"एक छोटे से भूल से अंबेडकरी आंदोलन दिग्भ्रमित हो गया।"
कहने को तो देश का मूलवासी, मूलनिवासी संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के मार्ग पर चलने की बात करता है लेकिन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के साहित्य को पढ़ो तो ऐसा लगता है की उनके साहित्य से ज्ञान तो अर्जित किया गया लेकिन बाबा साहब ने जिस महत्वपूर्ण कड़ी के तहत आंदोलन को चलाने की बात कही थी उस के पदचिन्हों पर ना चल कर बाबासाहेब के साहित्य मैं मीठा जहर डाल कर एक शैतान ने सारे आंदोलन की दिशा ही बदल दी , यह एक ऐसा टर्निंग पॉइंट था जिसमें बड़े-बड़े अंबेडकरवादी या बुद्धिजीवी भी इस पर ध्यान नहीं दे सके और आज भी उसी क्रम में अपने आप को अंबेडकरवादी कहते चले आ रहे हैं वह कड़ी यह है कि बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने अपने साहित्य में सदैव महात्मा बुद्ध का अनुसरण करते हुए बुद्धम शरणम गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि और संघम शरणम गच्छामि इस क्रम में आंदोलन की रचना की थी उसी क्रम में डॉक्टर अंबेडकर साहब ने एजुकेट, एजिटेट एंड ऑर्गेनाइज शब्द क्रम को रखा था लेकिन उनके मरने के बाद जब उनका यह साहित्य हिंदी ,मराठी आदि कई भाषाओं में छापा गया तो उसमें महात्मा गौतम बुद्ध और डॉक्टर अंबेडकर के द्वारा स्थापित आंदोलन के क्रम को पलट कर रख दिया गया बुद्धम शरणम गच्छामि, एजुकेट और वर्तमान शिक्षित बनो का क्रम तो यथा बना रहा परंतु दूसरे और तीसरे क्रम को आगे पीछे कर दिया गया। बुद्धम शरणम गच्छामि ,एजुकेट के बाद धम्मं शरणं गच्छामि और एजुकेट क्रम रहा है परंतु तीसरे नंबर पर ऑर्गेनाइज ,संघम शरणम गच्छामि का क्रम था लेकिन जिसे हम बाबा साहब का अनुयाई या प्रमुख बारिश भदन्त आनंद के रूप में जानते थे जो कि एक मनुवादी था उन्होंने आंबेडकरी साहित्य के इस आंदोलन के क्रम को बदलकर बुद्धम शरणम गच्छामि ,एजुकेट और उसके स्थान पर वर्तमान शिक्षित बनो तथा धम्मं शरणं गच्छामि एजिटेट के स्थान पर संघम शरणम, ऑर्गेनाइज और वर्तमान संगठित रहो ऐसे क्रम में स्थापित कर दिया आनंद को इस बात का ज्ञान था कि यह देश जातियों में विभक्त देश है यदि शिक्षित होकर सीधा संघर्ष करेगा तो अपने लक्ष्य को वह शीघ्र प्राप्त करेगा इसलिए इस क्रम को बदल कर शिक्षित बनने के बाद उन्हें संगठित रहने की प्रेरणा देते हुए डॉ आंबेडकर के साहित्य में दिए गए मूल क्रम को बदल दिया जिससे हर अंबेडकरवादी हर बुद्धिजीवी बड़े शान से कहने लगा शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो ,परिणाम यह हुआ कि बाबा साहब ,गौतम बुद्ध के वचन के कारण लोग शिक्षित होना शुरू हुए इसके बाद संगठन बनाने में व्यस्त हो गए और इतने संगठन बने और लगातार बनते भी जा रहे हैं यह सब उस बदले क्रम का परिणाम है जिसे आनंद ने भारत की जाति मानसिकता के कारण स्थापित कर दिया था जो आज भी प्रचलन में है सभी इसी क्रम में अपनी बात रखते हैं । शिक्षित जागरुक होकर संगठन बनाने में लग जाते हैं इसलिए इस क्रम का बदलना ही अंबेडकरी आंदोलन की दिशा को बदलने वाला महत्वपूर्ण ट्रेनिंग पाईंट था जिसे अभी भी समझने की आवश्यकता है।
हालांकि इस बात को मैं पहले भी २०१२ में अपने ब्लाग के माध्यम से लिख चुका हूं ,परंतु आंदोलन के इस महत्त्वपूर्ण बिन्दू से हमारी नयी पीढ़ी भी परिचित हो ऐसा मेरा प्रयास है।
-gsmarkam
