"2018.19 के चुनाव में सवर्ण जातियों के वोट का वर्णीय स्तर पर धुर्वीकरण होगा ।"
-पूर्व में सवर्ण वोट में जातिगत धुर्वीकरण होता रहा है
यथा ठाकुर बनाम बामन
-पूर्व में सवर्ण वोट में जातिगत धुर्वीकरण होता रहा है
यथा ठाकुर बनाम बामन
आगामी किसी भी चुनाव में भले ही कांग्रेस या अन्य दलों के सवर्ण उस दल के कटटर कार्यकर्ता जाने वा माने जाते हैं ,पर वे अब आंतरिक रूप से भाजपा को मदद करेंगे । कारण कि अब होने वाला राजनैतिक संघर्ष सांस्कृतिक रूप ले चुका है अवर्ण बनाम सवर्ण की झलक साफ साफ दिखाई देने लगी है । बंटेगा केवल अवर्ण जिसमें आदिवासी पहले नम्बर पर होगा । अनुसूचित जाति समुदाय में खासकर चमार जाति की इस मामले में समझ बढी है । उसकेा वोट का कुछ हद तक ध्रुर्वीकरण हुआ है इसलिये अभी दुश्मन का सीधा निशाना उस पर है भय और आतंक से उसे डराया जा रहा है जबकि निशाना आदिवासी भी है पर उसे अलग थलग करके उससे अगले चरण में निपटने का लक्ष्य बनाया गया है ।
इसलिये मप्र में कम से कम अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग का ही समस्या के आधार पर धुर्वीकरण की दिशा में कुछ प्रयास हो जाये तो दुश्मन के मंसूबों पर पानी फेरा जा सकता है । जनजाति वर्ग में प्रमुख जाति भील तथा उसकी उपजातियां और गोंड तथा उसकी उपजातियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी । जिसे अनुसूचित जाति के साथ अवर्ण मानसिकता को बनाकर वर्गीय धुर्वीकरण की जिम्मेदारी निभानी होगी । मूलनिवासी समुदाय वर्ग में रहकर वर्गीय मानसिकता तो दूर जातीय मानसिकता में भी जातीय मामले में सुदृढ नहीं है । जातीय मासिकता की भावना के बाद सामुदायिक भावना का उदय होता है सामुदायिक भावना पनपने के बाद वर्ग हित में सोचने की क्षमता बढ जाती है ,वर्गों की परिपक्वता वर्ण बनकर निकलती है । अवर्ण और सवर्ण , आर्य दृविण के बीच का अंतर तब समझ में आती है । -gsmarkam
इसलिये मप्र में कम से कम अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग का ही समस्या के आधार पर धुर्वीकरण की दिशा में कुछ प्रयास हो जाये तो दुश्मन के मंसूबों पर पानी फेरा जा सकता है । जनजाति वर्ग में प्रमुख जाति भील तथा उसकी उपजातियां और गोंड तथा उसकी उपजातियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी । जिसे अनुसूचित जाति के साथ अवर्ण मानसिकता को बनाकर वर्गीय धुर्वीकरण की जिम्मेदारी निभानी होगी । मूलनिवासी समुदाय वर्ग में रहकर वर्गीय मानसिकता तो दूर जातीय मानसिकता में भी जातीय मामले में सुदृढ नहीं है । जातीय मासिकता की भावना के बाद सामुदायिक भावना का उदय होता है सामुदायिक भावना पनपने के बाद वर्ग हित में सोचने की क्षमता बढ जाती है ,वर्गों की परिपक्वता वर्ण बनकर निकलती है । अवर्ण और सवर्ण , आर्य दृविण के बीच का अंतर तब समझ में आती है । -gsmarkam
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