"सोनभद्र यूपी हत्या कांड के मृतकों को श्रद्धांजलि"
जमीन जायजाद के विवाद व्यक्तिगत तो होते ही हैं परंतु विशेष संगठनों के माध्यम से उसे सामुदायिक हवा दिए जाने का प्री प्लान भी रहता है,जो आर एस एस की योजना का हिस्सा है जिसे व्यक्तिगत भूमि विवाद पर कुछ लोग नहीं समझ पाते चाहो एसटी एससी ओबीसी हो या समान्य वर्ग ,उन संगठनों का शिकार हो जाते हैं जिन्हें धर्म और जाति के नाम से पहले से ही जाल में फंसा कर रखा गया है ऐसी परिस्थितियों में दोनों पक्षों में आपसी चर्चा की जानी चाहिए परंतु ऐसे संगठन चर्चा की जगह संघर्ष को बढ़ावा देते हैं ताकि उनके संगठन का वर्चस्व उस समुदाय के लिए हितकारी लगे। निश्चित ही सोनभद्र कांड मानवता को शर्मसार करने वाला है लेकिन उसके पीछे जो षड्यंत्र चला है वह विकृत मानसिकता वाले सामाजिक संगठन के माध्यम से रची गई सोची समझी साजिश , जिसमें वर्ग विशेष को जानबूझकर दबंग बता कर झगड़े को शांत करने के बजाय उसमें रोटी सेकने का काम किया गया है यही बात दुखदाई है आपको पता है कि यह संघर्ष आदिवासी और ओबीसी के बीच हुआ है लेकिन उसके मूल में सवर्ण समाज की मानसिकता रही है जिसका खामियाजा हमारे मनोबल को गिराने का तो हुआ ही लेकिन समुदायों के बीच संघर्ष पैदा करके सामाजिक समरसता के बीच एक दरार पैदा करने का भी काम हुआ है । आदिवासी समुदाय के द्वारा या अन्य संगठनों के द्वारा देश के विभिन्न जनवादी संगठनों के माध्यम से प्रोटेस्ट किया जा रहा है,सराहनीय है, पर इसकी जड़ कहां है इस पर भी हमारा ध्यान होना चाहिए।
(गुलजार सिंह मरकाम रा सं गो समग्र क्रांति आंदोलन)
जमीन जायजाद के विवाद व्यक्तिगत तो होते ही हैं परंतु विशेष संगठनों के माध्यम से उसे सामुदायिक हवा दिए जाने का प्री प्लान भी रहता है,जो आर एस एस की योजना का हिस्सा है जिसे व्यक्तिगत भूमि विवाद पर कुछ लोग नहीं समझ पाते चाहो एसटी एससी ओबीसी हो या समान्य वर्ग ,उन संगठनों का शिकार हो जाते हैं जिन्हें धर्म और जाति के नाम से पहले से ही जाल में फंसा कर रखा गया है ऐसी परिस्थितियों में दोनों पक्षों में आपसी चर्चा की जानी चाहिए परंतु ऐसे संगठन चर्चा की जगह संघर्ष को बढ़ावा देते हैं ताकि उनके संगठन का वर्चस्व उस समुदाय के लिए हितकारी लगे। निश्चित ही सोनभद्र कांड मानवता को शर्मसार करने वाला है लेकिन उसके पीछे जो षड्यंत्र चला है वह विकृत मानसिकता वाले सामाजिक संगठन के माध्यम से रची गई सोची समझी साजिश , जिसमें वर्ग विशेष को जानबूझकर दबंग बता कर झगड़े को शांत करने के बजाय उसमें रोटी सेकने का काम किया गया है यही बात दुखदाई है आपको पता है कि यह संघर्ष आदिवासी और ओबीसी के बीच हुआ है लेकिन उसके मूल में सवर्ण समाज की मानसिकता रही है जिसका खामियाजा हमारे मनोबल को गिराने का तो हुआ ही लेकिन समुदायों के बीच संघर्ष पैदा करके सामाजिक समरसता के बीच एक दरार पैदा करने का भी काम हुआ है । आदिवासी समुदाय के द्वारा या अन्य संगठनों के द्वारा देश के विभिन्न जनवादी संगठनों के माध्यम से प्रोटेस्ट किया जा रहा है,सराहनीय है, पर इसकी जड़ कहां है इस पर भी हमारा ध्यान होना चाहिए।
(गुलजार सिंह मरकाम रा सं गो समग्र क्रांति आंदोलन)
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