संविधान निर्माण के समय बहस में केप्टन जयपाल सिंह मुण्डा जी के आदिवासी शब्द को क्यों नहीं माना गया । हमने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि इस शब्द को नकारने वाले कौन लोग थे और क्यों इसे स्थापित करने से मना किया गया । निश्चित ही यह शब्द भविष्य के लिये उन लोगों के लिये खतरे की घंटी प्रतीत हो रहा होगा जो इसका विरोध कर रहे थे कि भविष्य में यह समुदाय इस नाम के इर्द गिर्द एकत्र हो जाता हे तो देश की धरती का असली मालिक होने का प्रमाण यह संविधान स्वयं दे सकता था । इनका एक धर्म हो सकता है । दुनिया के आदिवासियों की तरह इनकी अपनी पहचान हो सकती है । तब सूचि में अन्य लोगों को शामिल करना कितना कठिन होगा । यही सब आशंकाओं के चलते आदिवासी शब्द को संविधान में शामिल नहीं किया गया । आज की तारीख में जब इतिहास को खंगाला जा रहा हे । राष्टीय अंर्ताष्टीय बहस शुरू हुई है तब लोगों को लग रहा हे कि हम ही असली वासिंदे हैं । यदि यह काम पहले हो गया होता तो सारे देश का मालिक एकजुट रहता । उसे अपनी पहचान बताने की आवश्यकता नहीं होती । दुर्भाग्य से अनुसूचि बन जाने के कारण इसमें आज भी लगातार जोडने घटाने का काम चल रहा है । वह भी केवल राजनीतिक बोट बैंक के लिये या जुडने की कोषिश वाले लोग लाभ की दृष्टि से शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं । इस सूचि में जोडने घटाने के चक्कर में आजादी पूर्व की कुछ असली जनजातियां बाहर हो चुकी हैं, जोकि कहीं अनु0जाति कहीं पिछडी तो कहीं सामान्य जाति के रूप में जोड दी Ûईं जिन्हे आज संघर्ष करना पड रहा है और जिन्हें नहीं होना चाहिये एैसी जातियां सूचि में जुडने का प्रयास कर रहीं हें । आदिवासियों को सतर्क हो जाना चाहिये । संविधान निर्मात्री सभा में एकजुटता के अभाव में काफी नुकसान झेलना पडा है अब एक प्रथक धम्रकोड पर आम सहमति बना लिया जाय अन्यथा सामाजिक विभाजन में प्रथक धर्म कोड भी नहीं मिलेगा ! हमसे एक बार पुनः एैतिहासिक भूल होने की संभावना है जिसे समय रहते ठीक कर लिया जाना ही बेहतर होगा ।
संविधान निर्माण के समय बहस में केप्टन जयपाल सिंह मुण्डा जी के आदिवासी शब्द को क्यों नहीं माना गया । हमने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि इस शब्द को नकारने वाले कौन लोग थे और क्यों इसे स्थापित करने से मना किया गया । निश्चित ही यह शब्द भविष्य के लिये उन लोगों के लिये खतरे की घंटी प्रतीत हो रहा होगा जो इसका विरोध कर रहे थे कि भविष्य में यह समुदाय इस नाम के इर्द गिर्द एकत्र हो जाता हे तो देश की धरती का असली मालिक होने का प्रमाण यह संविधान स्वयं दे सकता था । इनका एक धर्म हो सकता है । दुनिया के आदिवासियों की तरह इनकी अपनी पहचान हो सकती है । तब सूचि में अन्य लोगों को शामिल करना कितना कठिन होगा । यही सब आशंकाओं के चलते आदिवासी शब्द को संविधान में शामिल नहीं किया गया । आज की तारीख में जब इतिहास को खंगाला जा रहा हे । राष्टीय अंर्ताष्टीय बहस शुरू हुई है तब लोगों को लग रहा हे कि हम ही असली वासिंदे हैं । यदि यह काम पहले हो गया होता तो सारे देश का मालिक एकजुट रहता । उसे अपनी पहचान बताने की आवश्यकता नहीं होती । दुर्भाग्य से अनुसूचि बन जाने के कारण इसमें आज भी लगातार जोडने घटाने का काम चल रहा है । वह भी केवल राजनीतिक बोट बैंक के लिये या जुडने की कोषिश वाले लोग लाभ की दृष्टि से शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं । इस सूचि में जोडने घटाने के चक्कर में आजादी पूर्व की कुछ असली जनजातियां बाहर हो चुकी हैं, जोकि कहीं अनु0जाति कहीं पिछडी तो कहीं सामान्य जाति के रूप में जोड दी Ûईं जिन्हे आज संघर्ष करना पड रहा है और जिन्हें नहीं होना चाहिये एैसी जातियां सूचि में जुडने का प्रयास कर रहीं हें । आदिवासियों को सतर्क हो जाना चाहिये । संविधान निर्मात्री सभा में एकजुटता के अभाव में काफी नुकसान झेलना पडा है अब एक प्रथक धम्रकोड पर आम सहमति बना लिया जाय अन्यथा सामाजिक विभाजन में प्रथक धर्म कोड भी नहीं मिलेगा ! हमसे एक बार पुनः एैतिहासिक भूल होने की संभावना है जिसे समय रहते ठीक कर लिया जाना ही बेहतर होगा ।
Mere soch se adiwasi is Desh ka malikh hai malikh Ko kisse dhram cord ki jarurat hai,,,,,,?
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