काफी दिनों से प्रयास में था कि इस विषय पर समुदाय के बुजुर्गो से प्राप्त जानकारी को शेयर करू । हो सकता है यह पूजा क्षेत्र विशेष तक सीमित हो या हो सकता है सभी जगह प्रचलित हो । पूजा की प्रक्रिया से लगता है कि इसका प्रचलन मुगलकाल से आरम्भ हुआ है । या हो सकता है कि यह पूजा पद्दति गोडियन व्यवस्था मे पहले से प्रचलित रहा हो परन्तु वर्तमान पद्दति का सूक्ष्म अवलोकन करने से पता चलता है कि जिस पद्दति से आज की पूजा हो रही है शायद पूर्व मे ऐसा नही हो रहा होगा । प्राप्त जानकारी के अनुसार यह पूजा किसी परिवार की एक पीढ़ी जब विवाह कार्य से मुक्त हो जाती तब पीढ़ी पूजा की जाती थी । परन्तु कुछ क्षेत्रों में देखने में आता है कि विवाह सम्पन्न होने के तीन साल बाद इस पूजा को सम्पन्न कराया जाता है । खैर जब भी होता हो लेकिन जिस नारायन पेन की पूजा की जाती है उसे तो समय समय पर अन्य पेनो की पूजा के साथ भी की जाती है । नरायन पेन की पूजा के सम्बन्ध में एक किवदन्ती प्रचलित है कि मुगल काल में जिन राज्यों में उनकी सत्ता थी या जिन राज्यो पर विजय पाते जाते थे उन राज्यों में मुगल सैनिकों के डेरे होते थे। कुछ सेना के टुकड़ी नायक इन क्षेत्रों पर स्थायी वर्चस्व बनाए रखने के लिए सदैव पडाव डाले रहते थे। चूंकि उनके साथ स्त्रियां नहीं होती थी इसलिए अपने प्रभुत्व क्षेत्र में स्त्रियों को बलपूर्वक अपने डेरे में ले जाते थे। सारे देश में विजय उपरांत मुगल बादशाह जब गोन्डवाना राज्य की ओर बढे अनेकों आक्रमण के बाद भी गोन्डवाना पर विजय पाना कठिन हो गया अन्ततः १६वी शताब्दी तक कुछ जीत हासिल कर अन्य विजित राज्यों में जो क्रत्य किया जाता था विजित गोन्डवाना क्षेत्र में भी करना आरम्भ कर दिया । इस क्रत्य में यह शामिल था कि जिस घर परिवार में विवाह सम्पन्न हुआ है सैनिकों के द्वारा दुल्हन को उसी दिन उठाकर मुगल सैनिकों के मुखिया के हरम में पहुचाया जाता , फिर उसे मुक्त किया जाता था । धीरे धीरे इसकी जानकारी जब सम्पूर्ण गोन्डवाना राज्य के क्षेत्रों में पहुंचने लगी तब गोन्डवाना के विभिन्न स्थानीय राजाओं ने गोन्डवाना की अस्मिता को सुरक्षित रखने के लिए एक मीटिंग बुलाई जिसमें गोन्डवाना के अनेक राजाओ ने राजा नारायन देव की अगुवाई मे इस समस्या का हल निकाला जो "नारायन देव पूजा" के समय किये जाने वाले विधी विधान और उस सन्दर्भ मे उस वक्त गाये जाने गीतो से प्रकट होता है । नारायन देव के आव्हान पर बुलाई गई मीटिग मे पारित प्रस्ताव कुछ इस तरह से थे । " जिस परिवार मे कुल वधु को लाना है वह परिवार सबसे पहले साल दो साल पूर्व से ही दो सुअर (एक मादा एक नर) पाल कर रखे या कही भी आरक्षित करके रखे ताकि परिवार मे जिस दिन कुल वधु का आगमन हो उसी दिन रात्रि मे उन जानवरो की बलि दी जाये यह बलि सामान्य बलि नही होगी बल्कि इन्हे दरवाजे की देहरी मे मूसल से गला दबाकर मारा जाय ताकि इसका रक्त बर्बाद ना हो , जिसे रात्रि मे ही काट पीटकर पकाया जाय उसके रक्त को परिवार के सदस्यो के कपडे हाथ पैर और घर भर मे फैला दिया जाय साथ ही पके मास तथा उसके सोरबे को खाते पीते हुए प्रहसन के रूप मे एक दूसरे के ऊपर डालकर गन्दगी का वातावरण बना लेते । तथा दोनों जानवरो के सिर को घर के मुख्य द्वार या फाटक मे टान्ग देते हैं । घर के सभी