देश की व्यवस्था को एक मुटठी में गिरफतार करने का प्रयास जारी है ।
आरएसएस के एकात्मवाद,फासीवाद की अंतिम परिणिती सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, है जिसे वह अपने सहयोगी संगठनो के माध्यम से किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहती है । राष्टवादी होने की बात समझ में आती है पर सांस्कृतिक राष्ट्रवादी की परिभाषा क्या है, इसे समझने की आवश्यकता है । क्या भारत में अभी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद नहीं ? यदि नहीं तो आरएसएस कौन से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना की कल्पना में है । क्या भारत के नागरिको के सारे संस्कार नष्ट हो गये । रिस्ते नाते,अदब इज्जत,पडोसी से सदभावना समाप्त हो गई ? इंसान और जानवर के बीच कोई अंतर नहीं रह गया ? क्या आस्था और विश्वास पूरी तरह समाप्त हो चुका है ? क्या इंसान के आंतरिक गुण और स्वभाव में शैतानियत बैठ गई जिसे आरएसएस छदम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर ठीक कर देने का ढिडोरा पीट रही है । मित्रो आरएसएस छदम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद केवल हिंदू हिन्दी हिन्दुस्तान से उूपर उठकर नहीं है । उसका एकात्मवाद भी इसी के इर्दगिर्द घूमता है जो फासीवादी,तानाशाही सत्ता की स्थापना से ही संभव है । संविधान में प्रजातांत्रिक व्यवस्था के रहते यह कभी संभव नहीं है । इसलिये संविधान की समानतावादी व्यवस्था को अपने विभिन्न सहयोगी संगठनो के अगुवाओं से व्यक्तिगत या सार्वजनिक बयानों से फेक मीडिया के माध्यम से जनमानस को नकारा साबित करने का प्रयास किया जा रहा है । भारतीय जनमानस ने इनके कथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जडो को समझने का प्रयास किया है तब इन्होने अवसर की प्रतीक्षा मानकर गिरगिट की तरह रंग बदलकर अंबेडकर,गांधी,प्रजातंत्र और संविधान के सम्मान में बातें करने लगते हैं । और इसी बहाने एक नया पैतरा इनके मष्तिष्क में आया है कि लोहे को लोहे से काटो अर्थात कानून पालन कराने वाले न्यायपलिका तंत्र को कानून बनाने वाले तंत्र संसद से छोटा साबित करना यानि पैदा करने वाले बाप संसद को बच्चे सुप्रीमकोर्ट से नियंत्रित कराना ताकि प्रजातंत्र में प्रजा के विश्वास का माखौल उडाया जा सके संसद द्वारा बनाये जाने वाले हर कानून को नकारा साबित कर न्यायपालिका को सर्वोच्चता दिलाना । जनता के दिल दिमाग में लगातार यह भरने का प्रयास हो रहा है कि सुप्री्रमकोर्ट सबसे बडा है जबकि यह केवल व्यवस्था है, यदि अन्याय नहीं होगा संसद के बने कानून का लोग अक्षरशः पालन करने लगेगें तब जनता को सुप्रीम कोर्ट या किसी कोर्ट की आवश्यकता नहीं होगी । सुप्रीमकोर्ट को शक्तिशाली बनाकर उसके सहारे संसद पर पूरी तरह कब्जा जमाने का शडयंत्र हो रहा है तब संविधान बदला जा सकता है तब एकात्मवाद के माध्यम से हिन्दू हिन्दी हिन्दुस्तान का हल्ला बोलकर आरएसएस , सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की कल्पना, जिसे उनके गुरू चाण्क्य ने कहा था कि पराजित राष्ट्र तब तक पराजित नहीं होता जब तक उस देश को सांस्कृतिक रूप से पराजित नहीं किया गया हो । यही तो है एकात्मवाद का दर्शन शक्ति का केंद्रीकरण तानाशाही व्यवस्था का आधार जो सत्तााधारी की सांस्कृतिक व्यवस्था पर पूरी तरह निर्भर हो जाना यानि सांस्कृतिक गुलाम हो जाना । भौतिक गुलामी से मुक्ति संभव है सांस्कृतिक गुलामी से मुक्त होना कठिन होता है ।-gsmarkam
