"मोदी और शाह से भयभीत हैं भाजपा के सांसद,विधायक और पदाधिकारी ।"
और अंदर ही अंदर से भयभीत है कथित उच्च वर्गीय समुदाय भी,जो भाजपा को अपना संगठन मानकर चलती है। अब तक जिस आर एस एस ने सत्ता को अपने इशारों पर नाचने का नचाने का प्रयास किया उसकी आंतरिक ताकत भी कमजोर दिखाई देने लगी, कारण की मोदी और शाह उस ओर बढ़ रहे हैं जहां उन्हें कोई संगठन या पदाधिकारी से डरने की जरूरत नहीं वह उन्हें भी अपनी कमांड में लेकर भय का वातावरण तैयार करके तानाशाह बनना चाहते हैं । यही नहीं जितने भी आर एस एस और भाजपा के अग्रणी नेतृत्व थे उन्हें धीरे धीरे किनारे लगा दिया गया और लगाते जा रहे हैं । यह जोड़ी भाजपा और आर एस एस के बीच भी इतना भय पैदा कर चुकी है कि कोई भी नेता,मोदी या शाह के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोल पा रहे हैं । उनके अच्छे या बुरे कामों की आलोचना नहीं कर पा रहे हैं। इससे लगता है कि भारतीय लोकतंत्र तानाशाही सत्ता की ओर बढ़ रहा है । अन्य विपक्षी यदि सामने खड़ा होकर विरोध करते हैं तो उन्हें किसी न किसी तरह उलझाने या फसाए जाने का प्रयास भी तानाशाही का एक नमूना है अर्थात विरोधियों को खड़ा नहीं होने देना, हालांकि भाजपा के नेता जो थोड़े बहुत राष्ट्रवादी हैं,वह भी नहीं भूल पा रहे हैं उन्हें एक ओर संसद और विधायक बनने के लिए मोदी और शाह पर आश्रित होना पड़ रहा है अन्यथा मोदी और शाह आज स्थिति में है कि किसी को हरा दे और किसी को जिता दें इसी भय ने आर एस एस पर भी दबाव बना रखा है जो आर एस एस कभी अपनी कोर ग्रुप में निर्णय के बाद भाजपा के नेताओं को बुलाकर निर्देश करती थी ,अब वह कोर ग्रुप मोदी और शाह की चमचागिरी में लग चुका है , क्योंकि उन्हें भी नेतागिरी करना है, संगठन में रहना है,अपने संगठनों को जीवित रखकर लाभ कमाना है । अपनी रोजी-रोटी चलाना है कुल मिलाकर कहा जाए तो आर एस एस सहित देश का विपक्षी दल भी भयभीत और हतास हो चुका है कहीं ईवीएम की बात करके अपने आप को संतुष्ट कर रहा है ,कहीं मोदी और शाह की कृपा से जीत हासिल करके अपनी बोलती बन्द रखा है। कुछ आशावादी लोगों का मानना है की मोदी और शाह कब तक बने रहेंगे कभी तो उनका पतन होगा आदि आदि। मीडिया को तो माल मिलता जाए, चाटुकारिता करते करते इन तानाशाही मानसिकता के जोड़ी को परवान चढ़ाने में लगे हैं, अब सवाल उठता है की देश के बुद्धिजीवी की जुबान खामोश है क्या किया जा सकता है ? सिर्फ एक ताकत बचती है वह है देश का सैनिक , पुलिस और सुरक्षा बल परंतु वह भी क्या करें एक तरफ उसकी रोजी-रोटी बाल बच्चे हैं वे अपने शीर्ष अधिकारी की कमांड में उसी तरह है जिस तरह नेता मोदी और शाह के कमांड में तो निश्चित ही इस देश में मजबूरी और दहशत का माहौल पैदा करके तानाशाही सत्ता द्वार पर दस्तक दे रही है। इसका मुकाबला करने के लिए जनक्रांति की आवश्यकता है बिना क्रांति के इन तानाशाहों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। हजारों लाखों कुर्बानियों के बाद इस देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई है जागीरदारों की गुंडागर्दी विदेशियों की गुलामी को यह देश झेल चुका है अब इसकी पुनरावृति ना हो,देश हम सबका है इसे इतनी आसानी से तानाशाही जैसी क्रूर व्यवस्था में जाने से रोकना होगा निष्कर्ष, जन क्रांति ! जन क्रांति !! जन क्रांति!!!
