जनजाति समुदाय समान्यत : विवाह का समय बैसाख महीने मे ही निर्धारित करता है । इसके अनेक कारणो मे महत्वपूर्ण कारण क्रषि आधारित जीवन चर्या है । उन्हारी/रवि की फसल काटकर इसकी गहाई आदि से ज्यो ज्यो फुर्सत होते गये वैसे ही स्वयम् तिथियो का निर्धारण कर लिया जाता है । पहला बिन्दु क्रषि कार्य से फुर्सत । दूसरी बात पर ध्यान दे तो खुले समय मे गान्व मे पर्याप्त जगह की पूर्ति घरो से लगी बाडिया कर देती है । सरल , सहज और सामन्जस्यपूर्ण भावना वाला यह समुदाय गांव में प्रत्येक वैवाहिक आयोजन वाले परिवार को भरपूर सहयोग देता है । आज भी निमन्तरित रिश्तेदार, नातेदार वैवाहिक आयोजन में जाने के लिये अपने साथ कुछ ना कुछ खाद्यान्न या दोना,पत्तल आदि जो वैवाहिक आयोजन में लगता है, लेकर सहयोग देने की परम्परा भी है । सामूहिक समस्या सामुदायिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए कभी कभी किन्हीं गांवो में यह भी देखने में आता है कि बारातियों के स्वागत सत्कार में घर वालों की तरफ से कमी ना हो जाये इसलिये हर तरह के कार्य में भूमिका निभाते हुए मुख्य विवाह बारात के दिन सामूहिक बारात भोज मे शामिल ना होकर सामूहिक ग्राम भोज विवाह सम्पन्न होने के बाद भी करा दिया जाता है । इस समुदाय के आदर्श की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है कि यदि किसी परिवार ने समुदायिक पन्चो से प्रर्थना कर लिया कि मै ग्राम भोज अन्यत्र समय मे करा दून्गा तब भी पन्चगणो द्वारा सहमति दे देने की भी परम्परा है । इस तरह के उदाहरण अन्य समुदायो में देखने को नहीं मिलता । दहेज और मान्ग से मुक्त इस समाज से प्रेरणा लिये जाने की और इस तरह की सहयोगी परम्परा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ।
-आज का चिंतन,
"लगता है कि "प्रकृतिवादी संस्कृति" के वाहक "मनुवादी संस्कृति" के विरूद्ध अपनी अलग पहचान स्थापित करते हुए आगें बढेंगे। लेकिन कभी कभी कुछ क्रियाकलापों से एैसा लगता है कि, हम नकल के चक्कर में अपनी मूल अवधारणा और पहचान को ही मिटा कर रख देंगे ।" -gulzar singh markam
-आज का चिंतन,
"लगता है कि "प्रकृतिवादी संस्कृति" के वाहक "मनुवादी संस्कृति" के विरूद्ध अपनी अलग पहचान स्थापित करते हुए आगें बढेंगे। लेकिन कभी कभी कुछ क्रियाकलापों से एैसा लगता है कि, हम नकल के चक्कर में अपनी मूल अवधारणा और पहचान को ही मिटा कर रख देंगे ।" -gulzar singh markam
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