पांचवी अनुसूचि का कानून जनजातियों को स्वशासन देता है । इसलिये पांचवी अनुसूचि के तहत किया जा रहा आदिवासियों का देशव्यापी आन्दोलन बडी गंभीरता और पूरी जानकारी के साथ चलाया जाय । कार्यकताओं और संगठनों के लगातार जागरण प्रयास से आम आदिवासी इसे अपना हितकारी कानून मानने लगा है । अब कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी बड जाती है सारे देश में एक सोच एक विचार और एक व्यवहार को अपनाने का प्रयास करें । पांचवी अनुसूचि के संदर्भ में इसका छोटा स्वरूप पेसा कानून के बीच व्यवहारिक अभ्यास करके आदिवासियों को अपने हक और अधिकार हासिल करने का रास्ता बना सकते हैं । ध्यान रहे पांचवी अनुसूचि का कानून 10 राज्यों में लागू है जिसमें उस राज्य का हर आदिवासी उस दायरे में आता है । इन राज्यों में केवल कुछ जिलों और विकासखण्डों को विशेष रूप से अधिसूचित किया गया है जहां थोडी बहुत स्वशासन की भलक मिलती है । परन्तु सरकारों की पंचायती राज व्यवस्था लागू करते समय ये अधिूचित क्षेत्र जो पूरी तरह स्वतंत्र स्वशासी थे उन्हें पेसा नाम के 5वीं अनुसूचि के बच्चे को लाकर आदिवासियों के उपर सरकारी पंचायती राज थोप दिया गया । जिसे हम सरकार के अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज विस्तार अधिनियम (पेसा) के रूप में जानते हैं । जिसने हमारी स्वायत्ता पर दोहरा कानून थोप कर स्वायत्ता की ताकत को कमजोर कर दिया । परन्तु इतना सब कुछ होने के बाद भी पेसा का एक उपबंध जिसमें कहा गया है कि किसी बात के होते हुए भी बिना ग्राम सरकार की सहमति और उनके रीतिरिवाज ,धर्म, संस्कृति और उनकी भावनाओं के विरूद्ध किया जाने वाला कोई भी कानून होगा प्रभवशील नहीं माना जायेगा । इससे हम अपनी स्वशासी ग्राम सरकार की स्थापना कर पांचवी अनुसूची के इस आंशिक अवयव से अपने अधिकारों को सुरक्षित कर सकते हैं । अब जागरूक और विषय के जानकार लोगों की ज्यादा जिम्मेदारी बढ जाती है कि वे कम से कम अधिसूचित जिला विकासखण्डों में निरंतर व्यवहारिक अभ्यास करें और करायें कि स्वशासी ग्राम सभा किस तरह बने और संचालित हो । विधिवत प्रक्रिया की जानकारी के अभाव में आदिवासी स्वशासन की कल्पना नहीं कर सकते, हम पंचायती राज व्यवस्था के शोषण, फूट और दमनकारी नीति का शिकार बनते रहेंगे ।-gsmarkam
पांचवी अनुसूचि का कानून जनजातियों को स्वशासन देता है । इसलिये पांचवी अनुसूचि के तहत किया जा रहा आदिवासियों का देशव्यापी आन्दोलन बडी गंभीरता और पूरी जानकारी के साथ चलाया जाय । कार्यकताओं और संगठनों के लगातार जागरण प्रयास से आम आदिवासी इसे अपना हितकारी कानून मानने लगा है । अब कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी बड जाती है सारे देश में एक सोच एक विचार और एक व्यवहार को अपनाने का प्रयास करें । पांचवी अनुसूचि के संदर्भ में इसका छोटा स्वरूप पेसा कानून के बीच व्यवहारिक अभ्यास करके आदिवासियों को अपने हक और अधिकार हासिल करने का रास्ता बना सकते हैं । ध्यान रहे पांचवी अनुसूचि का कानून 10 राज्यों में लागू है जिसमें उस राज्य का हर आदिवासी उस दायरे में आता है । इन राज्यों में केवल कुछ जिलों और विकासखण्डों को विशेष रूप से अधिसूचित किया गया है जहां थोडी बहुत स्वशासन की भलक मिलती है । परन्तु सरकारों की पंचायती राज व्यवस्था लागू करते समय ये अधिूचित क्षेत्र जो पूरी तरह स्वतंत्र स्वशासी थे उन्हें पेसा नाम के 5वीं अनुसूचि के बच्चे को लाकर आदिवासियों के उपर सरकारी पंचायती राज थोप दिया गया । जिसे हम सरकार के अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज विस्तार अधिनियम (पेसा) के रूप में जानते हैं । जिसने हमारी स्वायत्ता पर दोहरा कानून थोप कर स्वायत्ता की ताकत को कमजोर कर दिया । परन्तु इतना सब कुछ होने के बाद भी पेसा का एक उपबंध जिसमें कहा गया है कि किसी बात के होते हुए भी बिना ग्राम सरकार की सहमति और उनके रीतिरिवाज ,धर्म, संस्कृति और उनकी भावनाओं के विरूद्ध किया जाने वाला कोई भी कानून होगा प्रभवशील नहीं माना जायेगा । इससे हम अपनी स्वशासी ग्राम सरकार की स्थापना कर पांचवी अनुसूची के इस आंशिक अवयव से अपने अधिकारों को सुरक्षित कर सकते हैं । अब जागरूक और विषय के जानकार लोगों की ज्यादा जिम्मेदारी बढ जाती है कि वे कम से कम अधिसूचित जिला विकासखण्डों में निरंतर व्यवहारिक अभ्यास करें और करायें कि स्वशासी ग्राम सभा किस तरह बने और संचालित हो । विधिवत प्रक्रिया की जानकारी के अभाव में आदिवासी स्वशासन की कल्पना नहीं कर सकते, हम पंचायती राज व्यवस्था के शोषण, फूट और दमनकारी नीति का शिकार बनते रहेंगे ।-gsmarkam
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