कहने को तो देश का मूलवासी, मूलनिवासी संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के मार्ग पर चलने की बात करता है लेकिन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के साहित्य को पढ़ो तो ऐसा लगता है की उनके साहित्य से ज्ञान तो अर्जित किया गया लेकिन बाबा साहब ने जिस महत्वपूर्ण कड़ी के तहत आंदोलन को चलाने की बात कही थी उस के पदचिन्हों पर ना चल कर बाबासाहेब के साहित्य मैं मीठा जहर डाल कर एक शैतान ने सारे आंदोलन की दिशा ही बदल दी , यह एक ऐसा टर्निंग पॉइंट था जिसमें बड़े-बड़े अंबेडकरवादी या बुद्धिजीवी भी इस पर ध्यान नहीं दे सके और आज भी उसी क्रम में अपने आप को अंबेडकरवादी कहते चले आ रहे हैं वह कड़ी यह है कि बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने अपने साहित्य में सदैव महात्मा बुद्ध का अनुसरण करते हुए बुद्धम शरणम गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि और संघम शरणम गच्छामि इस क्रम में आंदोलन की रचना की थी उसी क्रम में डॉक्टर अंबेडकर साहब ने एजुकेट, एजिटेट एंड ऑर्गेनाइज शब्द क्रम को रखा था लेकिन उनके मरने के बाद जब उनका यह साहित्य हिंदी ,मराठी आदि कई भाषाओं में छापा गया तो उसमें महात्मा गौतम बुद्ध और डॉक्टर अंबेडकर के द्वारा स्थापित आंदोलन के क्रम को पलट कर रख दिया गया बुद्धम शरणम गच्छामि, एजुकेट और वर्तमान शिक्षित बनो का क्रम तो यथा बना रहा परंतु दूसरे और तीसरे क्रम को आगे पीछे कर दिया गया। बुद्धम शरणम गच्छामि ,एजुकेट के बाद धम्मं शरणं गच्छामि और एजुकेट क्रम रहा है परंतु तीसरे नंबर पर ऑर्गेनाइज ,संघम शरणम गच्छामि का क्रम था लेकिन जिसे हम बाबा साहब का अनुयाई या प्रमुख बारिश भदन्त आनंद के रूप में जानते थे जो कि एक मनुवादी था उन्होंने आंबेडकरी साहित्य के इस आंदोलन के क्रम को बदलकर बुद्धम शरणम गच्छामि ,एजुकेट और उसके स्थान पर वर्तमान शिक्षित बनो तथा धम्मं शरणं गच्छामि एजिटेट के स्थान पर संघम शरणम, ऑर्गेनाइज और वर्तमान संगठित रहो ऐसे क्रम में स्थापित कर दिया आनंद को इस बात का ज्ञान था कि यह देश जातियों में विभक्त देश है यदि शिक्षित होकर सीधा संघर्ष करेगा तो अपने लक्ष्य को वह शीघ्र प्राप्त करेगा इसलिए इस क्रम को बदल कर शिक्षित बनने के बाद उन्हें संगठित रहने की प्रेरणा देते हुए डॉ आंबेडकर के साहित्य में दिए गए मूल क्रम को बदल दिया जिससे हर अंबेडकरवादी हर बुद्धिजीवी बड़े शान से कहने लगा शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो ,परिणाम यह हुआ कि बाबा साहब ,गौतम बुद्ध के वचन के कारण लोग शिक्षित होना शुरू हुए इसके बाद संगठन बनाने में व्यस्त हो गए और इतने संगठन बने और लगातार बनते भी जा रहे हैं यह सब उस बदले क्रम का परिणाम है जिसे आनंद ने भारत की जाति मानसिकता के कारण स्थापित कर दिया था जो आज भी प्रचलन में है सभी इसी क्रम में अपनी बात रखते हैं । शिक्षित जागरुक होकर संगठन बनाने में लग जाते हैं इसलिए इस क्रम का बदलना ही अंबेडकरी आंदोलन की दिशा को बदलने वाला महत्वपूर्ण ट्रेनिंग पाईंट था जिसे अभी भी समझने की आवश्यकता है।
हालांकि इस बात को मैं पहले भी २०१२ में अपने ब्लाग के माध्यम से लिख चुका हूं ,परंतु आंदोलन के इस महत्त्वपूर्ण बिन्दू से हमारी नयी पीढ़ी भी परिचित हो ऐसा मेरा प्रयास है।
-gsmarkam
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