"दशहरा का पर्व आदिवासियों के लिये शस्त्र और शक्ति पूजा का पर्व है ।"
इस पर्व के लगातार नौ दिनो तक जिस तरह का हुडदंग देखने को मिलता है इससे ज्ञात होता है कि पर्व की मूल भावना को दस दिनो के हुडदंग में दबा देने का काम होता है । अंतत निष्कर्ष के रूप में रावन बनाम राम राक्षस विरूद्ध देवता अनार्य बनाम आर्य संस्कृति के जय और पराजय का संदेश उभारा जाता है । सांस्कृतिक हमले का यह खेल पिछले कई दशकों से चला आ रहा है 1947 के बाद इस खेल में लगातार बढोत्तरी हुई है । मूलनिवासी साहित्य के लेखकों, साहित्यकारों ने समय समय पर इसका मूल्यांकन करते हुए एक पक्ष को समझाने का प्रयास किया है । काफी अन्तराल के बाद मूलनिवासी समुदाय इस हुडदंग के पीछे छिपे रहस्य को समझने का प्रयास किया है । परिणामस्वरूप मूलनिवासी समुदाय आज अपनी संस्कृति और अपने नायकों के साथ खडा होता दिखाई देने लगा है । एक तरफ महिसासुर की पूजा कहीं रावेन का सम्मान तो दूसरी ओर दुर्गा और राम की जयकार । दशहरे का हुडदंग भले ही इस पर्व की मूल अवधारणा को विस्म्रित करने का प्रयास करे लेकिन मूलनिवासियों के नायको को अब विस्म्रित किया जाना संभव नहीं । रावन का राम से युद्ध हुआ है या नहीं, पर आदिवासी समुदाय में रावन पुत्र मेघनाथ खंडेरा की पूजा इस हुडदंग का षडयंत्र रचने के पूर्व से ही की जाती रही है । भैसासुर या जिसे आज महिसासुर कहा जा रहा है आदिवासी समुदाय में आर्यों के आगमन के पूर्व से ही विशेष पर्व के रूप में प्रतिष्ठित है । यही कारण है कि आदिवासी मूलनिवासी अपने पुरखों को अपनी आखों के सामने अपमानित होता नहीं देख पा रहा है । प्रतिक्रिया स्वरूप रावेन पूजा को महत्व देने लगा है । अपने पुरखों के अपमान के विरूद्ध शासन प्रशासन को संवैधानिक तरीके से अवगत कराने लगा है । हमारा मानना है कि दो संस्कृतियों के इस युद्ध में में संविधान का तंत्र मध्यस्थता में है इसलिये देश के प्रत्येक हिस्से राज्य, जिला और ब्लाक स्तर पर रावन को नहीं जलाये जाने संबंघी ज्ञापन प्रस्तुत किया जाय । संविधान में सभी को अपनी धार्मिक आस्था और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है ।
टीप:- ( दशहरा शक्ति पूजा की तिथि है इसमें रावण और राम की कहां से जुड जाती है साथ ही दुर्गा नाम की कथित देवी शक्ति से महिसासुर का वध कराये जाने की कहानी के साथ साथ देवी काली का महादेव शंकर को पैरों तले दिखाना । यदि इस घटना को सही भी मान लें तो क्या इन दस दिनों की तिथि में एकसाथ सारी घटनायें होना कहां तक प्रमाणिक हैं ।) जय सेवा जय जोहार ! -gsmarkam
इस पर्व के लगातार नौ दिनो तक जिस तरह का हुडदंग देखने को मिलता है इससे ज्ञात होता है कि पर्व की मूल भावना को दस दिनो के हुडदंग में दबा देने का काम होता है । अंतत निष्कर्ष के रूप में रावन बनाम राम राक्षस विरूद्ध देवता अनार्य बनाम आर्य संस्कृति के जय और पराजय का संदेश उभारा जाता है । सांस्कृतिक हमले का यह खेल पिछले कई दशकों से चला आ रहा है 1947 के बाद इस खेल में लगातार बढोत्तरी हुई है । मूलनिवासी साहित्य के लेखकों, साहित्यकारों ने समय समय पर इसका मूल्यांकन करते हुए एक पक्ष को समझाने का प्रयास किया है । काफी अन्तराल के बाद मूलनिवासी समुदाय इस हुडदंग के पीछे छिपे रहस्य को समझने का प्रयास किया है । परिणामस्वरूप मूलनिवासी समुदाय आज अपनी संस्कृति और अपने नायकों के साथ खडा होता दिखाई देने लगा है । एक तरफ महिसासुर की पूजा कहीं रावेन का सम्मान तो दूसरी ओर दुर्गा और राम की जयकार । दशहरे का हुडदंग भले ही इस पर्व की मूल अवधारणा को विस्म्रित करने का प्रयास करे लेकिन मूलनिवासियों के नायको को अब विस्म्रित किया जाना संभव नहीं । रावन का राम से युद्ध हुआ है या नहीं, पर आदिवासी समुदाय में रावन पुत्र मेघनाथ खंडेरा की पूजा इस हुडदंग का षडयंत्र रचने के पूर्व से ही की जाती रही है । भैसासुर या जिसे आज महिसासुर कहा जा रहा है आदिवासी समुदाय में आर्यों के आगमन के पूर्व से ही विशेष पर्व के रूप में प्रतिष्ठित है । यही कारण है कि आदिवासी मूलनिवासी अपने पुरखों को अपनी आखों के सामने अपमानित होता नहीं देख पा रहा है । प्रतिक्रिया स्वरूप रावेन पूजा को महत्व देने लगा है । अपने पुरखों के अपमान के विरूद्ध शासन प्रशासन को संवैधानिक तरीके से अवगत कराने लगा है । हमारा मानना है कि दो संस्कृतियों के इस युद्ध में में संविधान का तंत्र मध्यस्थता में है इसलिये देश के प्रत्येक हिस्से राज्य, जिला और ब्लाक स्तर पर रावन को नहीं जलाये जाने संबंघी ज्ञापन प्रस्तुत किया जाय । संविधान में सभी को अपनी धार्मिक आस्था और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है ।
टीप:- ( दशहरा शक्ति पूजा की तिथि है इसमें रावण और राम की कहां से जुड जाती है साथ ही दुर्गा नाम की कथित देवी शक्ति से महिसासुर का वध कराये जाने की कहानी के साथ साथ देवी काली का महादेव शंकर को पैरों तले दिखाना । यदि इस घटना को सही भी मान लें तो क्या इन दस दिनों की तिथि में एकसाथ सारी घटनायें होना कहां तक प्रमाणिक हैं ।) जय सेवा जय जोहार ! -gsmarkam
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