५वी अनुसूचि की पारम्परिक ग्राम सभा को समझने के लिए"नार/ग्राम" व्यवस्था को समझना होगा । कि पारम्परिक ग्राम की स्थापना कैसे हुई ? उसका प्रथम स्थापनाकर्ता कौन है ? सन्विधान मे इसी पारम्परिक ग्राम की राया या कुटुम्ब की बैठक को पारम्परिक ग्राम सभा कहा गया है । आदिवासी कबीले के किसी गोत्र का मुखिया अपना परिवार बड़ा हो जाने पर क्रषि योग्य भूमि की तलाश करता हुआ किसी सुलभ स्थान में अपने परिवार के लिए आवासीय व्यवस्था की स्थापना करता है । वही ग्राम का स्थापनकर्ता है ।। जिसे मुखिया , मुकद्दम या पटैल कहा गया जो अपने ग्राम की सम्पूर्ण व्यवस्था का सन्चालक होता है । ग्राम में दैवीय प्रकोप, जडी बूटी के जानकार और अन्य बाह्य सम्भावित प्रकोप से रक्षा के नाम पर बैगा/भुमका/पुजारी को नियुक्त किया जाता है । इसी तरह ग्राम में सूचना और चौकीदारी के लिये कोटवार तथा अन्य सहयोगी दीवान आदि की नियुक्ति की जाती है । यह व्यवस्था ग्राम प्रमुख के नेतृत्व में स्थायी समिति के रूप में परम्परागत सदैव विद्मान रहती है। ग्राम का मोकडदम/मुखिया या कालांतर में उसके परिवार का प्रमुख सदस्य जिसे ग्राम में सदैव मुखिया का सम्मान प्राप्त रहता है । पेसा कानून मे भी इस व्यवस्था को मान्यता है पर पेसा कानून के पन्चायती राज सन्शोधन कानून ने पारम्परिक पन्चायत को मोहल्ला/ पारा/टोला तक सीमित कर त्रिस्तरीय ग्राम पन्चायत की ग्राम सभा को सर्वशक्तिमान बना दिया । ५वी अनुसूचि की पारम्परिक ग्राम सभा को मजबूत करने के लिये पारम्परिक कुटुम्ब परिवार की ग्राम व्यवस्था को मजबूत करना होगा । उसकी परम्परागत रूढी व्यवस्था का जिसमे उसकी मूल भाषा,धर्म,सन्स्क्रति ,रीतिरिवाज ,और सन्सकारो का पालन करना होगा ,तब माने जाओगे देश के असली मालिक ग्राम सभ्यता के प्रथम जनक, एसी भारत सरकार कुटुम्ब परिवार अन्यथा किसी खास मकसद के लिये ५वी अनुसूची की आड में आदिवासीयो के साथ छल करना मन्हगा पडेगा । असली एसी भारत सरकार कुटुम्ब परिवार वह है जो आरम्भ से अब तक ना अपनी रूढ़ि परम्परा को बदला, ना ही अपनी आस्था और धर्म को बदला है । नोट:-इस विषय मे किसी को कुछ कहना है तो टिप्पडी या सुझाव देकर हमे अनुग्रहीत करे ।-gsmarkam
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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