वयस्क स्त्री पुरूष रात्रि जागरण करते हैं । " इसका आशय यह रहा होगा कि मुगल लोग सुअर से परहेज करते है यदि वे विवाह की खबर सुनकर दुल्हन को अगुवा करने आयेगे तो सबसे पहले उस घर के फाटक मे कटे हुए सुअर के दो सिर तथा घर वाले सदस्यो को खून से लतफत और गन्दगी देख वापस हो जायेगे आदि ।" इस तरह नारायन देव पूजा मे गाये जाने वाले गीत मे आव्हान किया जाता है कि " धरती माता धरती माता इमा बगा दातिन ।" प्रत्युत्तर मे कहा जाता है । " नरायन पेन ता निवता वाता अगा नना दाका ", खीलामुठवा खीलामुठवा इमा बगा दातिन , नरायन पेन ता निवता वाता अगा नना दाका" इस तरह रात भर अनुष्ठान मे बारी बारी से सभी पेनो को आव्हान करते हुए गीत गाया जाता है । किवदन्ती के अनुशार गोन्डवाना राज्य मे राजा नारायनदेव के इस तरकीब से नव वधुओ को हासिल करने मे असफल सैनिक जब इसकी जानकारी सैन्य डेरा प्रमुख तक पहुचाने लगे तब ऐसे सैन्य प्रमुख क्रोध से बिना सैन्य तैयारी के विवाह वाले उन गावो मे पहुचकर अनिष्ट की सोचते उससे पूर्व नारायन देव द्वारा पूर्व नियोजित जाल में फसकर मात खा जाते थे। इस तरह नारायन देव की सूझबूझ से मुगल काल में गोन्डवाना अस्मिता की रक्षा हुई । हो सकता है इन्हीं कारणों से राजा नारायन देव के नाम पर यह पूजा विधान आरम्भ हुआ हो । जो भी हो पर आज भी मन्डला तथा डिन्डौरी जिलों में यह पूजा अनवरत जारी है । अन्य क्षेत्रों में पीढ़ी पूजा का रिवाज है या नहीं यदि है तो कब और कैसे की जाती है यदि नहीं है तो हो सकता है यह पूजा परिस्थितिजन्य आरम्भ हुई हो । इस पर शोध की आवश्यकता है । -gsmarkam
काफी दिनों से प्रयास में था कि इस विषय पर समुदाय के बुजुर्गो से प्राप्त जानकारी को शेयर करू । हो सकता है यह पूजा क्षेत्र विशेष तक सीमित हो या हो सकता है सभी जगह प्रचलित हो । पूजा की प्रक्रिया से लगता है कि इसका प्रचलन मुगलकाल से आरम्भ हुआ है । या हो सकता है कि यह पूजा पद्दति गोडियन व्यवस्था मे पहले से प्रचलित रहा हो परन्तु वर्तमान पद्दति का सूक्ष्म अवलोकन करने से पता चलता है कि जिस पद्दति से आज की पूजा हो रही है शायद पूर्व मे ऐसा नही हो रहा होगा । प्राप्त जानकारी के अनुसार यह पूजा किसी परिवार की एक पीढ़ी जब विवाह कार्य से मुक्त हो जाती तब पीढ़ी पूजा की जाती थी । परन्तु कुछ क्षेत्रों में देखने में आता है कि विवाह सम्पन्न होने के तीन साल बाद इस पूजा को सम्पन्न कराया जाता है । खैर जब भी होता हो लेकिन जिस नारायन पेन की पूजा की जाती है उसे तो समय समय पर अन्य पेनो की पूजा के साथ भी की जाती है । नरायन पेन की पूजा के सम्बन्ध में एक किवदन्ती प्रचलित है कि मुगल काल में जिन राज्यों में उनकी सत्ता थी या जिन राज्यो पर विजय पाते जाते थे उन राज्यों में मुगल सैनिकों के डेरे होते थे। कुछ सेना के टुकड़ी नायक इन क्षेत्रों पर स्थायी वर्चस्व बनाए रखने के लिए सदैव पडाव डाले रहते थे। चूंकि उनके साथ स्त्रियां नहीं होती थी इसलिए अपने प्रभुत्व क्षेत्र में स्त्रियों को बलपूर्वक अपने डेरे में ले जाते थे। सारे देश में विजय उपरांत मुगल बादशाह जब गोन्डवाना राज्य की ओर बढे अनेकों आक्रमण के बाद भी गोन्डवाना पर विजय पाना कठिन हो गया अन्ततः १६वी शताब्दी तक कुछ जीत हासिल कर अन्य विजित राज्यों में जो क्रत्य किया जाता