"प्रकृतिवाद और द्रविण मूल"
(9 अगस्त विश्व आदिवासी, इंडीजीनियस, मूलवासी, देशज दिवस के अवसर पर विशेष प्रस्तुति)
आज देश में आदिवासी चेतना का ज्वार उठ रहा है । यह समुदाय अपने हक अधिकारों को समझकर देश भर में एकता का बिगुल बजा रहा है । 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस ने एक ओर इन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान बढाया तो कुछ पढे लिखे नवजवानों ने संविधान के पन्ने पलटना शुरू किये । परिणामस्वरूप अन्याय,अत्याचार,शोषण,पलायन,विस्थापन से हताश समुदाय या तो खुदकुशी कर ले या फिर क्रांति का बिगुल बजा दे । दोनों ही काम हो सकते थे, परन्तु संविधान में अपनी सुरक्षा की ग्यारंटी के कारण अधिकार प्राप्ति के लिये जन चेतना को अस्त्र बनाना तय किया । यह जनचेतना शोषण के विरूद्ध लोकतंत्र में वोट के रूप में अपनी प्रमुख भूमिका अदा करेगा । इस आसरा में आदिवासी समुदाय अपने आप को लामबंद करने में लगा हुआ है । इस लामबंदी में भाषा,धर्म,संस्कृति,क्षेत्रीयता,नस्ल और जाति की महीन सी दीवार दिखाई देती है । इस बारीक दीवार को ढहाते वक्त इस बात का खयाल रखना होगा कि आदिवासी मूलतः दृविण नश्ल की प्रजाति है । जोकि मानव विकास कृम में विभिन्न पर्वत श्रंखलाओं में अपने ठौर ठिकाने बनाकर कालांतर में बडे बडे राज्य स्थापित कर लंबे समय तक राज किया । कोलारियन, भीलियन,गोंडियन जैसी प्रमुख जातियां अपनी उपजातियों के साथ अपने अपने इलाको में स्वछंद राज्य स्थापित किये । यही कारण है कि नक्शे में चिन्हित सीमा में उन राज्य के राजाओं के किले महल आज भी किसी ना किसी अवस्था में इतिहास के रूप में मौजूद हैं । देश का कोई भी आदिवासी यह नहीं कह सकता कि मेरा राज या राजपाट नहीं रहा । गोंड राज्य का गढा मण्डला हो या उरांव मुंडा राज्य का रोहतासगढ तथा भील मीनाओं का डूंगरपुर मानगढ हो। यही कारण है कि क्षेत्रीय राज्यों की भाषा बोलियां, संस्कृति संस्कार, मान्यताऐं एक दूसरे के नजदीक हैं । जब इन तीन महान राजवंशों को एक चश्में से देखना चाहो तो सभी के रीति रिवाज धर्म संस्कृति आचार विचार व्यवहार में एकरूपता दिखाई देगी । इसका प्रमुख कारण है कि ये सभी प्रकृतिवादी दर्शन को अंगीकार किये हुए हैं । देश का आदिवासी प्रकृतिवादी है यही प्रकृतिवाद इनमें आदि पुरूष और आदिवासियत का एहसास कराता है । इसलिये क्षेत्रीय दीवारों को तोडकर आदिवासी राष्ट्रीय एकता का परिचय दे। यही उसके उज्जवल भविष्य के लिये सर्वोत्तम होगा ।-gsmarkam
(9 अगस्त विश्व आदिवासी, इंडीजीनियस, मूलवासी, देशज दिवस के अवसर पर विशेष प्रस्तुति)
आज देश में आदिवासी चेतना का ज्वार उठ रहा है । यह समुदाय अपने हक अधिकारों को समझकर देश भर में एकता का बिगुल बजा रहा है । 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस ने एक ओर इन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान बढाया तो कुछ पढे लिखे नवजवानों ने संविधान के पन्ने पलटना शुरू किये । परिणामस्वरूप अन्याय,अत्याचार,शोषण,पलायन,विस्थापन से हताश समुदाय या तो खुदकुशी कर ले या फिर क्रांति का बिगुल बजा दे । दोनों ही काम हो सकते थे, परन्तु संविधान में अपनी सुरक्षा की ग्यारंटी के कारण अधिकार प्राप्ति के लिये जन चेतना को अस्त्र बनाना तय किया । यह जनचेतना शोषण के विरूद्ध लोकतंत्र में वोट के रूप में अपनी प्रमुख भूमिका अदा करेगा । इस आसरा में आदिवासी समुदाय अपने आप को लामबंद करने में लगा हुआ है । इस लामबंदी में भाषा,धर्म,संस्कृति,क्षेत्रीयता,नस्ल और जाति की महीन सी दीवार दिखाई देती है । इस बारीक दीवार को ढहाते वक्त इस बात का खयाल रखना होगा कि आदिवासी मूलतः दृविण नश्ल की प्रजाति है । जोकि मानव विकास कृम में विभिन्न पर्वत श्रंखलाओं में अपने ठौर ठिकाने बनाकर कालांतर में बडे बडे राज्य स्थापित कर लंबे समय तक राज किया । कोलारियन, भीलियन,गोंडियन जैसी प्रमुख जातियां अपनी उपजातियों के साथ अपने अपने इलाको में स्वछंद राज्य स्थापित किये । यही कारण है कि नक्शे में चिन्हित सीमा में उन राज्य के राजाओं के किले महल आज भी किसी ना किसी अवस्था में इतिहास के रूप में मौजूद हैं । देश का कोई भी आदिवासी यह नहीं कह सकता कि मेरा राज या राजपाट नहीं रहा । गोंड राज्य का गढा मण्डला हो या उरांव मुंडा राज्य का रोहतासगढ तथा भील मीनाओं का डूंगरपुर मानगढ हो। यही कारण है कि क्षेत्रीय राज्यों की भाषा बोलियां, संस्कृति संस्कार, मान्यताऐं एक दूसरे के नजदीक हैं । जब इन तीन महान राजवंशों को एक चश्में से देखना चाहो तो सभी के रीति रिवाज धर्म संस्कृति आचार विचार व्यवहार में एकरूपता दिखाई देगी । इसका प्रमुख कारण है कि ये सभी प्रकृतिवादी दर्शन को अंगीकार किये हुए हैं । देश का आदिवासी प्रकृतिवादी है यही प्रकृतिवाद इनमें आदि पुरूष और आदिवासियत का एहसास कराता है । इसलिये क्षेत्रीय दीवारों को तोडकर आदिवासी राष्ट्रीय एकता का परिचय दे। यही उसके उज्जवल भविष्य के लिये सर्वोत्तम होगा ।-gsmarkam
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