आरएसएस के एकात्मवाद,फासीवाद की अंतिम परिणिती सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, है जिसे वह अपने सहयोगी संगठनो के माध्यम से किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहती है । राष्टवादी होने की बात समझ में आती है पर सांस्कृतिक राष्ट्रवादी की परिभाषा क्या है, इसे समझने की आवश्यकता है । क्या भारत में अभी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद नहीं ? यदि नहीं तो आरएसएस कौन से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना की कल्पना में है । क्या भारत के नागरिको के सारे संस्कार नष्ट हो गये । रिस्ते नाते,अदब इज्जत,पडोसी से सदभावना समाप्त हो गई ? इंसान और जानवर के बीच कोई अंतर नहीं रह गया ? क्या आस्था और विश्वास पूरी तरह समाप्त हो चुका है ? क्या इंसान के आंतरिक गुण और स्वभाव में शैतानियत बैठ गई जिसे आरएसएस छदम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर ठीक कर देने का ढिडोरा पीट रही है । मित्रो आरएसएस छदम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद केवल हिंदू हिन्दी हिन्दुस्तान से उूपर उठकर नहीं है । उसका एकात्मवाद भी इसी के इर्दगिर्द घूमता है जो फासीवादी,तानाशाही सत्ता की स्थापना से ही संभव है । संविधान में प्रजातांत्रिक व्यवस्था के रहते यह कभी संभव नहीं है । इसलिये संविधान की समानतावादी व्यवस्था को अपने विभिन्न सहयोगी संगठनो के अगुवाओं से व्यक्तिगत या सार्वजनिक बयानों से फेक मीडिया के माध्यम से जनमानस को नकारा साबित करने का प्रयास किया जा रहा है । भारतीय जनमानस ने इनके कथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जडो को समझने का प्रयास किया है तब इन्होने अवसर की प्रतीक्षा मानकर गिरगिट की तरह रंग बदलकर अंबेडकर,गांधी,प्रजातंत्र और संविधान के सम्मान में बातें करने लगते हैं । और इसी बहाने एक नया पैतरा इनके मष्तिष्क में आया है कि लोहे को लोहे से काटो अर्थात कानून पालन कराने वाले न्यायपलिका तंत्र को कानून बनाने वाले तंत्र संसद से छोटा साबित करना यानि पैदा करने वाले बाप संसद को बच्चे सुप्रीमकोर्ट से नियंत्रित कराना ताकि प्रजातंत्र में प्रजा के विश्वास का माखौल उडाया जा सके संसद द्वारा बनाये जाने वाले हर कानून को नकारा साबित कर न्यायपालिका को सर्वोच्चता दिलाना । जनता के दिल दिमाग में लगातार यह भरने का प्रयास हो रहा है कि सुप्री्रमकोर्ट सबसे बडा है जबकि यह केवल व्यवस्था है, यदि अन्याय नहीं होगा संसद के बने कानून का लोग अक्षरशः पालन करने लगेगें तब जनता को सुप्रीम कोर्ट या किसी कोर्ट की आवश्यकता नहीं होगी । सुप्रीमकोर्ट को शक्तिशाली बनाकर उसके सहारे संसद पर पूरी तरह कब्जा जमाने का शडयंत्र हो रहा है तब संविधान बदला जा सकता है तब एकात्मवाद के माध्यम से हिन्दू हिन्दी हिन्दुस्तान का हल्ला बोलकर आरएसएस , सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की कल्पना, जिसे उनके गुरू चाण्क्य ने कहा था कि पराजित राष्ट्र तब तक पराजित नहीं होता जब तक उस देश को सांस्कृतिक रूप से पराजित नहीं किया गया हो । यही तो है एकात्मवाद का दर्शन शक्ति का केंद्रीकरण तानाशाही व्यवस्था का आधार जो सत्तााधारी की सांस्कृतिक व्यवस्था पर पूरी तरह निर्भर हो जाना यानि सांस्कृतिक गुलाम हो जाना । भौतिक गुलामी से मुक्ति संभव है सांस्कृतिक गुलामी से मुक्त होना कठिन होता है ।-gsmarkam
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