" गोंडवाना के आदिवासी को एकपच्छीय सोच विकसित करने की आवश्यकता है ।"
मुस्लिम,इसाई सिख समुदाय काफी हद तक समुदाय हित में एक पक्छ में खडा दिख जाता है , वहीं हिन्दूओं का अगुवा बामन भी कथित हिन्दुओं की अपेक्छा सेट माईन्ड है । जिसके कारण अपने समुदाय के सार्वजनिक हितों की रक्छा करने सफल रहता है । परन्तु आदिवासी समुदाय अभी तक अपने किसी सार्वजनिक हित के लिये एक साथ खडा नजर नहीं आता । यही कारण है कि इसके महत्वपूर्ण अधिकार भी उसकी ऑखों के सामने से छीन लिये जाते हैं ,पर समुदाय की ओर से कभी सामूहिक प्रतिक्रिया नहीं होती । कहीं कहीं छुट पुट प्रतिक्रिया हो भी जाती है , पर वह व्यापक नहीं बन पाती । इसका प्रमुख कारण यह समझ में आता है कि समुदाय को कम से कम , मूल धार्मिक बिन्दु पर एकपक्छीय सोच विकसित कर लेना चाहिये भले ही समुदाय कितनी ही जाति ,उपजाति और समूहों में बंटा हो । जैसे देश में अन्य धार्मिक समूहों ने विकसित कर लिया है । आदिवासी समुदाय को एकपक्छीय सोच विकसित करने के लिये धर्म को आधार बनाना होगा । इस दिशा में किया गया सरना और कोयापुनेम समूह का छेत्रीय प्रयास परिणाम मूलक दिखाई देता है । परन्तु इसे व्यापक बनाकर सम्पूर्ण आदिवासी हितों के लिये एकपक्छीय सोच विकसित करने के लिये "एक धर्मकोड एक पर्सनल ला" को विकसित करने की आवश्यकता है । यह सूत्र आदिवासी समुदाय को "एक सोच" "एक विचार" और "एक सा व्यवहार" करने को प्रेरित कर सकता -gsmarkam
मुस्लिम,इसाई सिख समुदाय काफी हद तक समुदाय हित में एक पक्छ में खडा दिख जाता है , वहीं हिन्दूओं का अगुवा बामन भी कथित हिन्दुओं की अपेक्छा सेट माईन्ड है । जिसके कारण अपने समुदाय के सार्वजनिक हितों की रक्छा करने सफल रहता है । परन्तु आदिवासी समुदाय अभी तक अपने किसी सार्वजनिक हित के लिये एक साथ खडा नजर नहीं आता । यही कारण है कि इसके महत्वपूर्ण अधिकार भी उसकी ऑखों के सामने से छीन लिये जाते हैं ,पर समुदाय की ओर से कभी सामूहिक प्रतिक्रिया नहीं होती । कहीं कहीं छुट पुट प्रतिक्रिया हो भी जाती है , पर वह व्यापक नहीं बन पाती । इसका प्रमुख कारण यह समझ में आता है कि समुदाय को कम से कम , मूल धार्मिक बिन्दु पर एकपक्छीय सोच विकसित कर लेना चाहिये भले ही समुदाय कितनी ही जाति ,उपजाति और समूहों में बंटा हो । जैसे देश में अन्य धार्मिक समूहों ने विकसित कर लिया है । आदिवासी समुदाय को एकपक्छीय सोच विकसित करने के लिये धर्म को आधार बनाना होगा । इस दिशा में किया गया सरना और कोयापुनेम समूह का छेत्रीय प्रयास परिणाम मूलक दिखाई देता है । परन्तु इसे व्यापक बनाकर सम्पूर्ण आदिवासी हितों के लिये एकपक्छीय सोच विकसित करने के लिये "एक धर्मकोड एक पर्सनल ला" को विकसित करने की आवश्यकता है । यह सूत्र आदिवासी समुदाय को "एक सोच" "एक विचार" और "एक सा व्यवहार" करने को प्रेरित कर सकता -gsmarkam
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