गोन्डवाना आन्दोलन के नीव के पत्थरों ने हीरा सिंह मरकाम को क्यों नकार दिया।"(एक समीक्षा)
मेरे इस समीक्षा से बहुतों के दिल को ठेस लग सकती है और बहतो को उनके मन की बात हुई ऐसा समझकर दिल को तसल्ली मिलेगी! परन्तु मैं किसी को तसल्ली या ठेस पहुंचाने की दृष्टि से यह समीक्षा नहीं कर रहा हूँ बल्कि साहित्य के ऐसे स्तर पर समीक्षा करने की कोशिश कर रहा हूँ जहाँ पक्ष विपक्ष का कोई मायने ना हो। मध्यमार्गी सोच ! देश की आजादी के पूर्व का गोन्डवाना आन्दोलन का इतिहास कुछ हद तक लिखित रूप में वर्णित है परन्तु आजादी के बाद गोन्डवाना आन्दोलन या तो व्यवस्थित तरीके से सहेजा नहीं गया या समुदाय को सामाजिक, राजनीतिक तरीके से व्यक्तिगत (एकल) सोच पर चलाने के कारण एकपक्षीय निर्णय का शिकार होता चला गया । आधुनिक गोन्डवाना आन्दोलन अभी "बाबागिरी" की चपेट में है । जैसे किसी बाबा को लगा कि मुझे कैसे महान बनना है तब ऐसे बाबा किसी के बने बनाए फार्मूले पर अपना रन्ग चढाकर कुछ फालोवर्स पैदा करते हें जो दिन रात बाबा का गुणगान करते हुए उनकी सोच को अन्यों से अलग बताकर उसे महिमामन्डित करते हैं । धीरे धीरे बाबा की ख्याति बढने लगती है । बहुत से अनुयायी जो उनके अतीत को नहीं जानते ना ही बाबा के फालोवर्स उन्हें बताते । बाबा की ख्याति बढने लगती तब फालोवर्स की तादाद देखकर बड़ी ताकत वाले व्यक्ति , समूह या सन्गठन उनसे भय खाने लगते हैं । बाबा की बाबागिरी चल निकलती है । पर बाबा को क्या मालूम कि कुछ लोग दिल से बाबा के दिखने वाले कार्यों से प्रभावित तो है पर बाबा के करतूतों पर भी नजर रखते रहे परिणाम यह हुआ कि बाबाओ की बाबागिरी का पर्दाफाश होता है तब भी अन्धभक्त फालोवर्स को बाबा पाकसाफ ही दिखाई देता है । इसी तरह गोन्डवाना आन्दोलन भी बाबागिरी का शिकार हुआ है । आन्दोलन के आधार स्तंभों को लगा कि बाबा आन्दोलन को लक्ष्य तक पहुचायेगा लेकिन बीच में ही "पूत के पा्व पालने में" दिख गये ,आधार स्तंभों ने बाबा से अपने आप को अलग कर लिया । और गोन्डवाना आन्दोलन को समर्पित भाव से चलाने लगे । गोन्डवाना के इन आधार स्तंभों की जानकारी चमत्कार से प्रभावित फालोवर्स को कहाँ दिखती उन्हें तो प्रायोजित चमचों द्वारा बताई गई जानकारी ही सर्वोपरि थी । उन्हें बाकी बातों से क्या लेना देना । जैसे आज भी आशाराम, रामपाल,रामरहीम आदि बाबाओ के फालोवर्स उनपर अपनी जान देने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिये तैयार हैं ।
नोट :-मित्रो ,प्रतिक्रिया के लिये हिम्मत या साक्ष्य की आवश्यकता होगी अन्यथा आत्ममन्थन करते हुए गोन्डवाना आन्दोलन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण उपाय एवं सुझाव प्रस्तुत करें ।- Gsmarkam
मेरे इस समीक्षा से बहुतों के दिल को ठेस लग सकती है और बहतो को उनके मन की बात हुई ऐसा समझकर दिल को तसल्ली मिलेगी! परन्तु मैं किसी को तसल्ली या ठेस पहुंचाने की दृष्टि से यह समीक्षा नहीं कर रहा हूँ बल्कि साहित्य के ऐसे स्तर पर समीक्षा करने की कोशिश कर रहा हूँ जहाँ पक्ष विपक्ष का कोई मायने ना हो। मध्यमार्गी सोच ! देश की आजादी के पूर्व का गोन्डवाना आन्दोलन का इतिहास कुछ हद तक लिखित रूप में वर्णित है परन्तु आजादी के बाद गोन्डवाना आन्दोलन या तो व्यवस्थित तरीके से सहेजा नहीं गया या समुदाय को सामाजिक, राजनीतिक तरीके से व्यक्तिगत (एकल) सोच पर चलाने के कारण एकपक्षीय निर्णय का शिकार होता चला गया । आधुनिक गोन्डवाना आन्दोलन अभी "बाबागिरी" की चपेट में है । जैसे किसी बाबा को लगा कि मुझे कैसे महान बनना है तब ऐसे बाबा किसी के बने बनाए फार्मूले पर अपना रन्ग चढाकर कुछ फालोवर्स पैदा करते हें जो दिन रात बाबा का गुणगान करते हुए उनकी सोच को अन्यों से अलग बताकर उसे महिमामन्डित करते हैं । धीरे धीरे बाबा की ख्याति बढने लगती है । बहुत से अनुयायी जो उनके अतीत को नहीं जानते ना ही बाबा के फालोवर्स उन्हें बताते । बाबा की ख्याति बढने लगती तब फालोवर्स की तादाद देखकर बड़ी ताकत वाले व्यक्ति , समूह या सन्गठन उनसे भय खाने लगते हैं । बाबा की बाबागिरी चल निकलती है । पर बाबा को क्या मालूम कि कुछ लोग दिल से बाबा के दिखने वाले कार्यों से प्रभावित तो है पर बाबा के करतूतों पर भी नजर रखते रहे परिणाम यह हुआ कि बाबाओ की बाबागिरी का पर्दाफाश होता है तब भी अन्धभक्त फालोवर्स को बाबा पाकसाफ ही दिखाई देता है । इसी तरह गोन्डवाना आन्दोलन भी बाबागिरी का शिकार हुआ है । आन्दोलन के आधार स्तंभों को लगा कि बाबा आन्दोलन को लक्ष्य तक पहुचायेगा लेकिन बीच में ही "पूत के पा्व पालने में" दिख गये ,आधार स्तंभों ने बाबा से अपने आप को अलग कर लिया । और गोन्डवाना आन्दोलन को समर्पित भाव से चलाने लगे । गोन्डवाना के इन आधार स्तंभों की जानकारी चमत्कार से प्रभावित फालोवर्स को कहाँ दिखती उन्हें तो प्रायोजित चमचों द्वारा बताई गई जानकारी ही सर्वोपरि थी । उन्हें बाकी बातों से क्या लेना देना । जैसे आज भी आशाराम, रामपाल,रामरहीम आदि बाबाओ के फालोवर्स उनपर अपनी जान देने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिये तैयार हैं ।
नोट :-मित्रो ,प्रतिक्रिया के लिये हिम्मत या साक्ष्य की आवश्यकता होगी अन्यथा आत्ममन्थन करते हुए गोन्डवाना आन्दोलन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण उपाय एवं सुझाव प्रस्तुत करें ।- Gsmarkam
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