(1) "आदिवासी हिन्दू,ईसाई मुस्लिम जैन बौद्ध नहीं"
देश का सन्विधान कहता है आदिवासी हिन्दू नहीं तब अन्य धर्मी जैसे ईसाई मुस्लिम जैन बौद्ध कैसे हो सकता है। जब आदिवासी हिन्दू नहीं तो अन्य धर्मी भी नहीं। उसका अपना प्रथक धर्म,सन्सक्रति,रूढी , परम्परा और पहचान है । इसलिये यदि आदिवासी अन्य धर्मों में चला गया है वह आदिवासी नहीं होता। न्यायालय में उसे उस धर्म के पर्सनल ला के अन्तर्गत निर्णय देना पडता है। धर्मान्तरित आदिवासी लोग समुदाय के साथ साथ सन्विधान को भी धोखा देकर अल्पसंख्यक और जनजाति मन्त्रालय से दोहरा लाभ प्राप्त कर रहे हैं । और अन्य आदिवासी समुदायों को निसर्ग पूजक/धर्म पूर्वी बताकर धर्म विहीन समुदाय के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि धर्म विहीन समुदाय का धर्मांतरण किया जा सके। सन्विधान के अनुसार आदिवासी हिन्दू नहीं है, तो ईसाई,सिख,मुस्लिम जैन बौद्ध भी नहीं है। उसका अपना धर्म है, जिसे सरना,गोन्डी पुनेम,आदि या प्रकृति धर्म कहा जाता है। ऐसे तत्वों पर आदिवासी समुदाय की नजर हो जोकि सरना ,गोन्डी ,प्रक्रति या आदिधर्म कोड जैसे प्रथक धर्म कोड की मान्ग का विरोध करते हैं ।
(2) "जनगणना २०२१ में आदिवासी अपनी धार्मिक उपस्थिति का एहसास दिलाये"
दुनिया के देशों में सभी समुदाय और समूहों का अपना धर्म (पुनेम) है, तब आदिवासी का धर्म क्यों नहीं ? आदिवासियो का प्रथक धर्म कोड नही होने के कारण भारत का आदिवासी, जनगणना कालम में अन्कित छह धर्मों के अतिरिक्त लगभग १२३ प्रकार के नाम से धर्म अन्कित कराता है । इसलिए जनगणना २०२१ से पहले आदिवासीयो का एक सर्वसम्मत प्रथक धर्म कोड सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है । इस कार्य में विभिन्न प्रांतों के इस विषय पर रुचि रखने वाले साथी प्रयत्नशील हैं । जागरूक और जानकार साथी स्वयं आगे आकर पहल करें । -gsmarkam
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