सामूहिक निर्णय का पक्च्छ्धर हैआदिवासी समुदाय
(एकात्मवाद आर्यों का दर्शन है )
प्रक्रति पुत्र आदिवासी ने अपनी विकास यात्रा कबीला संस्क्रति से आगे बढा़या जिसमें कबीले का सबसे ताकतवर व्यक्ति उसका मुखिया होता था । लेकिन कबीले ने जो नियम कायदे बनाये होते थे ,यदि उसका उल्लंघन कबीले का मुखिया भी करे तो कबीले की पंचायत मुखिया को भी दंडित कर नया मुखिया चुन लेती थी । यही संस्कार और परंपरा मध़्यकाल तक राजतंत्र तक चलती रही । कबीलाई अनुशासन से बंधा राजा कबीले की रक्छा के लिये स्वयं आगे होकर कबीलाई सैनिकों को लेकर विरोधी से लडता था । उसके परास्त होने पर सेनापति कमान सम्हालता था । यानि जब तक सेनापति और सैनिक अपने आपसे हार नहीं मान लेते थे तब तक कबीले की हार नहीं होती थी । हार के बाद स्वाभिमानी कबीला पीछे हटकर नई जगह से पुन: नया मुखिया नई शक्ति संचित कर अपने खोये राज्य को अर्जित करने का प्रयास करता था । अर्थात कबीले की साख को बनाये रखने के लिये प्रयास करता रहता था । मुगल और अंग्रेजों के आक्रमण के बाद भी अनेक कबीलाई राजा निरंतर अपने कबीले की हिफाजत करते हुए अपने अस्तित्व को कायम रखे । ना वे आर्यों के गुलाम हुए ना ही मुगल सल्तनत के अाधीन हुए ना ही अंग्रेजों की गुलामी पसंद की । १९४७ के आखिरी छणों और देश की कथित आजादी के बाद तक अपने कबीले अपने राज्य की हिफाजत के लिये परंपरागत संघर्ष करते रहे । आरंभिक अस्थायी सरकारों ने ऱाजाओं को यथाशक्ति सम्मान देने का आस्वासन दिया । उनके लिये प्रीविपर्स फंड तय कर दिया गया । लेकिन १९५० में संविधान बनने के बाद उनके राज्य और शक्तियों को छीनना आरंभ कर दिया । परिणामस्वरूप ताकतवर राजाओं के स्थान पर उसी समुदाय के कमजोर और चाटुकार लोगों को प्रजातंत्र का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया । जिनमें उन्हे आदिवासियों के कबीलाई नेत्रत्व का भ्रम पैदा कर स्वयं कबीलों के विश्वासी होते गये । कमजोर और चाटुकार प्रतिनिथि कबीले का कथित प्रतिनिधि हो गया । अपने असली प्रतितिनिधि राजा के प्रति विश्वास को कमजोर करने का दुश्मन का शडयंत्र सफल हो गया । धीरे धीरे आदिवासी कबीलाई रियासतें समाप्त कर दी गईं । यहीं से आदिवासी कबीले और समुदाय की गुलामी आरंभ होती है । राजाओं पर तो बस नहीं चला तो समुदाय के समक्छ नये गुलाम नेत्त्रत्व को स्थापित कर दिया गया ।कबीलाई परंपरा और संस्कार के कारण इन नकली नेत्रत्व पर समुदाय ने लंबे समय तक भरोशा किया लेकिन ये कथित नेत्रत्व आदिवासी कबीले के लिये विश्वासघाती साबित हुआ है । इसलिये कि ये समुदाय की ओर से नहीं वरन् व्यक्तिवादी दर्शन की उत्पाद है । जिसका परिणाम कबीलाई हित में कभी नहीं हो सकता । इसलिये आदिवासी समुदाय या तो अपनी परंपरगत कबीलाई स्वभाव छोडे या परंपरागत स्वभाव से सामूहिक निर्णय लेकर अपना नेत्रत्व तय करे । इसके अलावा कोई रास्ता नहीं ।-gsmarkam
