"आजादी आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है ।"
ये धरती हमारी है, इसके बाद हम सबकी है । इससे केवल जनहित के नाम पर हमें बेदखल करना सत्ताधारियों की नाइंसाफी है । आखिर जनहित क्या है ? बहुसंख्यक हित या चन्द पूंजीपतियों ,कार्पोरेट घरानों का हित । हमें इनके विरूद्ध खडा होना है । जमीन पर रहने बसने,उससे जीविका चलाने का शास्वत और नैसर्गिक अधिकार हम सबका है । भारत का संविधान भी यही कहता है । फिर हमारे ही बीच के सत्ताधारियों के चंद चमचों और गुलामों की बात क्यों मानें, उनको अपना बहुमूल्य मत क्यों दें । बहुसंख्यक वर्ग को कम से कम अब तक इतनी सद्बुद्धि तो आ ही जाना चाहिये । आप सोचते होंगे कि जिनकी सत्ता है उनके साथ सैनिक है, साधन है ! हम उनका मुकाबला कैसे कर पायेंगे ? अरे १९४७ के पहले का इतिहास पलट कर देख लो अंग्रेज सत्ताधारियों के साथ क्या हुआ,वे हमारा देश छोडने को मजबूर कैसे हो गये । याद करो जब सेना में बगावत हो गई,जनता ने असहयोग आंदोलन छेड दिया । स्थानीय राजाओं ने अंग्रेजों के विरूद्ध संग्राम छेड दिया । अल्पसंख्यक अंग्रेजों को देश छोडकर भागना पडा । लगभग सौ साल के संघर्ष के बाद अंग्रेजी सत्ता की नीव हिली थी,इस बीच अनेक कुर्बानियॉ भी हुईं जिन्हें हम आज तक याद करते हैं । इतिहास दुहराये जाने की दस्तक है । अबकी बार का संघर्ष आसान है , इसमें खून खराबा नहीं है ।परन्तु समय आने पर इस परतंत्रता के विरूद्ध सैनिक विद्रोह करने को तैयार है । मजदूर किसान को भी पूंजीपतियों के कारनामों की खबर है । शासकीय सेवक भी समय के इंतजार में हैं । बस शोषित पीडितों को एक माहौल बनाने की आवष्यकता है । आजादी आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है ।जय सेवा ।-gsmarkam
ये धरती हमारी है, इसके बाद हम सबकी है । इससे केवल जनहित के नाम पर हमें बेदखल करना सत्ताधारियों की नाइंसाफी है । आखिर जनहित क्या है ? बहुसंख्यक हित या चन्द पूंजीपतियों ,कार्पोरेट घरानों का हित । हमें इनके विरूद्ध खडा होना है । जमीन पर रहने बसने,उससे जीविका चलाने का शास्वत और नैसर्गिक अधिकार हम सबका है । भारत का संविधान भी यही कहता है । फिर हमारे ही बीच के सत्ताधारियों के चंद चमचों और गुलामों की बात क्यों मानें, उनको अपना बहुमूल्य मत क्यों दें । बहुसंख्यक वर्ग को कम से कम अब तक इतनी सद्बुद्धि तो आ ही जाना चाहिये । आप सोचते होंगे कि जिनकी सत्ता है उनके साथ सैनिक है, साधन है ! हम उनका मुकाबला कैसे कर पायेंगे ? अरे १९४७ के पहले का इतिहास पलट कर देख लो अंग्रेज सत्ताधारियों के साथ क्या हुआ,वे हमारा देश छोडने को मजबूर कैसे हो गये । याद करो जब सेना में बगावत हो गई,जनता ने असहयोग आंदोलन छेड दिया । स्थानीय राजाओं ने अंग्रेजों के विरूद्ध संग्राम छेड दिया । अल्पसंख्यक अंग्रेजों को देश छोडकर भागना पडा । लगभग सौ साल के संघर्ष के बाद अंग्रेजी सत्ता की नीव हिली थी,इस बीच अनेक कुर्बानियॉ भी हुईं जिन्हें हम आज तक याद करते हैं । इतिहास दुहराये जाने की दस्तक है । अबकी बार का संघर्ष आसान है , इसमें खून खराबा नहीं है ।परन्तु समय आने पर इस परतंत्रता के विरूद्ध सैनिक विद्रोह करने को तैयार है । मजदूर किसान को भी पूंजीपतियों के कारनामों की खबर है । शासकीय सेवक भी समय के इंतजार में हैं । बस शोषित पीडितों को एक माहौल बनाने की आवष्यकता है । आजादी आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है ।जय सेवा ।-gsmarkam
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