part-1
देश के अनेक हिस्सों जिसमें कभी कोई इलाका,कभी कोई शहर या कस्बा होता है। सम्प्रदायिक तनाव या अन्य किन्हीं कारणों से सुरक्षा बल या अन्य अर्ध सैनिक बल तैनात किये जाते हैं। ऐसे मौकों पर यदि तैनाती राजनीतिक प्रभाव/प्रयोजन के कारण हुई हो तब सुरक्षा बल को उस स्थान पर अधिक समय तक रख दिया जाता है । ऐसी परिस्थिति में सुरक्षा बल के जवान लम्बी अवधि तक तैनाती और उस स्थान और सामाजिक पर्यावरण/परिस्थितियों का अध्ययन नहीं होने के कारण परेशान हो जाते हैं । किसी तरह या तो वहाँ से जाना चाहते हैं या अपनी इच्छानुसार वहाँ के निवासियों से व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं जोकि सम्भव नहीं होता । परिणामस्वरूप कुछ सैनिक अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए मनमानी करने लगते हैं । जिसके कारण स्थानीय नागरिक उनकी लम्बे समय तक तैनाती का विरोध करते हैं । परन्तु यदि तैनाती कुटिल राजनीति से प्रभावित है तब परिस्थितिया लगातार असमान्य होती जाती हैं । इस तरह के अनेक उदाहरण देश के विभिन्न हिस्सों में घटित होती हैं । जहां पर स्थानीय नागरिकों द्वारा सुरक्षा बल को हटाने की मांग करते, उसके विरुद्ध आंदोलन करते हैं। उत्तर प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों,सहित काश्मीर इसके उदाहरण हैं। इरोम शर्मिला का अनशन इसी बात का सबूत है । आखिर सोनी शोरी या बस्तर का हर व्यक्ति भी तो चाहता होगा कि बस्तर मे अमन शान्ति का माहौल हो तब किन कारणो से बस्तर को युद्ध जैसे माहौल मे धकेला जा रहा है । सुरक्षा बल भी ऊब चुका है राजनैतिज्ञो की राजनीति से , परन्तु अनुशासन मे बन्धा सैनिक राजनीति के आदेश का पालन कर रहा है । उसे भी नही मालूम ना जनता को भी , कि बस्तर मे यह कैसा खेल किसके लिये चल रहा है ।
part -2
छ०ग० में समस्या नक्सलवाद का नहीं, वरन् बस्तर की जमीन के भीतर अथाह खनिज भण्डार का है । बस्तर का इलाका खाली होगा तभी वहाँ का खनिज निकाला जा सकता है। सीधा आदिवासी समुदायों का विस्थापन कराना सम्भव नहीं, कारण कि यह क्षेत्र विश्व पटल पर आदिवासी सन्सक्रति का प्रमुख केंद्र के रूप में प्रसिद्ध और जनित है। इसे केवल विकास का नाम देकर विकास में नक्सलियों द्वारा अवरोध पैदा करने वाले तत्व के रूप में प्रचारित कर विश्व मानस पटल पर नक्सलीयो के विरुद्ध कार्रवाई के नाम पर सहानुभूति हासिल करने का प्रयास और बहाना बनाया जा रहा है । असली मकसद है। वन एवं खनिज सम्पदा।
देश के अनेक हिस्सों जिसमें कभी कोई इलाका,कभी कोई शहर या कस्बा होता है। सम्प्रदायिक तनाव या अन्य किन्हीं कारणों से सुरक्षा बल या अन्य अर्ध सैनिक बल तैनात किये जाते हैं। ऐसे मौकों पर यदि तैनाती राजनीतिक प्रभाव/प्रयोजन के कारण हुई हो तब सुरक्षा बल को उस स्थान पर अधिक समय तक रख दिया जाता है । ऐसी परिस्थिति में सुरक्षा बल के जवान लम्बी अवधि तक तैनाती और उस स्थान और सामाजिक पर्यावरण/परिस्थितियों का अध्ययन नहीं होने के कारण परेशान हो जाते हैं । किसी तरह या तो वहाँ से जाना चाहते हैं या अपनी इच्छानुसार वहाँ के निवासियों से व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं जोकि सम्भव नहीं होता । परिणामस्वरूप कुछ सैनिक अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए मनमानी करने लगते हैं । जिसके कारण स्थानीय नागरिक उनकी लम्बे समय तक तैनाती का विरोध करते हैं । परन्तु यदि तैनाती कुटिल राजनीति से प्रभावित है तब परिस्थितिया लगातार असमान्य होती जाती हैं । इस तरह के अनेक उदाहरण देश के विभिन्न हिस्सों में घटित होती हैं । जहां पर स्थानीय नागरिकों द्वारा सुरक्षा बल को हटाने की मांग करते, उसके विरुद्ध आंदोलन करते हैं। उत्तर प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों,सहित काश्मीर इसके उदाहरण हैं। इरोम शर्मिला का अनशन इसी बात का सबूत है । आखिर सोनी शोरी या बस्तर का हर व्यक्ति भी तो चाहता होगा कि बस्तर मे अमन शान्ति का माहौल हो तब किन कारणो से बस्तर को युद्ध जैसे माहौल मे धकेला जा रहा है । सुरक्षा बल भी ऊब चुका है राजनैतिज्ञो की राजनीति से , परन्तु अनुशासन मे बन्धा सैनिक राजनीति के आदेश का पालन कर रहा है । उसे भी नही मालूम ना जनता को भी , कि बस्तर मे यह कैसा खेल किसके लिये चल रहा है ।
part -2
छ०ग० में समस्या नक्सलवाद का नहीं, वरन् बस्तर की जमीन के भीतर अथाह खनिज भण्डार का है । बस्तर का इलाका खाली होगा तभी वहाँ का खनिज निकाला जा सकता है। सीधा आदिवासी समुदायों का विस्थापन कराना सम्भव नहीं, कारण कि यह क्षेत्र विश्व पटल पर आदिवासी सन्सक्रति का प्रमुख केंद्र के रूप में प्रसिद्ध और जनित है। इसे केवल विकास का नाम देकर विकास में नक्सलियों द्वारा अवरोध पैदा करने वाले तत्व के रूप में प्रचारित कर विश्व मानस पटल पर नक्सलीयो के विरुद्ध कार्रवाई के नाम पर सहानुभूति हासिल करने का प्रयास और बहाना बनाया जा रहा है । असली मकसद है। वन एवं खनिज सम्पदा।
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