"पत्थल गढी" गोन्डवाना के आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
पत्थल गढी करने वाले आदिवासियो पर शासन प्रशासन और आर्य संस्कृति के लोग जिस तरह का बर्ताव कर रहे हैं, इसे नासमझी नहीं कहा जा सकता। यह बर्ताव आदिवासी संस्कृति के विरुद्ध हमला कहा जा सकता है। इसका मतलब यह है कि इतिहासविदो और समाजशास्त्रियो ने ग्रामीण भारत की सांस्कृतिक विरासत को जानबूझकर अन्धेरे मे रखा है, तभी तो पत्थल गढी जैसे महत्वपूर्ण ज्ञान से शेष भारतीय जनमानस अनभिज्ञ है । जबकि भारत देश का हर गाव इस पत्थल गढी के सन्केतक पर ही स्थापित है । जरा सोचे कि भारत देश का कौन सा गांव बिना सीवाना/मेंढा या ग्राम सीमा के लिखित आलिखित मानक से अछूता है , कोई भी नहीं ! इसी मानक के आधार पर ही तो ग्राम तथा ग्राम समुदाय की पहचान होती है । इसी के आधार पर वहाँ की सामाजिक, राजनीतिक सान्स्क्रतिक व्यवस्था सन्चालित होती है । शहरो की आरम्भिक इकाई भी तो गाव ही है । यही कारण है कि हर शहर के किसी कोने मे पत्थल गढी के रूप मे स्थापित प्रतीक चाहे वह खेडापति (भीमाल पेन) खेरमाई ,खीलामुठवा या अन्य स्थल हो । केवल आदिवासी ही नही हर वर्ग और समुदाय के द्वारा आज भी श्रदापूर्वक पूजे जाते है । पत्थल गढी के सम्बन्ध मे विस्त्रत जानकारी आवश्यक है, इसलिये जहा तक इस सम्बन्ध मे जानकारी का सन्कलन हो पाया है । प्रस्तुत है , ज्ञात हो कि पत्थल गढी प्रतीक या चिन्ह है जोकि व्यक्ति, परिवार, समुदाय और समाज से लेकर पारा, टोला, ग्राम , कोट, गढ,राज्य और राष्ट्र की पहचान को स्थापित करता है । इस तरह पत्थलगढी के २२ प्रकार होते हैं । जिसमें उपरोक्त पहचान के साथ व्यक्तिगत गोत्र से लेकर ग्राम समुदाय के निस्तार क्षेत्र मे नदी, तालाब , वन, पशु पक्षी के पाट के रूप स्थापित होते है । इस पत्थलगढी के सन्केतको को सीधा सीधा समझने के लिये आदिवासी समुदाय मे विवाह के नेग २२ बाटो से भी समझा जा सकता है जिसे अन्य ग्राम से आने वाले बारातियो से इन स्थानो के नाम पर नेग के रूप मे अदायगी करायी जाती है । आज के समय मे इसे भले ही विस्म्रित किया जाने लगा हो , केवल सन्थाल समुदाय ने इसे सामुहिक पहचान के रूप मे पर्व के रूप मे बचाये रखा हो । पर यह ग्रामीण भारत की स्वतन्त्र और व्यवस्थित परम्परा का प्रतीक है इसे मजबूत करने की आवश्यकता है वशर्ते जनमानस के बीच अच्छी प्रस्तुति हो । वर्तमान समय मे जो शासन प्रशासन एवं अराजकतावादी तन्त्र के माध्यम से व्यवधान उत्पन्न किये जा रहे है ,ये पत्थलगढ के सम्बन्ध मे हमारी दूरद्रष्टि की कमी या प्रस्तुतिकरण की कमजोरियो को उजागर करता है । आज हम भारत के सन्विधान से शाषित है उसकी व्यवस्था से नियन्त्रित होते है इसलिये पत्थलगढी की विस्त्रत जानकारी प्रस्तुत करते हुए विधिवत स्थापना की जा सकती है जिसे कोई रोक नही सकता बल्कि समस्त ग्राम समुदाय भी पत्थलगढी के इस विस्म्रत होते महत्वपूर्ण ग्रामीण पहचान को स्थापित करने मे आपका सहयोग करेगा । परन्तु मनुवादी विचारो से प्रेरित और प्रभावितो पर हिन्दू सन्सक्रति के "कैडर" नाम का चश्मा चढाकर रख दिया गया है जिसके कारण उन्हे कुछ नही दिखाई देगा । भले ही वे इसी ग्राम सन्सक्रति में पत्थल गढी के स्थल की पूजा कर रहे है । इनसे अपेक्षा नही है पर उन्हे पत्थल गढी के महत्व के बारे मे अच्छी प्रस्तुति देकर, देश की मुख्यधारा जो आदिवासी की परम्पराए और सन्सकारो की नीव पर टिकी है । से सुन्दर, स्वस्थ ,सम्रद्ध समाज और राष्ट्र की कल्पना को साकार किया जा सकता है ।-gsmarkam