(एकात्मवाद आर्यों का दर्शन है )
प्रक्रति पुत्र आदिवासी ने अपनी विकास यात्रा कबीला संस्क्रति से आगे बढा़या जिसमें कबीले का सबसे ताकतवर व्यक्ति उसका मुखिया होता था । लेकिन कबीले ने जो नियम कायदे बनाये होते थे ,यदि उसका उल्लंघन कबीले का मुखिया भी करे तो कबीले की पंचायत मुखिया को भी दंडित कर नया मुखिया चुन लेती थी । यही संस्कार और परंपरा मध़्यकाल तक राजतंत्र तक चलती रही । कबीलाई अनुशासन से बंधा राजा कबीले की रक्छा के लिये स्वयं आगे होकर कबीलाई सैनिकों को लेकर विरोधी से लडता था । उसके परास्त होने पर सेनापति कमान सम्हालता था । यानि जब तक सेनापति और सैनिक अपने आपसे हार नहीं मान लेते थे तब तक कबीले की हार नहीं होती थी । हार के बाद स्वाभिमानी कबीला पीछे हटकर नई जगह से पुन: नया मुखिया नई शक्ति संचित कर अपने खोये राज्य को अर्जित करने का प्रयास करता था । अर्थात कबीले की साख को बनाये रखने के लिये प्रयास करता रहता था । मुगल और अंग्रेजों के आक्रमण के बाद भी अनेक कबीलाई राजा निरंतर अपने कबीले की हिफाजत करते हुए अपने अस्तित्व को कायम रखे । ना वे आर्यों के गुलाम हुए ना ही मुगल सल्तनत के अाधीन हुए ना ही अंग्रेजों की गुलामी पसंद की । १९४७ के आखिरी छणों और देश की कथित आजादी के बाद तक अपने कबीले अपने राज्य की हिफाजत के लिये परंपरागत संघर्ष करते रहे । आरंभिक अस्थायी सरकारों ने ऱाजाओं को यथाशक्ति सम्मान देने का आस्वासन दिया । उनके लिये प्रीविपर्स फंड तय कर दिया गया । लेकिन १९५० में संविधान बनने के बाद उनके राज्य और शक्तियों को छीनना आरंभ कर दिया । परिणामस्वरूप ताकतवर राजाओं के स्थान पर उसी समुदाय के कमजोर और चाटुकार लोगों को प्रजातंत्र का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया । जिनमें उन्हे आदिवासियों के कबीलाई नेत्रत्व का भ्रम पैदा कर स्वयं कबीलों के विश्वासी होते गये । कमजोर और चाटुकार प्रतिनिथि कबीले का कथित प्रतिनिधि हो गया । अपने असली प्रतितिनिधि राजा के प्रति विश्वास को कमजोर करने का दुश्मन का शडयंत्र सफल हो गया । धीरे धीरे आदिवासी कबीलाई रियासतें समाप्त कर दी गईं । यहीं से आदिवासी कबीले और समुदाय की गुलामी आरंभ होती है । राजाओं पर तो बस नहीं चला तो समुदाय के समक्छ नये गुलाम नेत्त्रत्व को स्थापित कर दिया गया ।कबीलाई परंपरा और संस्कार के कारण इन नकली नेत्रत्व पर समुदाय ने लंबे समय तक भरोशा किया लेकिन ये कथित नेत्रत्व आदिवासी कबीले के लिये विश्वासघाती साबित हुआ है । इसलिये कि ये समुदाय की ओर से नहीं वरन् व्यक्तिवादी दर्शन की उत्पाद है । जिसका परिणाम कबीलाई हित में कभी नहीं हो सकता । इसलिये आदिवासी समुदाय या तो अपनी परंपरगत कबीलाई स्वभाव छोडे या परंपरागत स्वभाव से सामूहिक निर्णय लेकर अपना नेत्रत्व तय करे । इसके अलावा कोई रास्ता नहीं ।-gsmarkam
Comments
Post a Comment