"मप्र में गोंडवाना की राजनीतिक एकता से कांग्रेस,भाजपा समर्थक आदिवासीयों में खलबली ।"
अभी तक कुछ आदिवासी समुदाय के कथित जागरूक या अपने आप को समुदाय का हितैशी कहलानेवाले लोग गोंडवाना में राजनीतिक एकता नहीं होने से समुदाय कोनुकसान पहुंचने की बात करते थे । गोंडवाना के कार्यकर्ताओं को बार बार पार्टी विभाजन की बात दुहराकर उनके सामने कांग्रेस भाजपा को ही विकल्प बताते थे । परन्तु सामाजिक संगठनों के सूझबूझ और गोंडवाना के राजनीतिक दूरदर्शिता के कारण एकता होने से एैसे छदमवेशी लोगों को सांप सूंघ गया । कारण कि अब वे किस मुंह से समुदाय के पास जायेंगे । हालाकि एैसे लोग कोई ना कोई बहाना जरूर ढूंढ लेते हैं । अब एैसे लोग कहेंगे कि गोंडवाना अकेले दम पर कुछ नहीं कर सकती इसलिये उसे कांग्रेस या भाजपा से समझौता करके चुनाव लडना चाहिये । मगार तीसरी शक्ति का मप्र में कोई विकल्प खडा हो इसका सुझाव नहीं देते । मित्रों आपको अवगत हो कि मप्र में आदिवासी समुदाय स्वयं विकल्प है महाकौशल और विंध्य क्षेत्र की लगभग 90 सीटों को गोंडवाना की राजनीति प्रभावित करती है । वहीं मालवा निमाड में लगभग 30 विधानसभा सीटों पर आदिवासी समुदाय के मतदाता असर रखते हैं एैसे में आदिवासी नेतृत्व वाला एकीकृत गोंगपा मप्र में तीसरा विकल्प क्यों नहीं बन सकती । आदिवासियों के साथ उनके सहोदर आरक्षित वर्ग स्वयं उनके साथ खडा हो रहा है । इसलिये आदिवासी को अपने बलबूते पर मप्र में विकल्प बनना है ।- अब छदमवेशी आदिवासी चेहरों की पहचान करनी होगी जो थोडे से स्वार्थ के लिये समुदाय के मान सम्मान और अपने हक अधिकारो पर सामने होकर डाका डलवाने का काम करते हैं ।-gsmarkam
अभी तक कुछ आदिवासी समुदाय के कथित जागरूक या अपने आप को समुदाय का हितैशी कहलानेवाले लोग गोंडवाना में राजनीतिक एकता नहीं होने से समुदाय कोनुकसान पहुंचने की बात करते थे । गोंडवाना के कार्यकर्ताओं को बार बार पार्टी विभाजन की बात दुहराकर उनके सामने कांग्रेस भाजपा को ही विकल्प बताते थे । परन्तु सामाजिक संगठनों के सूझबूझ और गोंडवाना के राजनीतिक दूरदर्शिता के कारण एकता होने से एैसे छदमवेशी लोगों को सांप सूंघ गया । कारण कि अब वे किस मुंह से समुदाय के पास जायेंगे । हालाकि एैसे लोग कोई ना कोई बहाना जरूर ढूंढ लेते हैं । अब एैसे लोग कहेंगे कि गोंडवाना अकेले दम पर कुछ नहीं कर सकती इसलिये उसे कांग्रेस या भाजपा से समझौता करके चुनाव लडना चाहिये । मगार तीसरी शक्ति का मप्र में कोई विकल्प खडा हो इसका सुझाव नहीं देते । मित्रों आपको अवगत हो कि मप्र में आदिवासी समुदाय स्वयं विकल्प है महाकौशल और विंध्य क्षेत्र की लगभग 90 सीटों को गोंडवाना की राजनीति प्रभावित करती है । वहीं मालवा निमाड में लगभग 30 विधानसभा सीटों पर आदिवासी समुदाय के मतदाता असर रखते हैं एैसे में आदिवासी नेतृत्व वाला एकीकृत गोंगपा मप्र में तीसरा विकल्प क्यों नहीं बन सकती । आदिवासियों के साथ उनके सहोदर आरक्षित वर्ग स्वयं उनके साथ खडा हो रहा है । इसलिये आदिवासी को अपने बलबूते पर मप्र में विकल्प बनना है ।- अब छदमवेशी आदिवासी चेहरों की पहचान करनी होगी जो थोडे से स्वार्थ के लिये समुदाय के मान सम्मान और अपने हक अधिकारो पर सामने होकर डाका डलवाने का काम करते हैं ।-gsmarkam
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