"संघर्ष और आनंद एक साथ संभव नहीं !"
नाच गान करते रहो,
हक की करो न बात।
यही बात है जग जाहिर,नहीं लड़ने की औकात।।
तीर धनुष और टांगिया, सिर में बंधा गुफान, फिर भी पिटते दीखते, ढोल गंवार समान।। क्या तुलसी की सीख ने किया तुम्हें बेजान,
या मनु की चाबुक से बंद हुआ है जुबान।कीड़ा भी तकलीफ़ से मारे डंक उठाय ,
तुम तो मानुष जीव हो,
क्या इतना समझ ना आय।
(गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)
नाच गान करते रहो,
हक की करो न बात।
यही बात है जग जाहिर,नहीं लड़ने की औकात।।
तीर धनुष और टांगिया, सिर में बंधा गुफान, फिर भी पिटते दीखते, ढोल गंवार समान।। क्या तुलसी की सीख ने किया तुम्हें बेजान,
या मनु की चाबुक से बंद हुआ है जुबान।कीड़ा भी तकलीफ़ से मारे डंक उठाय ,
तुम तो मानुष जीव हो,
क्या इतना समझ ना आय।
(गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)
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