"अन्य समुदाय की तरह आदिवासी का समुदाय और धर्म एक है अलग अलग नहीं !"
हिन्दू धर्म भी है और समुदाय भी है ।
मुस्लिम एक मजहब भी है समूदाय भी है ।
ईसाई एक रिलीजन है और समुदय भी है
सिख एक पंथ है और समुदाय भी है !
बौद्ध भी एक धम्म है और समुदाय भी है ।
इसी तरह आदिवासी एक पुनेम भी है समुदाय भी है ।
सबकी अपनी अपनी रूढी और परंपरायें और समुदायिक संस्कार हैं सबके अपने अपने आस्था स्थल और इष्ट हैं तब आदिवासी अन्य धर्म पंथ,मजहब या रिलीजन में धर्मांतरित होकर आनी परंपरायें ,समुदायिक संस्कार खत्म कर दे तब वह कैसे आदिवासी हो सकता है । यदि वह आदिवासी है तो आदिवासी समुदाय की रूढी परंपरायें रीति रिवाज और समुदायिक संस्कार का पालन करे अन्यथा वह अपने आप को आदिवासी कहने का आदिवासी अधिकारी नहीं । जनजाति की सूचि में रहे कोई आपत्ति नहीं, जिस दिन शासन प्रशासन को लगेगा कि वह आदिवासी समुदाय की रूढी परंपरायें रीति रिवाज और समुदायिक संस्कार से पूरी तरह अलग हो चुका है उस दिन जनजाति की सूचि से हटाने और जोडने की प्रक्रिया आरंभ हो जायेगी । भारत की जनगणना सन 1871से 1941 तक यह आदिवासी एक समुदाय और धर्म के रूप में अंकित किया जाता रहा है । भले ही किसी जनगणना दशक में उसे अबोरिजनल एनिमिस्ट या ट्राईब के नाम से अंकित किया गया हो लेकिन अगय धर्म और समुदायों से प्रथक गणना की जाती रही है । 1951 के बाद इस समुदाय के धर्म को तोड दिया गया जिसमें धर्मांतरित लोगों को भी जनजाति की सूचि में जोड दिया गया तथा धर्म कोड की जगह अन्य का कालम जोड दिया गया आदिवासी का धर्म और समुदाय कमजोर हो गया धर्मांतरण तेजी से बढ गया । (देखें इन चार्ट को चार्ट का संकलन आदिवासी सम!ज डाटकाम से साभार)-gsmarkam
"मध्यप्रदेश में छात्र सन्घ चुनाव"
विश्वविद्यालय और कालेज वर्तमान प्रजातन्त्रीक देश में सामाजिक व्यवस्था और प्रजातन्त्र प्रणाली को समझने की प्रथम पाठशाला के रूप में जाने जाते हैं । गोन्डवाना के आदिवासी छात्र छात्राओं को अपने विषय की पढ़ाई लिखाई के साथ साथ इस तरह भी ध्यान देने की आवश्यकता है। समुदाय में अधिकारी डाक्टर इन्जीनियर वकील के साथ साथ अच्छे शिक्षित प्रशिक्षित राजनीतिक नेतृत्व की भी आवश्यकता है। इसलिये मध्यप्रदेश में महाविद्यालयों द्वारा घोषित छात्र संघ के चुनाव में आदिवासी छात्र अपना स्वयं का नेतृत्व उभारें। छात्र संघ का पन्जीयन ना भी हो तो अलग अलग पदों के लिए स्वतन्त्र फार्म भरकर सब मिलकर एक पम्पलेट में पेनल का नाम लिखकर सन्युक्त प्रचार करें । उदाहरण के लिए नमूना प्रस्तुत है। आशा है कि युवा छात्र छात्राये इस पर विचार करेंगे।-gsmarkam
हिन्दू धर्म भी है और समुदाय भी है ।
मुस्लिम एक मजहब भी है समूदाय भी है ।
ईसाई एक रिलीजन है और समुदय भी है
सिख एक पंथ है और समुदाय भी है !
बौद्ध भी एक धम्म है और समुदाय भी है ।
इसी तरह आदिवासी एक पुनेम भी है समुदाय भी है ।
सबकी अपनी अपनी रूढी और परंपरायें और समुदायिक संस्कार हैं सबके अपने अपने आस्था स्थल और इष्ट हैं तब आदिवासी अन्य धर्म पंथ,मजहब या रिलीजन में धर्मांतरित होकर आनी परंपरायें ,समुदायिक संस्कार खत्म कर दे तब वह कैसे आदिवासी हो सकता है । यदि वह आदिवासी है तो आदिवासी समुदाय की रूढी परंपरायें रीति रिवाज और समुदायिक संस्कार का पालन करे अन्यथा वह अपने आप को आदिवासी कहने का आदिवासी अधिकारी नहीं । जनजाति की सूचि में रहे कोई आपत्ति नहीं, जिस दिन शासन प्रशासन को लगेगा कि वह आदिवासी समुदाय की रूढी परंपरायें रीति रिवाज और समुदायिक संस्कार से पूरी तरह अलग हो चुका है उस दिन जनजाति की सूचि से हटाने और जोडने की प्रक्रिया आरंभ हो जायेगी । भारत की जनगणना सन 1871से 1941 तक यह आदिवासी एक समुदाय और धर्म के रूप में अंकित किया जाता रहा है । भले ही किसी जनगणना दशक में उसे अबोरिजनल एनिमिस्ट या ट्राईब के नाम से अंकित किया गया हो लेकिन अगय धर्म और समुदायों से प्रथक गणना की जाती रही है । 1951 के बाद इस समुदाय के धर्म को तोड दिया गया जिसमें धर्मांतरित लोगों को भी जनजाति की सूचि में जोड दिया गया तथा धर्म कोड की जगह अन्य का कालम जोड दिया गया आदिवासी का धर्म और समुदाय कमजोर हो गया धर्मांतरण तेजी से बढ गया । (देखें इन चार्ट को चार्ट का संकलन आदिवासी सम!ज डाटकाम से साभार)-gsmarkam
"मध्यप्रदेश में छात्र सन्घ चुनाव"
विश्वविद्यालय और कालेज वर्तमान प्रजातन्त्रीक देश में सामाजिक व्यवस्था और प्रजातन्त्र प्रणाली को समझने की प्रथम पाठशाला के रूप में जाने जाते हैं । गोन्डवाना के आदिवासी छात्र छात्राओं को अपने विषय की पढ़ाई लिखाई के साथ साथ इस तरह भी ध्यान देने की आवश्यकता है। समुदाय में अधिकारी डाक्टर इन्जीनियर वकील के साथ साथ अच्छे शिक्षित प्रशिक्षित राजनीतिक नेतृत्व की भी आवश्यकता है। इसलिये मध्यप्रदेश में महाविद्यालयों द्वारा घोषित छात्र संघ के चुनाव में आदिवासी छात्र अपना स्वयं का नेतृत्व उभारें। छात्र संघ का पन्जीयन ना भी हो तो अलग अलग पदों के लिए स्वतन्त्र फार्म भरकर सब मिलकर एक पम्पलेट में पेनल का नाम लिखकर सन्युक्त प्रचार करें । उदाहरण के लिए नमूना प्रस्तुत है। आशा है कि युवा छात्र छात्राये इस पर विचार करेंगे।-gsmarkam
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