"जनजातीय आरक्षण का आधार उसकी संस्कृति संस्कार और रूढी परंपरायें है ।" आरक्षण के संबंध में सदैव ये बात हवा मैं तैरती रही कि आरक्षण को आर्थिक आधार पर कर देना चाहिये । इस पर आरक्षित वर्ग के कुछ सिरफिरे लोग भी बिना जाने समझे अन्यों के साथ हां में हां मिलाने में अपने आप को प्रगतिशील बताने से नहीं चूकते हैं । धर्मांतरित आदिवासी के आरक्षण पर जिस तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं एक तरह से आदिवासियों में विभेद पैदा करने का प्रयास है । आज से लगभग 4 वर्ष पूर्व मैने इसाई संगठनों के कुछ जिम्मेदार व्यक्तियों से इस विषय में बात की थी तो उन्होने बताया कि समय और परिस्थितियों के कारण हम धर्मांतरित हुए हैं वैवाहिक कार्यकृम को छोड दिया जाय तो हमारे लोग धर्मांतरण के बावजूद आदिवासी संस्कृति के बहुत से हिस्से को लेकर लगातार व्यवहार में हैं । और आगे उनका कहना था कि यदि कोई संवैधानिक अडचन आने लगेगी तो हमें आपने मूल धर्म संस्कृति संस्कारों में आने से कोई परहेज नहीं आखिर हमारा खून भी तो आदिवासी का ही है । झारखण्ड में जिस तरह से आदिवासी के बौद्धिक वर्ग इसाई आदिवासी और सरना धर्मावलंबियों के बीच जल जंगल जमी...