(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
और अंदर ही अंदर से भयभीत है कथित उच्च वर्गीय समुदाय भी,जो भाजपा को अपना संगठन मानकर चलती है। अब तक जिस आर एस एस ने सत्ता को अपने इशारों पर नाचने का नचाने का प्रयास किया उसकी आंतरिक ताकत भी कमजोर दिखाई देने लगी, कारण की मोदी और शाह उस ओर बढ़ रहे हैं जहां उन्हें कोई संगठन या पदाधिकारी से डरने की जरूरत नहीं वह उन्हें भी अपनी कमांड में लेकर भय का वातावरण तैयार करके तानाशाह बनना चाहते हैं । यही नहीं जितने भी आर एस एस और भाजपा के अग्रणी नेतृत्व थे उन्हें धीरे धीरे किनारे लगा दिया गया और लगाते जा रहे हैं । यह जोड़ी भाजपा और आर एस एस के बीच भी इतना भय पैदा कर चुकी है कि कोई भी नेता,मोदी या शाह के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोल पा रहे हैं । उनके अच्छे या बुरे कामों की आलोचना नहीं कर पा रहे हैं। इससे लगता है कि भारतीय लोकतंत्र तानाशाही सत्ता की ओर बढ़ रहा है । अन्य विपक्षी यदि सामने खड़ा होकर विरोध करते हैं तो उन्हें किसी न किसी तरह उलझाने या फसाए जाने का प्रयास भी तानाशाही का एक नमूना है अर्थात विरोधियों को खड़ा नहीं होने देना, हालांकि भाजपा के नेता जो थोड़े बहुत राष्ट्रवादी हैं,वह भी नहीं भूल पा रहे हैं उन्हें एक ओर संसद और विधायक बनने के लिए मोदी और शाह पर आश्रित होना पड़ रहा है अन्यथा मोदी और शाह आज स्थिति में है कि किसी को हरा दे और किसी को जिता दें इसी भय ने आर एस एस पर भी दबाव बना रखा है जो आर एस एस कभी अपनी कोर ग्रुप में निर्णय के बाद भाजपा के नेताओं को बुलाकर निर्देश करती थी ,अब वह कोर ग्रुप मोदी और शाह की चमचागिरी में लग चुका है , क्योंकि उन्हें भी नेतागिरी करना है, संगठन में रहना है,अपने संगठनों को जीवित रखकर लाभ कमाना है । अपनी रोजी-रोटी चलाना है कुल मिलाकर कहा जाए तो आर एस एस सहित देश का विपक्षी दल भी भयभीत और हतास हो चुका है कहीं ईवीएम की बात करके अपने आप को संतुष्ट कर रहा है ,कहीं मोदी और शाह की कृपा से जीत हासिल करके अपनी बोलती बन्द रखा है। कुछ आशावादी लोगों का मानना है की मोदी और शाह कब तक बने रहेंगे कभी तो उनका पतन होगा आदि आदि। मीडिया को तो माल मिलता जाए, चाटुकारिता करते करते इन तानाशाही मानसिकता के जोड़ी को परवान चढ़ाने में लगे हैं, अब सवाल उठता है की देश के बुद्धिजीवी की जुबान खामोश है क्या किया जा सकता है ? सिर्फ एक ताकत बचती है वह है देश का सैनिक , पुलिस और सुरक्षा बल परंतु वह भी क्या करें एक तरफ उसकी रोजी-रोटी बाल बच्चे हैं वे अपने शीर्ष अधिकारी की कमांड में उसी तरह है जिस तरह नेता मोदी और शाह के कमांड में तो निश्चित ही इस देश में मजबूरी और दहशत का माहौल पैदा करके तानाशाही सत्ता द्वार पर दस्तक दे रही है। इसका मुकाबला करने के लिए जनक्रांति की आवश्यकता है बिना क्रांति के इन तानाशाहों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। हजारों लाखों कुर्बानियों के बाद इस देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई है जागीरदारों की गुंडागर्दी विदेशियों की गुलामी को यह देश झेल चुका है अब इसकी पुनरावृति ना हो,देश हम सबका है इसे इतनी आसानी से तानाशाही जैसी क्रूर व्यवस्था में जाने से रोकना होगा निष्कर्ष, जन क्रांति ! जन क्रांति !! जन क्रांति!!!
(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
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