय में आसानी से साथ लेकर भाग सकें। और जिन क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ रही हो या परास्त नहीं हुए हो ऐसे क्षेत्रों में पेन भीना में पेन्क को स्थायी रूप से स्थापित किया गया।
(नोट:-गोन्डी भाषा के शब्द और उसका अर्थ। पेन्क -देवता, भीना -मिट्टी से बना चबूतरा,"ढूली"-बान्स से बना पात्र ! "पुरका"-पर्रास (लौकी) से बना पात्र !)- Gsmarkam
शक्ति पूजा से प्रतीक तथा मूर्ति पूजा तक आ गया। जिसे गोन्डवाना आन्दोलन के माध्यम से धीरे धीरे पुनः प्रक्रतिशक्ति पड़ापेन स्थल की ओर अग्रसर करना है । इस कार्य में जल्दबाजी ठीक नहीं।
(२)- "सजोर,हजोर ,पेनकरा/कड़ा या बुढाल पेन , देव खल्ला स्थल"
नार शक्ति स्थल के बाद गोन्डियन व्यवस्था में बिरन्दा (परिवार) के पूजा शक्ति स्थल , जिसमें उस परिवार के वेन(जीवित) के बाद मरने पर (पेन) के रूप में प्रक्रति शक्ति पड़ापेन(सजोर पेन) में मिलाया जाता है । प्रत्येक गोत्र परिवार का अपना पडापेन शक्ति (सजोर पेन) स्थल होता है ।
(३) "पेन भीना, पेन मढिया ,पेन कोठार या पेन रोन स्थल"
उस नार मे परिवार के मुखिया के घर पर अपने अपने कुल चिन्ह, गोत्र चिन्ह के अनुसार स्थापित रहते हैं । इन पेन्क को देश के विभिन्न भागों का गोन्डियन सन्स्क्रति का धारक समुदाय इन्हें देश काल ,समयकाल और परिस्थिति अनुशार अलग अलग स्थानों में स्थापित करता है । उन्हे उस स्थल के नाम पर जाना जाता है । ऐसे नियत स्थल, समय काल और परिस्थितियो के कारण स्थापित होने की कुछ बानगी यहा प्रस्तुत है ।
(३)-क (१) "पेन भीना"
समान्यतया पेन भीना अर्थात अपने कुल गोत्र के पेन्क का स्थायी ठिकाना कहा जा सकता है । जो घर के किनारे या बाड़ी/बाड़े में खुले चबूतरे पर स्थित होते हैं ।
(३)क(२) "पेन भीना" गोन्डवाना राज्य के केन्द्र "गढ़ मन्डला क्षेत्र में यह पेन भीना घर के अन्दर प्रमुख कमरे में होता है जहाँ अनाज कोठी या महत्वपूर्ण सामग्री रखी होती है जिसमें परिवार के लोग विशेष आवश्यकता पड़ने पर ही प्रवेश करते हैं ।
(३)-ख "पेन मढ़िया"
यह स्थल भी कुल गोत्र पेन्क के लिये बाड़ी/बाड़े में स्थायी रूप में होता है परंतु पेन्क के लिये स्थायी मन्डप बना दिया जाता है या चारो ओर बन्द एक दरवाजे की कच्ची झोपड़ी बनी होती है
(३)-ग "पेन कोठार या पेन रोन"
पेन भीना, पेन मढ़िया की तरह ही पेन कोठार या पेन रोन में कुल गोत्र के पेन्क रखे जाते हैं पर ये गोत्र पेन स्थायी रूप से स्थापित नहीं रहते बल्कि इन पेन्क के अलग अलग प्रतीक चिन्हो को एक साथ बान्स या पुरका (लौकी) के बने पात्र में पेन कोठार या पेन रोन के किसी स्थान पर लटकाकर रख दिया जाता है । पूजा के अवसरों पर पेन रोन की लिपाई पुताई करके इन्हें पटे पर या जमीन पर चावल या अन्य अनाज की अलग अलग बैठक बनाकर पूजा सन्सकार सम्पन्न किया जाता है । पूजा समाप्ति के बाद उचित समय देखकर इन पेन्क को पुनः उसी पात्र में रख दिया जाता है । यह क्रम गोन्डियन सन्स्क्रति में परम्परा से चलती आ रही है ।
पेन भीना हो या पेन मढ़िया हो सबकी पूजा पद्धति और कुल गोत्र पेन्क के स्थान स्थायी हैं,वही पेन कोठार या पेन रोन मे बान्स से बने पात्र "ढूली"/ या पर्रास (लौकी) से बने "पुरका" मे रखा जाना किन्ही विषम परिस्थितियो की रोचक कहानी बया करती है ।
प्रस्तुत है पेन कोठार या पेन रोन मे बान्स या पुरका मे पेन्क को रखे जाने की रोचक किवदन्ति ! यह किवदन्ति सत्य के कितना नजदीक है कहा नहीं जा सकता लेकिन भारत के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इस किवदन्ती से जुड़े तथ्य किवदन्ती की सत्यता को प्रमाणित करते दिखाई देते है । गोन्डियन सन्स्क्रति के वैभव काल मे सम्पूर्ण गोन्डवाना के राज्यों की व्यवस्था का सन्चालन स्वछन्द और निर्भीक हुआ करता था । सम्पूर्ण व्यवस्था के क्रियाकलाप निर्भीक सन्चालित होते तब ये पेन्क , पेन भीना मे स्थायी थे । कालान्तर में अनेक विदेशी आक्रमणों ने स्वछन्द और निर्भीक व्यवस्था में ग्रहण लगा दिया । विदेशी आक्रमणकारियों के बार बार आतन्क लूट पाट और सान्स्क्रतिक, धार्मिक आक्रमण से गोन्डियन व्यवस्था अपने आप को बचाने में लग गई। इसी सन्दर्भ में कुछ क्षेत्रों के गोन्डियन लोग सन्घर्ष करते करते जन्गलो में छिप जाते थे तथा पुनः रणनीति बनाकर वापस आने के बाद अपनी व्यवस्था कायम करते थे। उस समय के धार्मिक मान्यता में पेन शक्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती रही है, गोन्डियनो का मानना था कि" धन चला जाए लेकिन धर्म नहीं जाना चाहिए।" इसलिये परास्त होने के बाद ये गुलामी की जगह जन्गलो में भाग जाना अधिक पसन्द किये। यही कारण था कि भागते वक्त सबसे पहले वे अपने पेन्क शक्तियों के प्रतीक चिन्हों को स्थायी पेन भीना से उखाड़कर "ढूली" या "पुरका" मे रखकर भाग जाते थे । उन्हे भरोशा था कि ये पेन शक्तिया हमे हिम्मत ताकत और सहयोग देगी हम पुन: स्थापित हो जायेगे । इसी आत्मविश्वास के कारण ये हारे हुए राज्य या क्षेत्रो को पुन: हासिल कर लेते थे । कुछ क्षेत्र ऐसे रहे होन्गे जो बार बार आने जाने के कारण अपने पेन शक्तियों को सदैव एक साथ ढूली या पुरका में रखे रहते थे जो आकस्मिक समय में आसानी से साथ लेकर भाग सकें। और जिन क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ रही हो या परास्त नहीं हुए हो ऐसे क्षेत्रों में पेन भीना में पेन्क को स्थायी रूप से स्थापित किया गया।
(नोट:-गोन्डी भाषा के शब्द और उसका अर्थ। पेन्क -देवता, भीना -मिट्टी से बना चबूतरा,"ढूली"-बान्स से बना पात्र ! "पुरका"-पर्रास (लौकी) से बना पात्र !)- Gsmarkam
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