पत्थल गढी करने वाले आदिवासियो पर शासन प्रशासन और आर्य संस्कृति के लोग जिस तरह का बर्ताव कर रहे हैं, इसे नासमझी नहीं कहा जा सकता। यह बर्ताव आदिवासी संस्कृति के विरुद्ध हमला कहा जा सकता है। इसका मतलब यह है कि इतिहासविदो और समाजशास्त्रियो ने ग्रामीण भारत की सांस्कृतिक विरासत को जानबूझकर अन्धेरे मे रखा है, तभी तो पत्थल गढी जैसे महत्वपूर्ण ज्ञान से शेष भारतीय जनमानस अनभिज्ञ है । जबकि भारत देश का हर गाव इस पत्थल गढी के सन्केतक पर ही स्थापित है । जरा सोचे कि भारत देश का कौन सा गांव बिना सीवाना/मेंढा या ग्राम सीमा के लिखित आलिखित मानक से अछूता है , कोई भी नहीं ! इसी मानक के आधार पर ही तो ग्राम तथा ग्राम समुदाय की पहचान होती है । इसी के आधार पर वहाँ की सामाजिक, राजनीतिक सान्स्क्रतिक व्यवस्था सन्चालित होती है । शहरो की आरम्भिक इकाई भी तो गाव ही है । यही कारण है कि हर शहर के किसी कोने मे पत्थल गढी के रूप मे स्थापित प्रतीक चाहे वह खेडापति (भीमाल पेन) खेरमाई ,खीलामुठवा या अन्य स्थल हो । केवल आदिवासी ही नही हर वर्ग और समुदाय के द्वारा आज भी श्रदापूर्वक पूजे जाते है । पत्थल गढी के सम्बन्ध मे विस्त्रत जानकारी आवश्यक है, इसलिये जहा तक इस सम्बन्ध मे जानकारी का सन्कलन हो पाया है । प्रस्तुत है , ज्ञात हो कि पत्थल गढी प्रतीक या चिन्ह है जोकि व्यक्ति, परिवार, समुदाय और समाज से लेकर पारा, टोला, ग्राम , कोट, गढ,राज्य और राष्ट्र की पहचान को स्थापित करता है । इस तरह पत्थलगढी के २२ प्रकार होते हैं । जिसमें उपरोक्त पहचान के साथ व्यक्तिगत गोत्र से लेकर ग्राम समुदाय के निस्तार क्षेत्र मे नदी, तालाब , वन, पशु पक्षी के पाट के रूप स्थापित होते है । इस पत्थलगढी के सन्केतको को सीधा सीधा समझने के लिये आदिवासी समुदाय मे विवाह के नेग २२ बाटो से भी समझा जा सकता है जिसे अन्य ग्राम से आने वाले बारातियो से इन स्थानो के नाम पर नेग के रूप मे अदायगी करायी जाती है । आज के समय मे इसे भले ही विस्म्रित किया जाने लगा हो , केवल सन्थाल समुदाय ने इसे सामुहिक पहचान के रूप मे पर्व के रूप मे बचाये रखा हो । पर यह ग्रामीण भारत की स्वतन्त्र और व्यवस्थित परम्परा का प्रतीक है इसे मजबूत करने की आवश्यकता है वशर्ते जनमानस के बीच अच्छी प्रस्तुति हो । वर्तमान समय मे जो शासन प्रशासन एवं अराजकतावादी तन्त्र के माध्यम से व्यवधान उत्पन्न किये जा रहे है ,ये पत्थलगढ के सम्बन्ध मे हमारी दूरद्रष्टि की कमी या प्रस्तुतिकरण की कमजोरियो को उजागर करता है । आज हम भारत के सन्विधान से शाषित है उसकी व्यवस्था से नियन्त्रित होते है इसलिये पत्थलगढी की विस्त्रत जानकारी प्रस्तुत करते हुए विधिवत स्थापना की जा सकती है जिसे कोई रोक नही सकता बल्कि समस्त ग्राम समुदाय भी पत्थलगढी के इस विस्म्रत होते महत्वपूर्ण ग्रामीण पहचान को स्थापित करने मे आपका सहयोग करेगा । परन्तु मनुवादी विचारो से प्रेरित और प्रभावितो पर हिन्दू सन्सक्रति के "कैडर" नाम का चश्मा चढाकर रख दिया गया है जिसके कारण उन्हे कुछ नही दिखाई देगा । भले ही वे इसी ग्राम सन्सक्रति में पत्थल गढी के स्थल की पूजा कर रहे है । इनसे अपेक्षा नही है पर उन्हे पत्थल गढी के महत्व के बारे मे अच्छी प्रस्तुति देकर, देश की मुख्यधारा जो आदिवासी की परम्पराए और सन्सकारो की नीव पर टिकी है । से सुन्दर, स्वस्थ ,सम्रद्ध समाज और राष्ट्र की कल्पना को साकार किया जा सकता है ।-gsmarkam
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