"मप्र में जूते चप्पल की राजनीति"
सवाल यह नहीं कि इन जूते चप्पलों में केंसर पैदा करने वाला तत्व पाया गया। यह बात तो जगजाहिर है कि संघ के एजेंडे में मूलवासी मूलनिवासी समाज के लिए,खान पान से लेकर मानसिक विकृतियों ,नश्ल और जीन तक को कमजोर करने के लिए औषधियों में परोक्ष रूप से जहर जैसे तत्त्व को मिलाये जाने का लिखित दस्तावेज मिलते हैं जूते चप्पल के माध्यम से कैंसर भी ऐसे एजेंडे का हिस्सा हो सकता है। पर इसके अतिरिक्त सवाल यहां सीधे सीधे भ्रष्टाचार, मनमानी और अनिक्षा से जुड़ा है। जूते चप्पल की क्वालिटी उसकी मानकता (मापदंड)पर निर्धारित है। कि इसमें कंपनी और खरीददार एजेंसी के बीच कितनी दलाली तय हुई । एक ओर तेंदू पत्ता संग्राहक की मेहनत की राशि को सीधा न देकर उसकी अनिक्षा से,कि उसकी प्राथमिक आवश्यक है कि नहीं,उसके हिस्से की राशि को मनमाने ढंग से चप्पल जूते के रूप में थोपना । यानि जनता के मेहनत को भी सरकार के द्वारा दिए जा रहे एहसान के रूप में प्रस्तुत करना। सरेआम आंखों में धूल झोंकने जैसी बात है। इसे गंभीरता से जनमानस के बीच लाना होगा। ताकि इनके द्वारा किये जा रहे कृत्यों की पोल खुल सके।-gsmarkam
सवाल यह नहीं कि इन जूते चप्पलों में केंसर पैदा करने वाला तत्व पाया गया। यह बात तो जगजाहिर है कि संघ के एजेंडे में मूलवासी मूलनिवासी समाज के लिए,खान पान से लेकर मानसिक विकृतियों ,नश्ल और जीन तक को कमजोर करने के लिए औषधियों में परोक्ष रूप से जहर जैसे तत्त्व को मिलाये जाने का लिखित दस्तावेज मिलते हैं जूते चप्पल के माध्यम से कैंसर भी ऐसे एजेंडे का हिस्सा हो सकता है। पर इसके अतिरिक्त सवाल यहां सीधे सीधे भ्रष्टाचार, मनमानी और अनिक्षा से जुड़ा है। जूते चप्पल की क्वालिटी उसकी मानकता (मापदंड)पर निर्धारित है। कि इसमें कंपनी और खरीददार एजेंसी के बीच कितनी दलाली तय हुई । एक ओर तेंदू पत्ता संग्राहक की मेहनत की राशि को सीधा न देकर उसकी अनिक्षा से,कि उसकी प्राथमिक आवश्यक है कि नहीं,उसके हिस्से की राशि को मनमाने ढंग से चप्पल जूते के रूप में थोपना । यानि जनता के मेहनत को भी सरकार के द्वारा दिए जा रहे एहसान के रूप में प्रस्तुत करना। सरेआम आंखों में धूल झोंकने जैसी बात है। इसे गंभीरता से जनमानस के बीच लाना होगा। ताकि इनके द्वारा किये जा रहे कृत्यों की पोल खुल सके।-gsmarkam
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