था विजित गोन्डवाना क्षेत्र में भी करना आरम्भ कर दिया । इस क्रत्य में यह शामिल था कि जिस घर परिवार में विवाह सम्पन्न हुआ है सैनिकों के द्वारा दुल्हन को उसी दिन उठाकर मुगल सैनिकों के मुखिया के हरम में पहुचाया जाता , फिर उसे मुक्त किया जाता था । धीरे धीरे इसकी जानकारी जब सम्पूर्ण गोन्डवाना राज्य के क्षेत्रों में पहुंचने लगी तब गोन्डवाना के विभिन्न स्थानीय राजाओं ने गोन्डवाना की अस्मिता को सुरक्षित रखने के लिए एक मीटिंग बुलाई जिसमें गोन्डवाना के अनेक राजाओ ने राजा नारायन देव की अगुवाई मे इस समस्या का हल निकाला जो "नारायन देव पूजा" के समय किये जाने वाले विधी विधान और उस सन्दर्भ मे उस वक्त गाये जाने गीतो से प्रकट होता है । नारायन देव के आव्हान पर बुलाई गई मीटिग मे पारित प्रस्ताव कुछ इस तरह से थे । " जिस परिवार मे कुल वधु को लाना है वह परिवार सबसे पहले साल दो साल पूर्व से ही दो सुअर (एक मादा एक नर) पाल कर रखे या कही भी आरक्षित करके रखे ताकि परिवार मे जिस दिन कुल वधु का आगमन हो उसी दिन रात्रि मे उन जानवरो की बलि दी जाये यह बलि सामान्य बलि नही होगी बल्कि इन्हे दरवाजे की देहरी मे मूसल से गला दबाकर मारा जाय ताकि इसका रक्त बर्बाद ना हो , जिसे रात्रि मे ही काट पीटकर पकाया जाय उसके रक्त को परिवार के सदस्यो के कपडे हाथ पैर और घर भर मे फैला दिया जाय साथ ही पके मास तथा उसके सोरबे को खाते पीते हुए प्रहसन के रूप मे एक दूसरे के ऊपर डालकर गन्दगी का वातावरण बना लेते । तथा दोनों जानवरो के सिर को घर के मुख्य द्वार या फाटक मे टान्ग देते हैं । घर के सभी वयस्क स्त्री पुरूष रात्रि जागरण करते हैं । " इसका आशय यह रहा होगा कि मुगल लोग सुअर से परहेज करते है यदि वे विवाह की खबर सुनकर दुल्हन को अगुवा करने आयेगे तो सबसे पहले उस घर के फाटक मे कटे हुए सुअर के दो सिर तथा घर वाले सदस्यो को खून से लतफत और गन्दगी देख वापस हो जायेगे आदि ।" इस तरह नारायन देव पूजा मे गाये जाने वाले गीत मे आव्हान किया जाता है कि " धरती माता धरती माता इमा बगा दातिन ।" प्रत्युत्तर मे कहा जाता है । " नरायन पेन ता निवता वाता अगा नना दाका ", खीलामुठवा खीलामुठवा इमा बगा दातिन , नरायन पेन ता निवता वाता अगा नना दाका" इस तरह रात भर अनुष्ठान मे बारी बारी से सभी पेनो को आव्हान करते हुए गीत गाया जाता है । किवदन्ती के अनुशार गोन्डवाना राज्य मे राजा नारायनदेव के इस तरकीब से नव वधुओ को हासिल करने मे असफल सैनिक जब इसकी जानकारी सैन्य डेरा प्रमुख तक पहुचाने लगे तब ऐसे सैन्य प्रमुख क्रोध से बिना सैन्य तैयारी के विवाह वाले उन गावो मे पहुचकर अनिष्ट की सोचते उससे पूर्व नारायन देव द्वारा पूर्व नियोजित जाल में फसकर मात खा जाते थे। इस तरह नारायन देव की सूझबूझ से मुगल काल में गोन्डवाना अस्मिता की रक्षा हुई । हो सकता है इन्हीं कारणों से राजा नारायन देव के नाम पर यह पूजा विधान आरम्भ हुआ हो । जो भी हो पर आज भी मन्डला तथा डिन्डौरी जिलों में यह पूजा अनवरत जारी है । अन्य क्षेत्रों में पीढ़ी पूजा का रिवाज है या नहीं यदि है तो कब और कैसे की जाती है यदि नहीं है तो हो सकता है यह पूजा परिस्थितिजन्य आरम्भ हुई हो । इस पर शोध की आवश्यकता है । -gsmarkam
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