" आदिवासी और गैर आदिवासी इन्सान"
दुनिया की अनेक कौमे अपने आप को आदिवासी बताने में या भारतीय परिवेश में आदिवासी साबित करने का भरसक प्रयास करती हैं। इनका मानना है कि चलो मान लें कि आप भारत के आदिवासी हैं , पर हम भी तो कहीं ना कहीं किसी ना किसी देश के आदिवासी कौम या नश्ल के इन्सान हैं। हमारी नस्ल कोई आसमान में तो पैदा नहीं हो गई है। यह तर्क पूर्णतया सत्य है। परन्तु ऐसे लोगों के तर्क का सीधा जवाब यह होना चाहिए कि भाई आप हम सभी आदिवासी है तब केवल हमे ही आदिवासी क्यो कहा जा रहा है आपको क्यो नही ? दुनिया के सारे लोग तो आदिवासी है, तब हम ही इस शब्द बोझ को क्यो ढोये । और तो और दुनिया में जितने भी देश है उनमे से उन देशो के कुछ लोगो को ही इस तरह का विशेष नाम दिया गया है आखिर क्यो ? स्पष्ट है दुनिया मे सभी इन्सानी नस्ल का उद्भव एक तरीके से ही हुआ है । जन्म स्थल के भूगोल मे अन्तर हो सकता है पर उद्भव,उत्पत्ति प्रक्रिया में कोई भेद नहीं ! तब आम जनसन्ख्या के बीच दुनिया के देशों ने कुछ समूह या समुदाय को ही आदिवासी क्यों कहा । चिन्तन का विषय है । इस पर विचार करने से एक तथ्य उभरकर सामने आता है कि दुनिया के जिन इन्सानी समूहो ने प्रकृति से ज्ञान लेकर अपने आप को उसके नियम कायदे और स्वभाव के अनुरूप ढालकर अपनी जीवनदायिनी प्रक्रति का सम्मान करते हुए अपनी व्यवस्था को कायम किया वे आदिवासी माने गये । वहीं दुनिया के अन्य इन्सानी समूहों ने जो प्रकृति की गोद से पैदा हुए पर उसका सम्मान करने की बजाय अपने विवेकशीलता को प्राथमिकता देते हुए उसे केवल उपभोग की वस्तु माना । यही कारण है कि इस विशाल तथाकथित विकासवादी समूह ने अपने स्वार्थ के लिए अपने सहोदरों का भी शोषण किया । परिणामस्वरूप दुनिया मे अनेक युद्ध और नरसन्हार हुए । तथाकथित विकास की भूख ने भौतिक सन्साधनो को हथियाने के लिये इन्सानियत से भी गिरने जैसी हरकते करवाई है । जिससे इन्सानी चरित्र का ल्हास तो हो रहा है पर जिस प्रक्रति की गोद मे जन्मा है उसको भी अपने विकास के स्वार्थ की बलि चढा रहा है । आदिवासी आज भी अपनी जन्म और जीवनदायिनी प्रक्रति से प्रेम करता हुआ प्रक्रति के अस्तित्व को बचाये रखने हेतु आदिकाल से बनाई अपने पुरखो के रूढी, परम्परा ,आस्था और विश्वास और सन्सकार की व्यवस्था को कायम रखा है । इसलिये "आदवासी" है । "जो इस व्यवस्था से दूर है वह आदिवासी नहीं" और जो आज आदिवासी भी है पर आदिवासियत के इस मापदंड से दूर होता जायेगा "आदिवासी" नही रह पायेगा । आदिवासी को बचाने के लिये आदिवासियत को बचाना होगा ।-gsmarkam
दुनिया की अनेक कौमे अपने आप को आदिवासी बताने में या भारतीय परिवेश में आदिवासी साबित करने का भरसक प्रयास करती हैं। इनका मानना है कि चलो मान लें कि आप भारत के आदिवासी हैं , पर हम भी तो कहीं ना कहीं किसी ना किसी देश के आदिवासी कौम या नश्ल के इन्सान हैं। हमारी नस्ल कोई आसमान में तो पैदा नहीं हो गई है। यह तर्क पूर्णतया सत्य है। परन्तु ऐसे लोगों के तर्क का सीधा जवाब यह होना चाहिए कि भाई आप हम सभी आदिवासी है तब केवल हमे ही आदिवासी क्यो कहा जा रहा है आपको क्यो नही ? दुनिया के सारे लोग तो आदिवासी है, तब हम ही इस शब्द बोझ को क्यो ढोये । और तो और दुनिया में जितने भी देश है उनमे से उन देशो के कुछ लोगो को ही इस तरह का विशेष नाम दिया गया है आखिर क्यो ? स्पष्ट है दुनिया मे सभी इन्सानी नस्ल का उद्भव एक तरीके से ही हुआ है । जन्म स्थल के भूगोल मे अन्तर हो सकता है पर उद्भव,उत्पत्ति प्रक्रिया में कोई भेद नहीं ! तब आम जनसन्ख्या के बीच दुनिया के देशों ने कुछ समूह या समुदाय को ही आदिवासी क्यों कहा । चिन्तन का विषय है । इस पर विचार करने से एक तथ्य उभरकर सामने आता है कि दुनिया के जिन इन्सानी समूहो ने प्रकृति से ज्ञान लेकर अपने आप को उसके नियम कायदे और स्वभाव के अनुरूप ढालकर अपनी जीवनदायिनी प्रक्रति का सम्मान करते हुए अपनी व्यवस्था को कायम किया वे आदिवासी माने गये । वहीं दुनिया के अन्य इन्सानी समूहों ने जो प्रकृति की गोद से पैदा हुए पर उसका सम्मान करने की बजाय अपने विवेकशीलता को प्राथमिकता देते हुए उसे केवल उपभोग की वस्तु माना । यही कारण है कि इस विशाल तथाकथित विकासवादी समूह ने अपने स्वार्थ के लिए अपने सहोदरों का भी शोषण किया । परिणामस्वरूप दुनिया मे अनेक युद्ध और नरसन्हार हुए । तथाकथित विकास की भूख ने भौतिक सन्साधनो को हथियाने के लिये इन्सानियत से भी गिरने जैसी हरकते करवाई है । जिससे इन्सानी चरित्र का ल्हास तो हो रहा है पर जिस प्रक्रति की गोद मे जन्मा है उसको भी अपने विकास के स्वार्थ की बलि चढा रहा है । आदिवासी आज भी अपनी जन्म और जीवनदायिनी प्रक्रति से प्रेम करता हुआ प्रक्रति के अस्तित्व को बचाये रखने हेतु आदिकाल से बनाई अपने पुरखो के रूढी, परम्परा ,आस्था और विश्वास और सन्सकार की व्यवस्था को कायम रखा है । इसलिये "आदवासी" है । "जो इस व्यवस्था से दूर है वह आदिवासी नहीं" और जो आज आदिवासी भी है पर आदिवासियत के इस मापदंड से दूर होता जायेगा "आदिवासी" नही रह पायेगा । आदिवासी को बचाने के लिये आदिवासियत को बचाना होगा ।-gsmarkam
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